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मुंशी प्रेमचंद

- डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूँगा हो जाता है।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

patrika ka dharohar

पत्रिका की धरोहर

‘नई धारा’ हिंदी की एक द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका है, जिसका प्रकाशन अप्रैल 1950 से निरंतर होता आ रहा है। हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के शीर्ष पर विराजित ‘नई धारा’ का लोकार्पण बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने किया था। भारतीय साहित्य की विरासत को संजोती हुई विगत एकहत्तर वर्षों से ‘नई धारा’ का अनवरत प्रकाशन हो रहा है।

70

वर्षों से चली आ रही 

10,000+

कुल रचनाएँ प्रकाशित

3,000+

लेखकों का सान्निध्य

लेखकों की सूची

साहित्य की दुनिया

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नई धारा संवाद | गीतांजलि श्री

सूत्रधार – मिहिर पंड्या

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Ep52 | उदय राज सिंह की रचनाएँ | नई धारा रेडियो

प्रस्तुति – कार्तिकेय खेतरपाल

पॉडकास्ट

आपने यह कहा है

Strictly Private

प्रिय बेनीपुरी जी,

पंचतंत्र में एक नख-दंत-विहीन सिंह का किस्सा पड़ा था, जो वृद्धावस्था में एक सुवर्ण कंकण लेकर सरोवर के निकट बैठ गया था और बिचारा भगवान का भजन किया करता था! स्नान करने के लिए जो भक्त (और भगतिन!) आते उन्हें उपदेश देता था और एकाध को, जो निकट पहुँच जाते, अपना कलेवा भी बना लेता था! इसी प्रकार उसकी जीवन यात्रा चल रही थी। अंत में उस सिंह का क्या हुआ, मैं भूल गया हूँ, पर इतना मैं जानता हूँ कि उसका कंकण किसी ने नहीं छुड़ाया; और आपने तो मेरा …

आदरणीय बेनीपुरी जी,

सादराभिवादन! ‘नई धारा’ प्राप्त हुई। देखकर ही हर्ष से हृदय पुलकित हो उठा। आपके कुशल हाथ जिस वस्तु में लग जाएँ, वास्तव में उसमें प्राण और रस का संचार हो जाएगा। पत्रिका की प्रशंसा मैं किन शब्दों में करूँ। उसमें आपने क्या नहीं रखा है! उपयोगिता के साथ-साथ लालित्य का सम्मिश्रण, कलात्मक साहित्य की सर्वांगपूर्णता की अनूठी सामग्री का आकर्षण ही इसकी श्रेष्ठता का परिचय देता है। मेरी हार्दिक कामना है–‘नई धारा’ नूतन राष्ट्र के प्राणों …

प्रिय भाई बेनीपुरी जी,

‘नई धारा’ के दर्शन हुए। इसमें साहित्य की जितनी तरंगे हैं उतनी किसी पत्र में नहीं देखीं। आपकी उमंगों के झोंकों को ही इसका श्रेय मिलना चाहिए। और मैं जानता हूँ कि आपकी उमंगों के प्रभाव में कभी कमी नहीं होगी। इसलिए ‘नई धारा’ की तरंगों की विविधता में मुझे आगे भी कोई संदेह नहीं है।

यह जानकर और भी प्रसन्नता है कि आप हिंदी साधकों से नए-नए प्रकार का साहित्य लिखाने में सिद्धहस्त हैं। यदि इस प्रकार के प्रयत्न पहले होते तो हिंदी का …

प्रिय बेनीपुरी,

कविता तुम्हें पसंद आई, इसकी मुझे खुशी है, पर आगे जो पूछ रहे हो वह खतरे से खाली नहीं है। तुम्हारे कान में तो सब डाल दूँ किंतु बाबा, तुम तो उसे अखबार में छाप दोगे। फ़जीहत करानी है?

कुछ …

अन्य साहित्य

पद्मश्री उषाकिरण खान का लंबे समय तक बिहार के साहित्यिक क्षितिज पर स्त्री रचनाकार के तौर पर एकाधिपत्य रहा है। उनकी पहली कहानी का प्रकाशन सन् 1978 में हुआ। तब से अब तक उनकी 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें आठ कहानी संग्रह और पाँच उपन्यास हैं। मिथिला की धरती इनकी कहानियों का प्राण-तत्त्व है। मिथिला के संस्कार से इनका व्यक्तित्व अभिसिंचित रहा है। उषा जी की कहानियाँ अपनी सहजता और संवेदनशीलता के लिए जानी जाती हैं। आज के स्त्री विमर्श के ढाँचे में उनकी कहानियाँ भले ही फिट न बैठती हों पर अपने इसी भिन्न तेवर के कारण उनकी कहानियाँ स्त्री लेखन में अपनी अलग पहचान बनाती हैं। उषाकिरण खान की रचनाएँ स्त्री लेखन में अपनी अलग पहचान बनाती हैं इस रूप में कि यहाँ स्त्री, स्त्री के रूप में नहीं, व्यक्ति के रूप में उपस्थित है। उनकी रचनाओं को स्त्री विमर्श के सीमित खाँचे में नहीं रखा जा सकता, पर वे स्त्री हैं और इसलिए उनकी रचनाओं की मुख्य पात्र के रूप में स्त्री आती रही है। यहाँ जो स्त्री है वह आँसू बहाती या नारे लगाती स्त्री नहीं है, पर आप उसे नकार नहीं सकते। वह वहाँ है अपने होने के एहसास से भरी-पूरी, अपनी अस्मिता के प्रति सजग पर हवा-पानी की तरह अवश्यंभावी और स्वाभाविक।