समाजसेविका शीला सिन्हा
- 1 October, 2021
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समाजसेविका शीला सिन्हा
श्रीमती शीला सिन्हा का जन्म 1 दिसंबर 1931 को छपरा में हुआ था। उनका जन्म संपन्न, उच्चकोटि के शिक्षित परिवार में हुआ। उनके पिता डॉ. बटुक प्रसाद वर्मा सिविल सर्जन थे और माता पार्वती वर्मा थी जो गृहणी के साथ समाज सेविका भी थी। बड़े होते हुए शीला सिन्हा में इतने संस्कारों का समावेश रहा कि वे बहुत स्वाभाविक तरीके से समाज सेवा, साहित्य, कला गृहकार्यों में कुशलता प्राप्त करती गईं। समाज सेवा, लोगों से मिलना-जुलना, उनकी मदद करना आदि गुण उनके जीवन में परिणत होते गए। उन्होंने ही बताया कि वे 16 वर्ष की आयु से ही अपनी माँ पार्वती वर्मा के साथ समाज सेवा में जुड़ गई थीं।
अखिल भारतीय महिला परिषद (All India Womens Confrence, AIWC) बिहार राज्य शाखा की स्थापना 1928 में हुई थी। पटना में 1929 में अखिल भारतीय स्तर के सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह सम्मेलन दूसरा राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन था, जिसे सिन्हा लाइब्रेरी ने बिहारी महिला से खचाखच भरे हॉल में किया गया था। उस सम्मेलन के केवल दो उद्देश्य थे, एक स्त्री शिक्षा और दूसरा सामाजिक न्याय और बदलाव। इसी सम्मेलन में सामाजिक सुधार के रूप में शादी की उम्र को कानूनन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील होने को संकल्प लिया गया। उसी समय से बिहार शाखा एक महत्त्वपूर्ण समाज सेवी संस्था स्थापित हो गई।
श्रीमती शीला सिन्हा की माता श्रीमती पार्वती वर्मा अखिल भारतीय महिला सम्मेलन बिहार शाखा की सदस्य थी। शीला सिन्हा 16 साल के अपने किशोर वय से ही समाज सेवा में अपनी माँ का साथ देने लगी थी। 1950 में बिहार शाखा की सदस्य बनी। 1959 में इस शाखा की उप सचिव बनीं। 1959 में श्रीमती माधवी प्रसाद ने पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्रांगण में वहाँ के चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों के बच्चों के लिए एक स्कूल की स्थापना की। श्रीमती शीला सिन्हा माधवी प्रसाद के साथ पटना मेडिकल कॉलेज में स्कूल की स्थापना एवं चलाने में कार्यरत थीं। यह शीला सिन्हा के लिए पुरानी जगह थी, वे इसी मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल में पली, बढ़ीं क्योंकि उनके पिता डॉ. बी.पी. वर्मा पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल के भारतीय मूल के पहले सिविल सर्जन थे। डॉ. बी.पी. वर्मा पटना के ही नहीं पूरे भारत के भारतीय मूल के पहले सिविल सर्जन थे। उसके पहले अँग्रेज ही सिविल सर्जन हुआ करते थे। शीला सिन्हा बताती थी कि उनके बचपन में पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल चकाचक साफ रहता था और इस हॉस्पीटल का इलाज अव्वल दर्जे का था। 1959 में जब शीला सिन्हा और माधवी प्रसाद स्कूल खोलने आते तो हॉस्पीटल की हालत बदल चुकी थी; कर्मचारियों में भी कर्मठता की बहुत कमी थी। दोनों को गंदगी और अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दो साल इन लोगों ने स्कूल चलाया, फिर म्युनिसिपैलिटी ने यह स्कूल ले लिया।
1961 में शीला सिन्हा की माता जी श्रीमती पार्वती वर्मा बिहार शाखा की अध्यक्षा थी। उन्हीं की अध्यक्षता में 1961 में पटना में एक ‘महिला शिल्पकला केंद्र’ की स्थापना हुई। इस केंद्र में महिलाओं को रोजगार सिखाने के लिए एक अहली का सेंटर बना। इस केंद्र का संचालन श्रीमती शीला सिन्हा को और इनकी जिठानी श्रीमती प्रेमलता सिन्हा को दिया गया। इस केंद्र को चलाने के लिए एक प्रशिक्षिका तो थी ही किंतु यह केंद्र जल्दी और अच्छी तरह चले इसके लिए शीला सिन्हा बताती थी कि वे खुद सिलाई में साथ देती थी। शीला सिन्हा इस केंद्र की निरीक्षिका एवं अध्यक्षा 20 वर्षों तक रही, बाद में श्रीमती प्रेमलता सिन्हा इसकी अध्यक्षा बनी और यह संस्था आज भी चल रही है। इसका सामान विदेशों तक जाता है। 1962 में इस शिल्पकला केंद्र ने सेनानियों के लिए भारत-पाकिस्तान युद्ध में, स्वेटर बिने और कपड़े सिले। बिहार शाखा ने राशि एकत्रित की और राहत कार्य श्रीमती शीला सिन्हा के निर्देशन में किया गया।
शीला सिन्हा कई अन्य संस्थाओं से भी जुड़ी थीं। 1965 में वे बिहार काउंसिल ऑफ वीमेन संस्था की सदस्या बनी। उसमें यह कई वर्षों तक कार्यकारिणी सदस्या एवं कोषाध्यक्षा रहीं। 1966 में अखिल भारतीय महिला परिषद की पटना शाखा की स्थापना हुई। इसकी दो शाखाएँ जिसमें एक बिहार राज्य शाखा रही और दूसरी पटना शाखा। पटना शाखा में पटना शहर और जिले के भीतर के केंद्र शामिल थे। बिहार राज्य शाखा में पूरे बिहार के सुदूर स्थित ग्रामीण केंद्र शामिल थे। दोनों शाखाएँ साथ-साथ मिलकर काम करती थी। परिषद की प्रत्येक शाखा में स्वावलंबी होने के लिए एक उत्पादन केंद्र जरूरी है। अधिकतर ये शाखाएँ अपने क्षेत्र के स्थानीय उद्योगों का सहारा लेती हैं जिसमें इनकी अपनी अच्छी पकड़ होती है, जैसे मिथिला पेंटिंग, सिक्की द्वारा टोकरी चटाई बनाना, भागलपुर में तस्सर सिल्क का काम, गया शाखा में बेहतरीन पापड़ बड़ी फुलौरी बनाने का काम इत्यादि। शीला सिन्हा इन केंद्रों के सामान मँगवाती थी और अपने स्तर से उनकी बिक्री करवाती थी। यह सारे सामान उनके संपर्क की वजह से विदेशों तक भेजे जाते थे।
1964 में बिहार शाखा की प्रतिनिधि सभा श्रीमती लक्ष्मी मेलन की अध्यक्षता में की गई। माननीय श्री अनंतशयनम अयंगर (बिहार के राज्यपाल) इस सभा के मुख्य अतिथि थे। इस सभा के आयोजन में श्रीमती शीला सिन्हा का बड़ा हाथ रहा।
1966 में कुछ राशि इकट्ठा कर जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड में भेजी गई। शीला सिन्हा ने राशि इकट्ठा करने में भारी सहयोग दिया। 1967 का वर्ष बिहार के लिए आपदा का समय था। बिहार भंयकर बाढ़ की चपेट में था एवं शाखा का मुख्य कार्य राहत पहुँचाना था। राजगीर, नालंदा एवं किऊल के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा श्रीमती कृष्णा जमैयार सचिव ने किया। माननीय जयप्रकाश के नेतृत्व में राहतकार्यो के लिए एक ऑर्डनेन्स कमिटी बनाई गई। घर-घर घूमकर राहत कार्य हेतु सामग्री बटोरी गई। सस्ती रोटी की दुकान चलाई गई। शीला सिन्हा इतने बड़े घर की बेटी बहू होते हुए सस्ती रोटी की दुकान में रोटी बनाती थी। सुखाड़ के बाद बाढ़ आ गई जिसमें शाखा ने राहत सामग्री बाँटने का काम किया।
1968-69 गाँधी शताब्दी वर्ष था। डॉ. कलावती त्रिपाठी के नेतृत्व में बिहार शाखा ने इसे आयोजित किया। 1969 में एडवोकेट श्रीमती शांतिलता प्रसाद जो पटना की सक्रिय सचिव थी, उन्होंने एक निःशुल्क विधि सलाह केंद्र खोला। इस केंद्र को चलाने में शीला सिन्हा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
1970 बिहार शाखा के लिए एक सक्रिय साल था। इस वर्ष अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए–
क – डॉ. शीला शरण द्वारा सप्ताह में दो बार निःशुल्क स्वास्थ्य परामर्श एवं इलाज का केंद्र खोला गया।
ख – जुलाई 1970 में श्रीमती ए. वहाबुद्दीन (केंद्र) की अध्यक्षता में स्त्रियों की समस्याओं पर एक सेमिनार आयोजित हुआ।
ग – काउंसिल ऑफ वीमेन द्वारा आयोजित सेमिनार ‘शिक्षा के क्षेत्र में समाज सेवकों की भूमिका’ विषय में सभी सदस्यों ने भाग लिया।
घ – श्रीमती बरुआ (बिहार के राज्यपाल श्री डी.के. बरुआ की पत्नी) की अध्यक्षता में एक रिलीफ कमिटी का गठन हुआ जिसके द्वारा खाद्य सामग्री और कपड़े वितरित किए गए। इन सभी कार्यक्रमों के आयोजन में श्रीमती शीला सिन्हा की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रहती थी। 1971 नवंबर में बंगलादेश के शरणार्थियों के लिए–
(क) राहत पहुँचाने हेतु एक आनंद मेला का आयोजन हुआ जिसमें मात्र 20,000 रुपये की राशि एकत्रित की गई। गया में 300 गर्म कपड़े एकत्रित कर भेजे गए एवं बच्चों की शिक्षा का इंतजाम किया गया।
(ख) 1971 भारत-पाक लड़ाई के समय जवानों के लिए स्वेटर बनाकर भेजे गए जिसका पूरा निर्देशन एवं संचालन शीला सिन्हा ने किया। स्वेटर सही बनाकर यथास्थान भेजने का सारा काम उन्होंने बड़ी तत्परता से किया। 1972 में बढ़ती मँहगाई के विरुद्ध मौन जुलूस निकाला गया, जिसमें शीला सिन्हा तथा अन्य सदस्याओं ने भाग लिया। 1975 में बाढ़ राहत के लिए शीला सिन्हा ने एकत्रित कर बाढ़ पीड़ितों के लिए शाखा की ओर से भेजे। 1976 में अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष के तत्त्वावधान में दहेज प्रथा के विरुद्ध बैठक का आयोजन किया गया तथा समाज कल्याण बोर्ड से अनुदान प्राप्त कर सेक्रेटेरियल कोर्स को चलाने में शीला सिन्हा अग्रसर रहीं। 1977 में अखिल भारतीय महिला परिषद के पचासवीं वर्षगाँठ पर बिहार शाखा, पटना में अखिल भारतीय महिला परिषद का ऐतिहासिक अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया। यह सम्मेलन श्रीमती कलावती त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। सभी सदस्याओं को कुछ-कुछ जिम्मेदारी सौंपी गई। शीला सिन्हा के हिस्से में खाना बनवाना और खिलाना आया। शीला सिन्हा पूरे आयोजन में रसोईघर में बैठकर संचालन करती रही। हमारी पुरानी सदस्याएँ बताती हैं कि उस तरह का भव्य आयोजन अखिल भारतीय महिला परिषद के इतिहास में न हुआ और न होगा। हर बार भोजन इतना स्वादिष्ट परोसा जाता कि उसे सदस्याएँ अभी तक याद करती हैं। यह वर्ष अखिल भारतीय महिला परिषद (AIWC) की संस्थापिका माग्रेट कजिन का शताब्दी वर्ष भी था जिसे बिहार शाखा ने अत्यंत उत्साह से सफलतापूर्वक आयोजित किया।
1978 में 2 अक्टूबर से बिहार सरकार द्वारा चलाए गए वयस्क शिक्षा के 30 केंद्र खोले गए, जिसके संचालन का जिम्मा बिहार शाखा को दिया गया। 1979-80 में बिहार शाखा ने वयस्क शिक्षा का कार्यक्रम दो सालों तक चलाया। 1981 में शार्टहैंड टाइपिंग का प्रशिक्षण बिहार राज्य शाखा की ओर से किया गया जिसे सदस्याओं ने सफलतापूर्वक चलाया। 1982 में बिहार शाखा और पटना शाखा विधिवत अलग हो गईं। बिहार राज्य शाखा की अध्यक्षा श्रीमती कलावती त्रिपाठी और उपाध्यक्ष श्रीमती शीला सिन्हा मनोनीत हुई। पटना शाखा की अध्यक्षा श्रीमती उमा सिन्हा बनी।
1983 में कार्यक्रम चलते गए और कई शाखाओं में लड़कियों को सिलाई एवं शार्टहैंड टाइपिंग के प्रशिक्षण दिए जाते रहे। 1984-85 धुम्ररहित चूल्हे का काम नासरीगंज, दानापुर में आयोजित हुआ। 20 मास्टर और 20 क्राफ्टसमैन का प्रशिक्षण हुआ। इन प्रशिक्षित मास्टर और क्राफ्टसमैन के निर्देशन में 500 धुम्ररहित चूल्हे हरिजन बस्तियों में निर्मित किए गए। 1986-89 के दौरान बिहार राज्य शाखा ने पटना, भोजपुर, तिलौथू, नवादा, वैशाली में 10,000 धूम्ररहित चूल्हों का निर्माण कराया। ये सारे कार्यक्रम लगातार 45 वर्षों तक नियमित रूप से चलते गए। 1992 तक शीला सिन्हा बिहार राज्य शाखा द्वारा सुनियोजित कार्यक्रमों में भाग लेती रही। अपने शाखा के अधीनस्थ शाखाओं का मार्गदर्शन करती रहीं।
1992 में बिहार राज्य शाखा का चुनाव कई वर्षों बाद हुआ इसमें श्रीमती शीला सिन्हा अध्यक्षा, डॉ. श्रीमती शीला शरण उपाध्यक्षा एवं श्रीमती मालती प्रसाद कोषाध्यक्षा चुनी गईं। अध्यक्षा होने के बाद श्रीमती शीला सिन्हा नई स्फूर्त्ति से काम करने लगी। 1993 में शीला सिन्हा के नेतृत्व में कपार्ट (CAPART) द्वारा वित्त प्रदत्त अ.भा.म.प. केंद्र द्वारा संचालित 6 दिवसीय ग्रामीण प्रबंधन पाठयक्रम चलाया गया, जिसमें अधीनस्थ शाखा की सदस्याओं और अन्य संस्था की सदस्याओं को प्रशिक्षित किया गया।
1993 में ही बिहार राज्य शाखा ने शीला सिन्हा की अध्यक्षता में केंद्र द्वारा वित्त प्रदत्त ‘एड्स (AIDS) प्रशिक्षण का एक साप्ताहिक कोर्स चलाया जिसमें पटना और शाखाओं की सदस्याओं का गहन प्रशिक्षण हुआ। फिर इन प्रशिक्षित सदस्याओं ने ‘एड्स जागरुकता अभियान बिहार के सुदूर क्षेत्रों में चलाया। यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा जिसकी चर्चा आज भी की जाती है। 1994 में फरवरी माह में शीला सिन्हा की अध्यक्षता में बिहार राज्य शाखा ने अपने ग्रामीण अंचल के तिलौथू शाखा में अखिल भारतीय महिला परिषद पूर्वी क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन की मुख्य अतिथि हमारी केंद्रीय अध्यक्षा श्रीमती शोभना राणाडे और विशिष्ट अतिथि केंद्रीय कोषाध्यक्षा श्रीमती कलावती त्रिपाठी थी। (2016 में श्रीमती राणाडे को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया)। वह सम्मेलन बहुत सुंदर ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित किया गया। इसी सम्मेलन में सदस्याओं की पंचायती राज अधिनियम (1992) की जानकारी दी गई।
1994-95 में बिहार राज्य शाखा की एड्स प्रशिक्षित सदस्याओं ने बिहार के सुदूर क्षेत्रों में जाकर एड्स जागरूकता अभियान चलाया। 1994 में बिहार राज्य शाखा ने 45 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षित किया। 1995 के मध्य में बिहार राज्य शाखा ने Reacher Programme आयोजित किया, जिसमें एड्स जैसे जानलेवा बीमारी से बचाव कैसे करें का संदेश गाँवों तक पहुँचाया गया। 1996 में बिहार राज्य शाखा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में श्रीमती शीला सिन्हा पुनः अध्यक्षा चुनी गईं, श्रीमती इला प्रसाद सचिव, विद्या कुमारी राय सह सचिव और कुमकुम सक्रिय रही। इस वर्ष मधुबनी जिले के अरेर शाखा एवं लोहरदगा में द्विवर्षीय ‘Non Formal Education & Skill Developement’ का Course चलाया गया। इस कार्यक्रम में शिक्षा के साथ सिलाई सिखायी गई। यहाँ की लड़कियाँ आज अपने पैरों पर खड़ी हैं।
1999 के चुनाव में डॉ. श्रीमती शीला शरण अध्यक्षा, विद्या कुमारी राय सचिव व कुमकुम नारायण कोषाध्यक्षा चुनी गईं। श्रीमती शीला सिन्हा हमारी संरक्षिका बनी। 1999-2002 के बीच कुमकुम नारायण, शर्मिला सेन मजुमदार और विद्या राय ने पूरे बिहार राज्य की शाखाओं में अखिल भारतीय महिला परिषद द्वारा चलाए गए धुम्ररहित चूल्हे एवं सौर ऊर्जा द्वारा संचलित लाइटिंग सिस्टम का निरीक्षण किया। इस अभियान में 10,000 से अधिक धुम्ररहित चूल्हे 1000 से अधिक सौर्य लाइट सिस्टम लगाए गए। 2002 के चुनाव में श्रीमती इंदु सिन्हा अध्यक्षा, मनोरमा सिंह उपाध्यक्षा, विद्या कुमारी राय सचिव और कुमकुम नारायण कोषाध्यक्षा बनीं। श्रीमती शीला सिन्हा संरक्षिका के पद पर रहीं। वे अपने घर में बिहार राज्य शाखा की बैठकें करवाती और जितने भी बाहर कार्य किए जाते उन सबका पूरा ब्योरा लेती थी। संरक्षिका बनने के बाद भी शीला सिन्हा की बिहार राज्य शाखा के प्रति निष्ठा एवं कार्यशीलता में कोई कमी नहीं हुई। जिस तत्परता से वे 1959 में बिहार शाखा में कार्य करती थी, वही शक्ति उनमें 75वें वर्ष में प्रवेश के बाद भी प्रदर्शित होती।
2005 के चुनाव में श्रीमती मनोरमा सिंह अध्यक्षा, विद्या कुमारी राय सचिव और कुमकुम नारायण कोषाध्यक्षा बनीं। श्रीमती शीला सिन्हा संरक्षिका रही। शीला सिन्हा की कर्मठता का एक पहलू यह भी था कि बिना Chartred Accountant की ट्रेनिंग के बावजूद उनका एक-एक पैसे का हिसाब बिलकुल पक्का रहता था। 1963 में जब वे बिहार शाखा की कोषाध्यक्षा बनीं, उस समय से उन्होंने शाखा की वित्तीय बागडोर पकड़ी उसे बड़ी जिम्मेदारी से सँभाला। वे बताती हैं कि 1963 में जब वे कोषाध्यक्षा बनीं तब शून्य बैलेंस से वित्तीय भार सँभाला। 1993 आते-आते बिहार शाखा के पास डेढ़ लाख रुपये का Fixed Deposit एकत्रित हो गया था। अब ये राशि ढाई लाख से ऊपर एकत्रित हो गई है, जिसमें से समय-समय पर बाढ़ राहत में योगदान दिया गया।
2010 के बाद से शीला सिन्हा 80 के दशक में आ गई थी। उम्र का तकाजा होने के बाद भी बिहार राज्य शाखा के कार्यकलापों में उतनी रुचि रखती थी। जब वे पटना के बाहर आयोजित कार्यक्रमों में भाग नहीं ले सकती थीं तब भी वे आयोजित कार्यक्रमों एक-एक विवरण माँगती थी। जब और कहीं मीटिंग की व्यवस्था नहीं होती तब वे अपने घर पर मीटिंग की व्यवस्था करवाती और बेहतरीन नाश्ता, चाय तथा पानी द्वारा मीटिंग संपन्न होती थी। वह घर की जिम्मेदारियों के कारण पटना से बाहर आयोजित सम्मेलनों में भाग नहीं ले पाती थीं। इसके बावजूद परिषद के हर एक सम्मेलन की उन्हें पूरी जानकारी रहती थी। वे पटना की सदस्याओं के अतिरिक्त बिहार राज्य शाखा के अधीनस्थ सब शाखाओं की सदस्याओं से संपर्क रखती थी। ग्रामीण शाखाओं की समस्याओं को सुनती थी और सब सदस्याओं का उनके घर में स्वागत था।
श्रीमती शीला सिन्हा की उदारता का वर्णन नहीं किया जा सकता। उनका निवास अ.भा.म. केंद्र से आई प्रत्येक अधिकारी का अतिथि-गृह होता। यह सर्वविदित था जो भी बाहर से सदस्याएँ आयेंगी वे श्रीमती शीला सिन्हा की मेजबानी में रहेंगी। शाखा के पास राशि की कमी तो रहती ही थी और है भी, शीला सिन्हा उनके आतिथ्य का भार अपने ऊपर ले लेती थीं। यह भी आश्चर्य की बात है कि श्रीमती शीला सिन्हा पटना के बाहर अ.भा.म.प. के एक भी सम्मेलन में उपस्थित नहीं हुई, किंतु वे केंद्र से लेकर हर एक प्रदेश की मुख्य कार्यकर्त्ताओं से परिचित थीं। वह एवं उनकी सहयोगियों जैसे श्रीमती कृष्णा जमैयार, श्रीमती कलावती त्रिपाठी, श्रीमती सुशील सिन्हा, डॉ. शीला शरण, इला प्रसाद, इंदु सिन्हा जैसी कर्मठ, समाज सेविकाएँ इस सदी में नहीं हो सकती। इन लोगों का बिहार राज्य शाखा के सतत विकास में अवर्णनीय योगदान रहा। उन्हीं लोगों की तपस्या के फलस्वरूप आज बिहार राज्य शाखा फल-फूल रही है।
श्रीमती शीला सिन्हा की सुंदरता, व्यक्तितव और व्यवहारशीलता अतुलनीय थी। उनके घर में बड़े से बड़े व्यक्ति एवं छोटी से छोटी हस्ती का बराबर स्वागत होता था। उनके हर एक काम जैसे खाना बनाना, सिलाई, कढ़ाई, बिनाई एवं साहित्य में रुचि और ज्ञान में जो उत्कृष्ठता थी वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है। वे एक कुशल गृहणी, आदर्श पत्नी, गौरवमयी माता, निष्ठावान समाज सेविका और सर्वजन हिताय मानव स्वरूपा थीं। वह इस धरती पर सुंदर, उत्कृष्ट, संपन्न गौरवमयी नारी स्वरूप का चित्रण करने आई और सबको लाभांवित करके चली गईं।
Image Source : Personal collections of Pramath Raj Sinha and Family