नील गगन में घन लहराए।
- 1 June, 1953
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- 1 June, 1953
नील गगन में घन लहराए।
कवि को मेघ-मंद्र स्वर भाए,
नील गगन में घन लहराए!
महाजलन की दुरुह कहानी,
लिख दे सृष्टि वृष्टि की वाणी,
महा मिलन का बरसे पानी,
पुलक मयूरी पर फैलाए!
बादल की छवि सरस निरख कर,
उड़े हंस तज मानसरोवर,
प्रकृति प्यार पावस का पाकर,
कवि के गीत मनोहर गाए!
नील गगन से सुख-दुख के घन,
बरसे भू पर प्रतिपल, प्रतिक्षण,
मानव का मन बिजली बन-बन
बादल के उर में मुसकाए!
नील गगन में घन लहराए।
Original Image: Clouds
Image Source: WikiArt
Artist: David Cox
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork