विश्व मेरे, स्वप्न मैं बुनता नया हूँ
- 1 January, 1952
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- 1 January, 1952
विश्व मेरे, स्वप्न मैं बुनता नया हूँ
विश्व मेरे, स्वप्न मैं बुनता नया हूँ,
आँसुओं के अग्नि-कण चुनता नया हूँ,
जो अनागत की कथा सौ-सौ लिए, उन
आँधियों में गीत मैं सुनता नया हूँ!
स्वर-सुरभि उठती लपट की क्यारियों से,
छंद बनते जा रहे चिनगारियों से।
है ध्वनित आकाश जिनके घोर रव से
गीत गुंजित नग्न-तन नर-नारियों से!
चाँदनी बेबस पिघलती जा रही है!
रूप की दुनियाँ बदलती जा रही है!
सत्य के निष्करुण विद्युज्जाल से घिर
कल्पना सुकुमार जलती जा रही है!
उठ रहा जीवन मरण परिधान ले कर!
स्वप्न यह कितना सुखद, कितना भयंकर!
Image: A Pond with three Cows and a Crescent Moon
Image Source: WikiArt
Artist: Camille Corot
Image in Public Domain