प्राची में रवि विहँस रहा

प्राची में रवि विहँस रहा

उठो साथियो !
निशीथ का अब हो चला विनाश
और देखो व्योम में–
रजनी कालिमा का अवशेष !
अब देख इधर–
प्राची में रवि
शोणित-सी-लाली लिए
राष्ट्र के सोये हुए कुम्हलाए,
शोषित-पीड़ित मानव को जगाने के लिए
इस ओर
संकेत करता आ रहा।
और देखो–
उदयाचल में निखर रही हैं
कैसी सुंदर लाल-लाल रश्मियाँ !
अरे, यही तो प्रत्युष के
शुभागमन का प्रतीक है !
जो पूरब में दृश्यमान
देखो, वही तो एक मूर्तिमान कर रहा
तमग्रस्त-समस्त अंबर को प्रकाशमान !
जिससे कि छिटक रही भूतल पर,
बस, स्वर्णाभाएँ !
और विहँस रहे हैं अंबर में
देखो–अंशुमाली !
अधरों पर-स्वर्णिम-सी
मुस्कान लिए।


Original Image: Sunrise
Image Source: WikiArt
Artist: Albert Bierstadt
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork

अंकिमचंद द्वारा भी