ताजमहल की बुनियाद

ताजमहल की बुनियाद

आज से तीन सौ वर्ष से अधिक हुए, जब शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज की यादगार में विश्व का आश्चर्य ताजमहल निर्मित किया था। प्रेमी के इस अमर निर्माण को देखने विश्व के प्रत्येक भाग से लोग आते हैं। आज दिन भी ताजमहल के इर्दगिर्द एक ऐसा वातावरण दर्शकगण पाते हैं जिसमें बेगम मुमताज और सम्राट दोनों की सदाएँ गूँज रही हैं। अब भी ताजमहल के सौंदर्यपूर्ण वातावरण में एक अमर प्रेम की भावना अभिव्यक्त है।

ताजमहल का निर्माण विश्व के इतिहास में प्रेम की एक ऐसी अनर और चिरंतन स्थाई भावना स्थापित करता है जो तुलसी के आदर्शों की भाँति समय के बहाव में नहीं बह सकते, तूफानों में नहीं डिग सकते और जलज़लों में नहीं खो सकते। ताजमहल की बुनियादी में जो नींव है वह है philosophy of love जो ईश्वार प्रदत्त है, चिरंतन और सत्य है।

एक घनघोर भीषण रात्रि में जबकि सारा विश्व निंद्रा देवी की गोद में लीन था, आकाश का चाँद और तारे भी आकाश गंगा में डूबे हुए थे, सड़कें सोई हुई थीं, कुत्ते रो रहे थे, उस वक्त रोग-शैय्या पर मुमताज और नेत्रों में आँसू का अथाह सागर लिए हुए, लुटे हुए फ़कीर की भाँति सम्राट शाहजहाँ बैठा हुआ था। आज उसके शरीर में प्राण नहीं थे, नेत्रों में प्रकाश नहीं था। आज की रात उसकी दुनिया लुट रही थी और वह नि:स्सहाय था, बेबस था। आज वह लुटा जा रहा था, वेदना के अथाह सागर में किसी अनंत दिशा की ओर बहा जा रहा था। आज उसके जीवन की गतिविधि डाँवाडोल थी। कौन बचा सकता था आज उसको? आज उसके जीवन की अनमोल वस्तु अस्त होते हुए रवि की भाँति धीरे-धीरे विलीन हो रही थी और वह लाचार था । उसकी आँखों के आगे वर्षों के आनंद एकत्रित हो केंद्रीभूत हो रहे थे और आज वह केवल प्रथम बार जीवन की अस्थिरता का आभास महसूस कर रहा था । उसकी सुनहली दुनिया के स्वप्नों के तारे फीके पड़ रहे थे। प्रेम नगर वीरान था। अतीत का सागर मानस पटल पर दौड़ रहा था। वेदना की गहरी अनुभूति उसको पागल किए दे रही थी। तूफानी झंझावात उसके बालों से खेल रहे थे और बरसाती बादलों की टकराहट से उत्पन्न बिजली भी उसके हृदय में स्थित अंधकार को भेदने में असमर्थ थी। शाह ने देखा–तिमिर का नद बह रहा है, जीवन के परदे में मृत्यु छिपी हुई है, दिवस के पीछे डाकिनी-सी रात खड़ी है और अमृत के हर जाम में विष घुला हुआ है। संसार की वेदना अंधकार में लोप है, केवल एक प्रकाश उसके पास है उसके हृदय की सम्राज्ञी मुमताज और आज वह भी उससे अंतिम विदा माँग रही है।

ऐसे क्षण होते हैं जो व्यक्ति को हिला देते हैं और पाषाण हृदयों को पिघला देते हैं। ऐसे ही क्षण होते हैं जब विश्व एक मिथ्या, एक स्वप्न प्रतीत होता है। पर वाह रे अमर प्रेमी! विश्व को आज तुझ पर गर्व है कि तू समय के भीषण तूफानी झंझावातों में अचल रहा, तूने समय को चुनौती दी और प्रेम की सनातन नींव पर महान् मानव की कला की नींव स्थापित की जो काल से भी टक्कर ले सकती थी।

वह कैसी भयावनी रात्रि होगी जब मुमताज ने जीवन की संध्या बेला में विश्व से कूच करने की अंतिम विदा माँगी होगी और कैसे होंगे जीवन के वे हृदय विदारक क्षण जब शाह ने जीवन को मौनता में साध ‘हाँ’ की होगी। मानव हृदयों को रुला देने वाली उन असहनीय वेदनापूर्ण भावनाओं को चित्रबद्ध करने में आज भी लेखक की लेखनी असमर्थ हैं । वे सौ-सौ आँसू रो रही है।

“मेरे मौन साधने के पश्चात् तुम मुझे कैसे स्मरण रख सकोगे?” शाह पर मानो बिजली-सी गिरी । नेत्रों से आँसू के पनाले बह चले । हृदय भर आया । उन हृदय विदारक आँसूओं में अपनी प्रेयसी को अमर बनाने वाला चित्र आ उपस्थित हुआ । शाह चिल्ला उठा और बोला–“मुमताज तुम्हारे पश्चात् विश्व के प्रांगण में मैं ऐसा रोज़ा निर्मित करूँगा जो शताब्दियों तक तुम्हारा नाम रौशन करता रहेगा। प्रेम मिटाने की वस्तु नहीं, वह सनातन है, अजर और अमर है । मानव को ईश्वर की एक देन है जिसमें स्वयं ईश्वर का निवास है।”

और इसके पश्चात् शाहजहाँ के जीवन में एक ऐसी मौनता आई जो ताजमहल के पत्थरों में खो गई, शिराओं और गुंबजों में विलीन हो गई! जीवन संगमरमर में जीवित हो उठा, प्रेम अमिट और अमर हो उठा और यही थी ताजमहल की बुनियाद जो आज भी कालिंदी के कूल पर स्थित है ।


Image: Taj Mahal Mausoleum
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Artist: Vasily Vereshchagin
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