तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

तुम हो कौन छिपे गहरे में ?
पाया नहीं लाख चेहरों में
छानी खाक गाँव-शहरों में
चलते जल में या ठहरे में ?
पुल लाँघे कितनी नहरों पर
क़ैद न थी तालों, पहरों पर
गूँगी बात सुनी बहरे ने ।
कबिरा लहर-बुंद मगहर की
मीरा बनती स्याम ज़हर पी
किरन कहीं पाई कुहरे ने ?
(स्टाकहोम)


Original Image: In the Outskirt of the City
Image Source: WikiArt
Artist: Laszlo Mednyanszky
Image in Public Domain
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प्रभाकर माचवे द्वारा भी