एक निमिष

एक निमिष

बड़े सवेरे रोज नींद से जब मैं आँख खोल जग जाती,
नन्हीं चिड़िया एक सामने आ बातें करने लग जाती।
बड़ी मधुर अंतर्मन छूती, उसकी प्यारी बोली होती।
‘चूँ’ ‘चूँ’ करती वह खुश होती, लगता मेरी आत्मा रोती।
मेरे सूने मन में भरती नन्हीं गौरेया स्वर सिचन,
सोये-से प्राणों को देती जीवन की साँसों का कंपन।
खोई आत्मा मानों पाती मृदुल मधुर ध्वनियों की राहें,
गूँज-गूँज उठती है जिसमें मेरे अंतर्मन की चाहें।
एक निमिष को यह सुख-अनुभव और दूसरे पल फिर कटुता,
उलझन की लपेट में लिपटी जान न पाती मैं सुख-लघुता!
नन्हीं चिड़िया, मीठा कलरव, प्राणों को पुलकित कर जाता,
एक निमिष को मानों कोई मुझे स्वर्ग की ओर बुलाता।
पर यह पुलक-लहर क्षण भर, फिर कटुता की हाटें लग जातीं,
कर्कश ध्वनियाँ कामकाज की आकर जीवन में चिल्लातीं।
आता वही पुकार ‘दूध लो’ औ’ मैं तत्क्षण ही उठ जाती,
‘बच्चो जागो’ कहकर फिर मैं नित्य क्रियाओं में जुट जाती।
कोटि कर्म-कोलाहल बन कर भीषण स्वर-संघर्ष मचाते,
मेरे नन्हें प्राण न कोई एक समस्या भी हल कर पाते।
और सोचने लगती हूँ मैं क्या जीवन का शिव औ सुंदर,
इस नन्हीं गौरैया का ही मीठा सच्चा गीत मनोहर?
जिसको आकर नित्य प्राप्त को मेरे सम्मुख वह गा जाती,
करुणधार की रस-धारा में जाने कहाँ बहा ले जाती।
मेरे निशि के अवसादों को उसके मीठे स्वर धो देते,
उससे मिल अतिरेक प्राण के मेरे विह्वल रो-रो देते।
मैं सुनती स्वच्छंद गीत की गूँजों में जिंदगी-रवानी।
मैं सुन लेती नित्य प्रात को पंछी की जागृति-अगवानी।
रोज सुबह को मेरे सम्मुख बैठ यही गौरैया गाती,
मेरे भटके आकुल मन को एक अमर संदेश सुनाती।
तेरा है सामर्थ क्या नहीं, मानव इतना शक्तिवान तू,
क्षण भर तो कर ले प्रियतम का मदिर मधुरतम ध्यान-गान तू!


Image: A Nepalese black headed nun in the branch of a tree
Image Source: WikiArt
Artist: Archibald Thorburn
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