काढ़ती है रोशनी

काढ़ती है रोशनी

साँझ होते क्रोशिया से
काढ़ती है रोशनी
खुशबुओं के फूल पहने
गाती हैं अंगुलियाँ।

हरी चादर में लिपटकर
सो रहे हैं बाध-वन
तितलियाँ लाई चुराकर
मौसमों से बाँकपन

पेड़ पर बनते घरौंदे
खुश हुई है डालियाँ।

गाड़ डाले मेघने जब
रंग सारे बैगनी
लाज से भर अलसियों ने
बिछाई वह आसनी

खेत में मिलती हवा से
झुक रही हैं बालियाँ।

देखती है जिद हवा की
उड़ाएगी ओढ़नी
माथे पर आसमान की
धुनष सी भौहें तनी

इन दालान-खिड़कियों पर
किरन बनती जालियाँ।


Original Image: Vegetable Garden at Hermitage near Pontoise
Image Source: WikiArt
Artist: Camille Pissarro
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork