खत्म न होने वाला सफर
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- 1 August, 2020
खत्म न होने वाला सफर
निकला था कहीं से नहीं जानता
बिल्कुल जाना है कहाँ तक
कल-आज अतीत-वर्तमान
बीता समय, बीतने वाला समय
जब बनेंगे अनुभव के अंग
तभी जान पाऊँगा ठीक ठीक!
कल की तरफ सारे रास्ते
जाते रहते हैं आगे ही आगे
खींचते हुए इंसान को अपने साथ
कल कैसा होगा?
क्या बीते कल जैसा ही होगा?
कम से कम आज की तरह ही गुज़रेगा?
आपसे पूछता हूँ…कहिए…
क्या निश्चित रूप से बता सकेंगे?
कोशिश कीजिए
थोड़ी-सी कल्पना भी जोड़िए!
शायद नहीं बता पाएगा कोई भी
कल्पना के परे के
कल को जाने बिना ही
कदमों के नीचे का रास्ता
किस ओर जाता है
यह देखे बिना ही कदम बढ़ाते रहते हैं।
आज का भला काम कल के
रास्ते में अड़चनें पैदा नहीं होने देता
यही कहते हैं सब।
कल अच्छा हो इसी आशा में
कुछ जाते हैं शरण में भगवान की
उन तक जाने वाले
सब रास्तों को लगाते हैं सीने से
मनौतियाँ, साष्टांग प्रणाम, प्रार्थनाएँ
इन्हीं में पाते हैं शांति
भगवान का ध्यान करते हैं
पर साथी मनुष्य पर नहीं देते ध्यान।
कुछ प्रसाद का पेंटेंट चाहते हैं
तो कुछ बंदूक लेकर
बनते हैं पवित्र युद्ध के सिपाही
पैसों का प्रलोभन दिखाकर
मजहब बदलवाकर
मिटा देते हैं अतीत को
बाहरी बदलाव से क्या
मन को धोखा दे सकेंगे?
सिर्फ कुछ शब्द बोल देने से ही
धर्म के अनुयायी बन जाएँगे?
बदले हुए धर्म में
मन को पूरी तरह उड़ेल सकेंगे?
मेरी एक विनती है
जीवन के सफर में पार लगाने वाला
सिर्फ प्यार ही है!
प्यार की राह में
मेरी साथी बनी है मेरी प्रेमिका
उसकी आँखों में झाँकता हूँ
तो जीने का संबल दिखता है वहाँ
संसार के दुख और
पीड़ा कर देते हैं अस्तव्यस्त
फिर भी उससे मिलने वाला
आत्मविश्वास कभी हारने नहीं देता मुझे
प्रेमिका से सच्चा प्यार करना
उसके मन की गहराई पाने के लिए
नित तप करते रहना
ये सब प्रयास है मेरा
साथी मनुष्य को प्यार करने का।
इसी प्रयास में
मेरे अंदर की आवाज़ मुझसे कहती है
इन्सान सच है…सिर्फ इन्सान ही सच है
इन्सान को प्यार करने को छोड़कर
बाकी सब झूठ है!
Image: Forest path
Image Source: WikiArt
Artist: Ivan Kramskoy
Image in Public Domain