अवतरणी

अवतरणी

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!

प्रेम के हे देवता! उठ,

जाग! मानव-मन-सुमन में!

ज्योति के सोपान से

नवचेतना उतरे धरा पर!

और गूँजे मेदिनी के

ज्वार से संपूर्ण अंबर!

बह चले गंगा किरण की

विश्व के अंत:करण में!

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!

हो गई जो लुप्त मरु-

पथ में भटक कर प्राण-धारा!

कर चुकी उदरस्थ जिसको

भूत-युग की लौह-कारा!

वह पुन: मुस्कान बन

खेले जगत्-शिशु के रुदन में!

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!

आ गया मधुमास, तरु के

अधर-पल्लव हिल रहे हैं!

कुंज में सौंदर्य के नव

पुष्प-पाटल खिल रहे हैं!

शृंखला दे तोड़, नूपुर

बाँध दे छवि के चरण में!

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!

उड़ चलें उन्मुक्त नभ में

रश्मि के चंचल विहंगम!

फिर बने जीवन-त्रिवेणी

भारती का पुण्य-संगम!

कर उठें जगमग अमृत–

दीपक मरण-तिमिरावरण में!

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!

एक अभिनव शिखर पर फिर

आज मानवता खड़ी है!

नवल रूपांतर उपस्थित,

नवल प्रजनन की घड़ी है!

जोड़ दे अंतिम कड़ी तू

इस क्रमिक विकसित सृजन में!

सर्वथा ले जन्म नूतन

अवतरित तू हो भुवन में!


Image: Roses Lying on Gold Velvet
Image Source: WikiArt
Artist: Henri Fantin Latour
Image in Public Domain