जीत लेकर क्या करूँगा?
- 1 May, 1953
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- 1 May, 1953
जीत लेकर क्या करूँगा?
हार में जब तुम मिलोगे, जीत लेकर क्या करूँगा?
उस घड़ी तो तारकों का
स्वप्न मृदु टूटा हुआ था।
कुमुदिना भी रो रही थी
चाँद जब रूठा हुआ था!
दूर रहकर भी कहीं से, खोज मैं तुझको सका तब,
बाद उसके मधुर मन का मीत लेकर क्या करूँगा?
कल्पना समझो, मगर हर–
दम मुझे अंगार ही दो।
हिम जलों में मुस्कुराए–
जो, छला वह प्यार ही दो!
जलन का स्वर मौन बनकर, पा सकूँगा तृप्ति उर में,
तब कली के अधर का संगीत लेकर क्या करूँगा?
प्राण में लेकर फफोले,
नभ निशाभर चीखता है!
तब उषा में, अलि सिहरकर
मधु-मिलन-सा दीखता है!
पालता घन की पलक में, शरद राका की जवानी,
कंटकों के बीच कुछ विपरीत लेकर क्या करूँगा?
Image: Vanitas Still Life with Thinking Young Man
Image Source: WikiArt
Artist: Samuel Dirksz van Hoo
Image in Public Domain