मृगजल
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/mrigajal/
- 1 April, 1964
मृगजल
आज तो कुछ भी नहीं है याद !
जिंदगी किस स्वप्न के कारण
हुई बरबाद ।
कौन-सा वह सुख,
कि जिसकी प्राप्ति में डाली
उँगलियाँ भून ?
कौन-सा वह मुख,
जिसे देखा–
अकारण खींच बैठे
शाप की सीमा
–लखन-रेखा ।
आँधियों की शेष
उड़ती धूल ।
कौन-सी वह भूल,
जिसके साथ–
जीवन हो गया निर्मूल
शून्य पर टिकते नयन
अविचल ।
कौन वह मृगजल
कि जिसमें पल रहे अवसाद,
आज तो कुछ भी नहीं है याद ।
Image: Portrait of France Preseren
Image Source: WikiArt
Artist: Ivan Grohar
Image in Public Domain