साँझ

साँझ

साँझ
तम के साथ
अनजानी दिशाओं से
उतर कर
पास मेरे छा रही है ।
और मैं उच्छवसित
बैठा हूँ
विगत की सुधि-चिता पर
व्यथा से उत्तप्त !
उलटता हूँ–
उलझनों के जाल लिपटी
जीवनी के पृष्ठ !
साँझ
यह खामोश
तेरे पास भी होगी
सिमट कर
धड़कनों के बीच बैठी-सी ।
और तुम मदहोश
मेरी याद में
अभिशप्त होगी !


Image: Sunset-at-Etretat
Image Source: WikiArt
Artist: George-Inness
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