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हमेशा हमें वर्तमान की ही व्यवस्था करनी होती है। भविष्य को पहले से नहीं देखा जा सकता बल्कि उसे आने देना होता है।
- संत एक्जुपरी
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
पत्रिका की धरोहर
‘नई धारा’ हिंदी की एक द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका है, जिसका प्रकाशन अप्रैल 1950 से निरंतर होता आ रहा है। हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के शीर्ष पर विराजित ‘नई धारा’ का लोकार्पण बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने किया था। भारतीय साहित्य की विरासत को संजोती हुई विगत एकहत्तर वर्षों से ‘नई धारा’ का अनवरत प्रकाशन हो रहा है।
74
वर्षों से चली आ रही
10,000+
कुल रचनाएँ प्रकाशित
3,000+
लेखकों का सान्निध्य
लेखकों की सूची
- हिंदी के तपोनिष्ठ साहित्य-साधक उदय राज सिंह का जन्म सूर्यपुरा (रोहतास) राजवंश में 5 नवंबर, 1921 ई. को हुआ। अल्पवय से ही उदय राज सिंह में साहित्य के प्रति रुचि थी। अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने ‘विकास’ और ‘सौरभ’ नामक हस्तलिखित पत्रिका का संपादन किया था। जब वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे, तभी से कहानी, एकांकी, उपन्यास आदि की रचना उन्होंने शुरू कर दी और मृत्युपर्यंत अविराम लिखते रहे। उनकी अब तक की प्रकाशित पुस्तकें हैं–‘नवतारा’ (कहानी एवं एकांकी), ‘अधूरी नारी’, ‘रोहिणी’, ‘भूदानी सोनिया’, ‘कुहासा और आकृतियाँ’ (उपन्यास), ‘उदय राज सिंह की कहानियाँ’ (कहानी संग्रह), ‘मुस्कुराता अतीत’, ‘यादों की चादर’ (संस्मरण), ‘सफरनामा’ (यात्रा), ‘परिक्रमा’ (यात्रावृत), ‘गाँव के खिलौने’ (स्केच), ‘अनमोल रत्न’ (दो खंड) आदि। अंतिम पुस्तक को छोड़कर उनकी सभी रचनाएँ ‘उदय राज रचनावली’ के नाम से तीन खंडों में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘भूदानी सोनिया’ आचार्य बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन को लेकर लिखा गया उपन्यास है, जिसकी भूमिका लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने लिखी है। ‘उजालों के बीच’ बिहार आंदोलन पर आधारित उपन्यास है। इनका लगभग पूरा का पूरा लेखन सामाजिक-सामयिक समस्याओं पर केंद्रित है, जिसकी सराहना साहित्य के महारथियों ने समय-समय पर की है। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही विज्ञान में स्नातक (1942) किया, फिर वहीं एम. ए. में पढ़ते हुए अगस्त-क्रांति में कूद पड़े। उसी दौरान श्री जयप्रकाश नारायण, श्रीमती सुचेता कृपलानी, श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे राजनेताओं के संपर्क में तो आए ही, अन्य भूमिगत क्रांतिकारी नेताओं के संपर्क में भी आकर इन्होंने काम किया। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात ‘अशोक प्रेस’ की स्थापना कर ‘नई धारा’ पत्रिका का संचालन-प्रकाशन करने लगे, जिसके आद्य संपादक थे रामवृक्ष बेनीपुरी। वे बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की अनेक समितियों में ये सदस्य रहे। ‘राजेंद्र साहित्य परिषद’ तथा ‘समय संवाद’ के अध्यक्ष भी रहे। उस दौर के अनेक साहित्यिक संस्थानों से संबद्ध होने का भी इन्हें अवसर मिला। अनेक समारोह में दिए इनके भाषण, पत्र-पत्रिकाओं-ग्रंथों में प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित इनकी रचनाएँ पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं। ‘भूदानी सोनिया’ को राजस्थान विश्वविद्यालय ने अपने बी. ए. के पाठ्यक्रम में रखा, तो ‘अँधेरे के विरुद्ध’ को मगध विश्वविद्यालय ने बी. ए. हिंदी ऑनर्स में जगह दी। 1972 में इसी उपन्यास को उत्तर प्रदेश सरकार ने विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया, तो बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने भी बहुत पहले हिंदी सेवी के रूप में इन्हें सम्मानित किया था। राजभाषा विभाग ने अपने एक लाख इक्यावन हजार के सर्वोच्च पुरस्कार ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से इन्हें समलंकृत किया। कलकत्ते से प्रकाशित हिंदी की प्रथम पत्रिका ‘उदंत मार्तंड’ की डेढ़ सौवीं जयंती मनायी गयी, तो उस अवसर पर इन्हें बंग हिंदी साहित्य परिषद् द्वारा ‘संपादक शिरोमणि’ की मानद उपाधि से विभूषित किया गया था। साहित्यकार-पत्रकार के रूप में इनकी सारस्वत साधना का सम्मान अनेक अवसरों पर हुआ। 20 जून, 2004 को ये अपनी काया से मुक्त हो गोलोकवासी हो गए।
- मूल नाम-रमेश सिंह मटियानी, जन्म-1931 (गाँव बाड़ेछीना, अल्मोड़ा, उत्तराखंड), विधाएँ- उपन्यास, कहानी, निबंध, मुख्य कृतियाँ- गोपुली गफूरन, चंद औरतों का शहर, नागवल्लरी, बावन नदियों का संगम, माया-सरोवर, मुठभेड़, रामकली, हौलदार, उत्तराखंड (उपन्यास), चील, प्यास और पत्थर, भेड़ें और गड़ेरिये, बर्फ और चट्टानें, नाच जमूरे नाच, अतीत तथा अन्य कहानियाँ (कहानी सग्रह), लेखक और संवेदना, मुख्यधारा का सवाल, त्रिज्या, यदा-कदा (विविध), सम्मान- फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार, उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, साधना सम्मान, लोहिया सम्मान
- मूल नाम- जनार्दन प्रसाद झा; जन्मस्थान–24 जनवरी 1905; रामपुर डीह, भागलपुर (बिहार) । विधाएँ–कहानी, कविता । रचनाएँ–‘मधुमयी’, ‘माका’, ‘मृदुदल’, ‘किसलय’ (कहानी); ‘अंतर्ध्वअंतर्ध्वनि असंगृहित स्फुटरचनाएँ’, अनुभूति’ (कविता) ।
- जन्मस्थान–23 दिसंबर 1899; बेनीपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) । विधाएँ–उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक । रचनाएँ–‘रामराज्य’, ‘नया समाज’, ‘गाँव के देवता’, ‘संघमित्रा’, ‘शकुंतला’, ‘तथागत’, ‘बैजू मामा’ (नाटक); ‘जंजीरें और दीवारें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘कैदी की पत्नी’, ‘चिता के फूल’ (निबंध); ‘पतितों के देश में’, ‘आम्रपाली’ (उपन्यास); ‘माटी की मूरतें’ (कहानी) ।
- जन्म–23 सितंबर 1908; जन्मस्थान–सिमरिया, बेगुसराय (बिहार) । विधाएँ–कविता, आलोचना, निबंध, इतिहास, डायरी, संस्मरण । रचनाएँ–‘हाहाकार’, ‘हुंकार’, ‘रश्मिरथी’, ‘कुरुक्षेत्र’ (कविता); ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘पंत’, ‘काव्य की भूमिका’, ‘हमारी सांस्कृतिक कहानी’, ‘मिट्टी की ओर’ (आलोचना) ।
- जन्म-1907 (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश); विधाएँ- कविता, आत्मकथा, आलोचना एवं जीवनी; रचनाएँ-‘तेरा हार’, ‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’, ‘मधुकलश’, ‘आत्म परिचय’, ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’, ‘सतरंगिनी’, ‘हलाहल’, ‘बंगाल का काल’, ‘खादी के फूल’, ‘सूत की माला’, ‘मिलन यामिनी’, ‘प्रणय पत्रिका’, ‘धार के इधर-उधर’, ‘आरती और अंगारे’, ‘बुद्ध और नाचघर’, ‘त्रिभंगिमा’, ‘चार खेमे चौंसठ खूंटे’, ‘दो चट्टानें’, ‘बहुत दिन बीते’, ‘कटती प्रतिमाओं की आवाज़’, ‘उभरते प्रतिमानों के रूप’, ‘जाल समेटा‘, ‘नई से नई-पुरानी से पुरानी’ (कविता संग्रह); ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’, ‘दशद्वार से सोपान तक’ (आत्मकथा); ‘कवियों में सौम्य संत: पंत’, ‘आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत’, आधुनिक कवि’, (आलोचना); ‘नेहरू: राजनैतिक जीवनचरित’ (जीवनी); सम्मान-‘दो चट्टानें’ कविता संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, एफ्रो एशियाई सम्मेलन का ‘कमल पुरस्कार’, बिड़ला फाउण्डेशन द्वारा आत्मकथा के लिए ‘सरस्वती सम्मान’, भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ सम्मान।
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प्रिय बेनीपुरी जी,
पंचतंत्र में एक नख-दंत-विहीन सिंह का किस्सा पड़ा था, जो वृद्धावस्था में एक सुवर्ण कंकण लेकर सरोवर के निकट बैठ गया था और बिचारा भगवान का भजन किया करता था! स्नान करने के लिए जो भक्त (और भगतिन!) आते उन्हें उपदेश देता था और एकाध को, जो निकट पहुँच जाते, अपना कलेवा भी बना लेता था! इसी प्रकार उसकी जीवन यात्रा चल रही थी। अंत में उस सिंह का क्या हुआ, मैं भूल गया हूँ, पर इतना मैं जानता हूँ कि उसका कंकण किसी ने नहीं छुड़ाया; और आपने तो मेरा …
- [बनारसी दास चतुर्वेदी]
- Sarojini Devi Hospital Private ward 3, Agra
- 1 June, 1950
आदरणीय बेनीपुरी जी,
सादराभिवादन! ‘नई धारा’ प्राप्त हुई। देखकर ही हर्ष से हृदय पुलकित हो उठा। आपके कुशल हाथ जिस वस्तु में लग जाएँ, वास्तव में उसमें प्राण और रस का संचार हो जाएगा। पत्रिका की प्रशंसा मैं किन शब्दों में करूँ। उसमें आपने क्या नहीं रखा है! उपयोगिता के साथ-साथ लालित्य का सम्मिश्रण, कलात्मक साहित्य की सर्वांगपूर्णता की अनूठी सामग्री का आकर्षण ही इसकी श्रेष्ठता का परिचय देता है। मेरी हार्दिक कामना है–‘नई धारा’ नूतन राष्ट्र के प्राणों …
- आपकी
- सुमित्रा कुमारी सिन्हा
- राजेंद्र पथ, पटना
- 17 April, 1950
प्रिय भाई बेनीपुरी जी,
‘नई धारा’ के दर्शन हुए। इसमें साहित्य की जितनी तरंगे हैं उतनी किसी पत्र में नहीं देखीं। आपकी उमंगों के झोंकों को ही इसका श्रेय मिलना चाहिए। और मैं जानता हूँ कि आपकी उमंगों के प्रभाव में कभी कमी नहीं होगी। इसलिए ‘नई धारा’ की तरंगों की विविधता में मुझे आगे भी कोई संदेह नहीं है।
यह जानकर और भी प्रसन्नता है कि आप हिंदी साधकों से नए-नए प्रकार का साहित्य लिखाने में सिद्धहस्त हैं। यदि इस प्रकार के प्रयत्न पहले होते तो हिंदी का …
- आपका
- रामकुमार वर्मा
- युग मंदिर, उन्नाव
- 16 April, 1950
प्रिय बेनीपुरी,
कविता तुम्हें पसंद आई, इसकी मुझे खुशी है, पर आगे जो पूछ रहे हो वह खतरे से खाली नहीं है। तुम्हारे कान में तो सब डाल दूँ किंतु बाबा, तुम तो उसे अखबार में छाप दोगे। फ़जीहत करानी है?
कुछ …
- सस्नेह
- बच्चन
- 17 क्लाइव रोड, प्रयाग
- 12 February, 1950