शायद आगे रास्ता साफ मिले
- 10 March, 2015
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- 10 March, 2015
शायद आगे रास्ता साफ मिले
पहाड़ियाँ हैं, पहाड़ियों पर कायम है किले
कायम किलों में कायम हैं अनगिनत तहखाने
अनगिनत तहखानों में कायम हैं अनगिनत पिंजरे
अनगिनत पिंजरों में बंद हैं अनगिनत वे पक्षी
जिनकी अनगिनत–आत्माओं में
बसता है अब भी और अपनी अंतिम साँस तक
लोकतंत्र
खिड़कियों और दरवाजों का खुलना तय है
आज नहीं तो कल, होगा, होगा, होगा ये हादसा
किलों का और किलों की दीवारों का ध्वस्त होना तय है।
आज नहीं तो कल, होगा, होगा, होगा ये हादसा
चाकू, छुरी, तलवारों का मोम हो जाना तय है
आज नहीं तो कल होगा, होगा, होगा ये हादसा
देखेंगे सब, देखूँगा मैं भी, और देखना तुम भी
तुम वह, जो बंद किले में बंद, सदियों से
एक न एक दिन तो
तुम्हारी आँखों में भी उतर ही आएगा
खुले आसमान का वह खुला सपना जो बेहद रंग-बिरंगा
चोर-दरवाजों से नहीं आता है सपनों का संसार
कभी भी नहीं
साहस को कँपा सकती हैं सर्दियाँ
लेकिन, डरा नहीं सकती हैं जरा भी
कभी भी नहीं, झरझराकर
बहना ही चाहिए वह कचरा सब, अब
जो नहीं मनुष्यता के अनुकूल कदापि
कभी भी नहीं
पहाड़ियाँ हैं, पहाड़ियाँ पर कायम हैं किले
कायम किलों पर जरूरी है फतह
पहाड़ियों पर जरूरी है, वह चढ़ाई
जो जरा मुश्किल मगर ज्यदा जरूरी
मिलेंगे, मिलेंगे बीच में
सुगंधित हवाओं के खतरे भी मिलेंगे
लगाकर नाक पर साफ-साफ
कपड़ा निकाल लेना आगे
शायद आगे रास्ता साफ मिले।
Image: The Undergrowth in the Forest of Saint Germain
Image Source: WikiArt
Artist: Claude Monet
Image in Public Domain