सीमाओं में

सीमाओं में

सीमाओं में रह कर चल
अच्छा पहले अंदर चल

सब तन-तनकर चलने लगें
इतना भी मत झुककर चल

छूना है आकाश अगर
बाँध बोरिया-बिस्तर चल

लेना है मंजिल का मजा
कुछ तो ठोकर खाकर चल

वह कहती पिछवाड़े आ
मैं कहता हूँ छत पर चल

ख़ुद को ख़ुद का पता न हो
मत यूँ कद से ऊपर चल

ठहरे लोग पड़ावों पर
रुक मत मेरे शायर चल

दुनिया काशी को दौड़े
मैं कहता हूँ मगहर चल!


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Artist: Ilya Repin
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