आधुनिकता के प्रभाव की कहानियाँ
- 1 October, 2021
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- 1 October, 2021
आधुनिकता के प्रभाव की कहानियाँ
युवा लेखिका वंदना जोशी का पहला कहानी संग्रह ‘नगर ढिंढोरा’ के नाम से प्रकाशित हुआ है, जिसमें विभिन्न भाव छवियों की ग्यारह कहानियाँ हैं। इन कहानियों की भाषा और उसका शिल्प गहरे प्रभावित करता है और युवा लेखन की कथा त्वरा का परिचय देता है। संग्रह की लगभग सारी कहानियाँ देश की चर्चित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
संग्रह की सर्वश्रेष्ठ और शीर्षक कहानी ‘नगर ढिंढोरा’ में आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण उपजे दिखावा यानी ‘सो ऑफ’ के दुष्प्रभावों या अतिप्रभाव को प्रस्तुत करने की बेजोड़ कोशिश की गई है, जिसमें मानवीय मूल्यों का क्षरण स्पष्ट परिलक्षित होता है। एक-दूसरे से खुद का स्टेट्स सिंबल यानी ‘प्रतिष्ठा के प्रतीक’ को बेहतर दिखाने की एक होड़ सी मची है, जिसमें हर चीज ऐसे प्रस्तुत की जाती है, जैसे वो अकस्मात ही हुई हो, परंतु पर्दे के पीछे सब कुछ का रिटेक किया जा चुका होता है, जिनके माध्यम से लाईक जुटाने के लिए हम इतना ताम-झाम करते हैं, असलियत में उन्हें या उनकी भावनाओं को भी लाइक करते हैं क्या? प्रश्न विचारणीय है! ‘बदलता शब्दकोश’ पति-पत्नी के नित्य-प्रतिदिन की टकराहट और नोकझोंक से विस्तार पाती कहानी है, जिसका अंत अत्यंत दुखद है तथा जो कुछ अप्रत्यक्ष भावों को भी व्यक्त करने की चेष्टा करता है। आलोच्य कहानी में पुरुषों की तानाशाह वाली मानसिकता के साथ-साथ उसके कोमल स्वभाव को भी मुखरित किया गया है। जो मन का न होने पर सारी सीमाएँ तोड़ देता है, तो मन का होने पर सर्वस्व लूटा भी सकता है! परंतु अंत के कुछ भाव सटीक प्रतीत नहीं होते, कारण चाहे पुरुष कैसा भी हो उसकी असमय मृत्यु पर कोई भी मुक्ति और राहत का एहसास नहीं पा सकता और पत्नी तो कदाचित् नहीं। ‘अर्जियाँ’ में मध्यमवर्गीय परिवार के रहन-सहन, सोच और जिम्मेदारी को बड़ी बारीकी से दर्शाया गया है। आलोच्य कहानी में सरकारी नौकरी का दर्जा लगभग भगवान के पास वाली सीट को दिया गया है! कहानी में भुवनेश्वर के सरल युवक का भुवाल आना और यहाँ एक आकस्मिक घटना में प्रैक्टिकल सोचने वाले शिक्षक का संयोग धर्म, ईश्वर, प्रार्थना आदि में अटूट विश्वास हो जाना स्पष्ट परिलक्षित होता है, परंतु जिस पात्र के बारे में जानने की इच्छा शुरू से अंत तक बनी रहती है, उस जिज्ञासा की शांति नहीं हो पाती! ‘रिक्त स्थानों की पूर्ति के माध्यम से लेखिका ने कथित सभ्य समाज में समाजसेवा के नाम पर व्याप्त आडंबर पर निशाना साधा है। जिसमें मानवीय मूल्यों का स्थान दिखावे ने ग्रहण कर लिया, जिसमें लोग दिखावे को ही वास्तविकता की जगह दे चुके हैं।
‘मुक्ति’ कहानी में समाज में व्याप्त वर्ग भेद और उससे उपजे दंश को पारिभाषित किया गया है। आलोच्य कहानी में यह दिखलाने का सफल प्रयास किया गया है कि दो भिन्न विचारवाले, भिन्न परिवेश और वर्ग वाले भले ही एक दूसरे के साथ अच्छा संबंध रखे, सहज रहे, परंतु उच्चवर्ग वाले सामान्यतः निम्नवर्ग वाले को तुच्छ ही समझते हैं और जब हृदय में व्याप्त प्रेम और सम्मान को ठेस लगती है तो मनुष्य अपनेपन के संपूर्ण दर्द से आजाद हो जाता है। ‘आँचल की ओट से’ कहानी के माध्यम से लेखिका ने अच्छे-बुरे आचरण का बालमन पर शीघ्र और सटीक प्रभावों का पड़ना दिखाया है। तीन साल के दूधमुँहे बच्चे से माँ के दूध को कठोरता के साथ-साथ तंत्र-मंत्र के सहारे छुड़ाना और बच्चे के अविकसित मानसिकता पर उसका विपरित प्रभाव पड़ना ही कहानी का मुख्य बिंदु है। आलोच्य कहानी बालमनोविज्ञान की उत्कृष्ट रचनाओं में शामिल होने की अधिकारी है! आलोच्य कहानी ‘खतरा’ में मध्यवर्गीय समाज की जीवनचर्या को दर्शाया गया है। अभावग्रस्त पारिवारिक स्थिति के कारण कैसे एक लड़की को सुनसान इलाके में नाईट सिफ्ट की ड्यूटी करनी पड़ती है और जिससे उसे सबसे अधिक खतरा महसूस होता आता है वही उसका रक्षक निकलता है और भरोसा जिस पर गहरा होता है, विश्वासघात वही कर जाता है। कहानी में आरंभ से लेकर अंत तक कौतूहल विद्यमान है। कहानी में आज के परिवेश को बड़ी सूक्ष्मता के साथ विस्तार दिया गया है, जहाँ सही गलत को पहचानने का दृष्टिकोण होना अपेक्षित है। ‘जो मैं जानती’ कहानी में एक स्त्री का बिना पुरुष के साथ या सहायता के आज के पुरुष प्रधान समाज में खुद को साबित करने की जिद को उकेरा गया है। वह अपने संपूर्ण जीवन का निर्वाह पुरुष के बिना करना चाहती है। अंततः उसका झुकाव एक पुरुष की ओर हो ही जाता है, परंतु अफसोस यह अहसास उसे खोने के बाद होता है। कहानी में आधुनिक जनजीवन की झाँकी को बहुत ही रचनात्मक तरीके से व्यक्त किया गया है। ‘खग की भाषा’ कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त वर्ग भेद को उभारा गया है, जिसका विष बड़ों की विकृत मानसिकता से गुजरकर बच्चों के कोमल हृदय को भी विषाक्त कर डालता है। बालमनोविज्ञान के अंतर्गत आनेवाली इस कहानी में उच्च एवं संपन्न लोगों के द्वारा निम्नवर्ग को हीन दृष्टि से देखने के साथ ही प्रताड़ित करने की झलक प्रस्तुत की गई है, जिसके फलस्वरूप स्वयं का ही बच्चा गलत धारणाओं का शिकार हो जाता है। ‘अन्नोन नंबर’ कहानी में आज के आधुनिक समाज में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते दुरुपयोग को सटीकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, साथ ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति को भी उजागर किया गया है, जिसमें अंततः स्वयं का ही नुकसान परिलक्षित होता है! अतः सर्वे भवन्तु सुखीनः, सर्वे भवन्तु निरामया, वाली नीति को आत्मसात् करने की नितांत आवश्यकता है। कल्याण तभी संभव है।
वंदना जोशी की कहानियों में अनेक युगीन समस्याओं को उकेरा गया है, जिसमें आधुनिकीकरण का अतिप्रभाव या दुष्प्रभावों का समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना मुख्य है! साथ ही वर्ग भेद की समस्या जगह-जगह पर विद्यमान है! सामाजिक परिवेश का हमारे जनजीवन पर शीघ्र और सटीक प्रभाव पड़ना विशेषतः बच्चों पर, विचारणीय प्रश्न को खड़ा कर देता है। इनकी कहानियों में धर्म, समाज, राजनीति, संस्कृति, भाषा, पद, वर्ग भेद, आदि विषयों का संपुट है, जो हमें स्वतः सोचने पर विवश करता है कि क्या हुआ है, क्या होना चाहिए। उचित अनुचित का पाठ और उसका विशद सार इसमें निहित है! विभिन्न सामाजिक पहलुओं को पाठकों की मानसिकता से उतराते हुए उनके अंतर्मन पर भी गहराई से अधिकार दिलाने में लेखिका को सफलता मिली है। आलोच्य कहानियों में यह दिखलाने का सफल प्रयास किया गया है कि आज के इस आधुनिक सभ्य समाज में वर्ग भेद और अनैतिकता का गठजोड़ मजबूत हो गया है, जिसमें मानवीय व्यवहारों में नैतिकता को तिलांजली दे दी है।
कहानी कला की दृष्टि से देखें, तो चरित्र, संवाद, भाषा-शैली आदि के स्तर पर भी वंदना जोशी की कहानियाँ प्रभावित करती है, विशेषकर लेखिका की भाषा-साधना। कथ्य अथवा संवाद की शिथिलता को इनकी भाषा का प्रवाह सँभाल लेता है। बोलचाल की इनकी भाषा-शैली कहानी में वो सब भी व्यक्त कर जाती है, जो कथानक के फ्रेम में नहीं होता। आलोच्य संग्रह की कहानियों से गुजरते हुए इस तथ्य का अहसास हो जाता है कि वर्तमान कथा-साहित्य में वंदना जोशी शीघ्र ही सम्मानजनक स्थान बना पाने में कामयाब होंगी!
Image: Woman Reading in a Garden
Image Source: WikiArt
Artist: Mary Cassatt
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