प्रतिमा गीत
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- 1 April, 1964
प्रतिमा गीत
(एक)
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
मैं अपनी प्रतिमा के आगे
अपने मन की पीर सुनाता,
पत्थर की प्रतिमा क्यों बोले ?
पत्थर का दिल कैसे डोले ?
वे कहते हैं जान बूझकर
पत्थर से क्यों नेह लगाता ?
क्यों पूजा के फूल चढ़ाता ?
क्यों प्रतिमा को फूल चढ़ाता ?
क्यों कहते हो यह पत्थर है ?
मेरे उर में इसका घर है
यह मेरे सुख-दुख की संगिनि,
मैं सब रस इससे ही पाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता,
जब मैं व्याकुल हो रोता हूँ,
जब अपना आपा खोता हूँ,
मेरी प्रतिमा भी रोती है,
जब मैं विह्वल अश्रु बहाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता,
यह अपने मतलब की दुनिया,
है अपने ही ढब की दुनिया,
सब अपने में आप मगन हैं,
मेरा रोना किसको भाता ?
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
मेरे उर की करुण कहानी,
मेरे उर की कातर बानी,
यह मन से सब कुछ सुन लेती,
इसके सम्मुख खुलकर गाता,
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
दुनिया कहती मुझको पागल,
प्रतिमा मुझको देती है बल,
मुझको दुनिया से क्या मतलब ?
मेरा एक इसीसे नाता,
मैं पूजा के फूल चढ़ाता,
मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता ।
*
(दो)
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल ।
खल रहा है मौन तेरा,
बोल जग में कौन मेरा ?
एक तू ही है हमारी,
हृदय के पट खोल,
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल,
तू मुझे जिस दिन मिली थी,
हृदय की कलिका खिली थी,
वह सुरभि अनुपम अलौकिक,
वह घड़ी अनमोल,
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल ।
प्रेम जब उर में समाया,
स्वप्न शाश्वत बन सुहाया,
देह नश्वर, भाव शाश्वत,
चित्त चंचल लोल,
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल ।
आज छाई है उदासी,
मधुर स्वर हित श्रुति पिआसी,
फिर खुशी की बात कह
श्रुति में अमृत रस घोल,
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल ।
रह सदा उरमें बनी तू,
रह सदा मन में सनी तू,
मैं तुझे हटने न दूँगा,
हृदय से मत डोल,
प्रतिमे,
आज तो कुछ बोल ।
Image: Statue of Vishnu in the temple of Indra in Ellora
Image Source: WikiArt
Artist: Vasily Vereshchagin
Image in Public Domain