लघुकथा में संवेदना की तलाश
- 1 December, 2021
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लघुकथा में संवेदना की तलाश
लघुकथा की लंबी यात्रा में समय-समय पर कुछ ऐसे लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है जिनसे न सिर्फ लगातार लघुकथाएँ लिख रहे हैं बल्कि लघुकथा समीक्षा के क्षेत्र में कुछ गंभीर और ठोस कार्य से इस विधा की गंभीरता को स्थापित करने में मदद मिली है। इस फेहरिस्त में डॉ. ध्रुव कुमार की हाल ही में प्रकाशित आलोचना पुस्तक ‘हिंदी लघुकथा का शास्त्रीय अध्ययन’ विशेष उल्लेखनीय है। यह सुखद है कि लघुकथा में अब आलोचना की किताबें भी आने लगी हैं, जिनसे संभावनाओं के द्वार और खुल गये हैं।
आलोच्य पुस्तक में ‘विकास की राह दिखाती लघुकथाएँ’, ‘गत शताब्दी और वर्तमान समय का दर्पण दिखाती लघुकथाएँ’, ‘हिंदी लघुकथा में संवेदना’, ‘संवेदना के स्तर पर लघुकथा को ऊँचाई देती लघुकथाएँ’, ‘अलिखित को सार्थक शब्द देती लघुकथाएँ’, ‘लघुकथा को श्रेष्ठ बनाने में शीर्षक की भूमिका’, ‘हिंदी लघुकथाओं में व्यंग्य-चित्रण’, ‘हिंदी लघुकथाओं में बुजुर्ग पात्रों का चरित्र चित्रण’, ‘नए-नए प्रयोगों में सौंदर्य ग्रहण करती लघुकथाएँ’, ‘हिंदी लघुकथा के समीक्षा बिंदु’ और ‘छह ऐसे जो भुलाए ना भूलें’ शीर्षक से कुल ग्यारह आलेख हैं। सभी आलेखों में लघुकथाओं के उदाहरणों के साथ विश्लेषण किया गया है।
वस्तुतः यह पुस्तक लघुकथा को भली-भाँति जानने-समझने का उपक्रम है।
आलोच्य पुस्तक के प्रथम आलेख में लेखक ने अपना ध्यान 21वीं सदी में लिखी जा रही लघुकथाओं पर ही केंद्रित किया है।
अगला आलेख है–‘हिंदी लघुकथा में संवेदना’। अब बिना संवेदना के तो कोई साहित्य की सोच भी नहीं सकता। वह समाचार, रिपोर्ट वगैरह भले बन जाए, रचनात्मक श्रेणी में नहीं आएगा, यह सामान्य-सी बात है। फिर भी कुछ लोगों को इस ‘संवेदना’ को ही समझने में परेशानी होती है। ‘संवेदना’ से पूर्व ‘अनुभूति’ को समझना अनिवार्य है। और इसी क्रम में वह अनेक वरिष्ठों की लघुकथाओं का इसी बिंदु पर आलोचना करते ‘संवेदना’ को स्पष्ट करते हैं कि पाठक संवेदना के तात्पर्य को समझ जाता है। संवेदना को और स्पष्ट करने के लिए वह ‘संवेदना के स्तर पर लघुकथा को ऊँचाई देती लघुकथाएँ’ आलेख में कहते हैं–‘संवेदना शुद्ध जल की भाँति झिलमिलाती है।’ इसके लिए उन्होंने श्याम सुंदर अग्रवाल के 66 लघुकथाओं को चुना है, जो ‘पड़ाव और पड़ताल’ में संकलित हैं। उनका यह अंत्यपरीक्षण अंततः लघुकथा साधनेवाले साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसी आधार पर वह कहते हैं–‘श्याम सुंदर की अधिकांश लघुकथाएँ विशेषरूप से संवेदनापरक लघुकथाएँ आनेवाली पीढ़ियों हेतु मानक बन सकती हैं।’
आलेख ‘नए-नए प्रयोगों से सौंदर्य ग्रहण करतीं लघुकथाएँ’ में आलोचक ध्रुव स्पष्ट करते हैं–‘अभी तक कतिपय अपवादों को छोड़ दें तो स्वयं लघुकथा-लेखक ही इसके इतिहास एवं शास्त्र पर बराबर कुछ-न-कुछ कार्य करते रहे हैं और यह कोई अस्वाभाविक प्रक्रिया नहीं है। प्रत्येक विकासशील विधा के साथ ऐसा ही होता आया है।’ इस बात को और स्पष्ट करने और विकास-यात्रा को बताने के लिए वह आगे कहते हैं–‘शास्त्रीय पक्ष को लेकर प्रायः विवाद होने लगते हैं। लघुकथा भी इसका अपवाद नहीं रही। इन विवादों पर विचार-विमर्श करने हेतु होशंगाबाद, जलगाँव, अमलनेर, पटना, बरेली, फतुहा, हिसार, डाल्टनगंज, सिरसा, राँची, गया, रायपुर, धनबाद, बोकारो, इलाहाबाद इत्यादि शहरों में सम्मेलन, गोष्ठियाँ और संगोष्ठियाँ होती रहीं, यह क्रम आज भी जारी है।’
समीक्षा-कर्म के अंतर्गत डॉ. ध्रुव ने महत्त्वपूर्ण सलाह दी है, जिन पर ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। इसके लिए वह क्रमशः कथानक, कथात्मकता, शिल्प, रंजनात्मकता, संवेदना, यथार्थता, उद्देश्य, शीर्षक आदि की चर्चा करते समीक्षा हेतु तटस्थ अवलोकन की बात कहते हैं। अपनी बात पूरी करने के लिए वह समीक्षा हेतु बीस बिंदुओं की भी चर्चा करते हैं, ताकि समीक्षक पथ-भ्रष्ट न हो पाये। और यहाँ उनसे असहमत होने की कोई गुंजाइश नहीं बनती। अंतिम आलेख ‘छह पात्र ऐसे, जो भुलाए न भूलें’ इस रूप में महत्त्वपूर्ण है कि हमारी पात्रों के देखने-पढ़ने की समझ विकसित हो। जानकीवल्लभ शास्त्री, चित्रा मुद्गल, सतीशराज पुष्करणा, मिथिलेश कुमारी मिश्र, मधुकांत और कुणाल शर्मा के लघुकथाओं के पात्रों को उन्होंने अपने फोकस में ले उनका विश्लेषण किया है, जो रोचक तो है ही, ज्ञानवर्धक भी है। ऐसी बात नहीं कि अन्य लघुकथाकारों के लघुकथाओं में ऐसे पात्र नहीं। यहाँ डॉ. ध्रुव स्पष्ट करते अपनी सीमाएँ बताते हैं–‘मैंने अबतक जितनी लघुकथाओं का अध्ययन किया है, उनमें अनेक लघुकथाकारों की अनेक-अनेक रचनाएँ ऐसी थीं कि उसके पात्रों पर कलम चलाई जा सकती थी, किंतु विवशता यह थी कि मात्र छह पात्रों का ही चुनाव करना था तथा एक लघुकथाकार की किसी एक ही लघुकथा के पात्र के चरित्र पर प्रकाश डालना था।’
आलोचना की गंभीर पुस्तक होने के बाद भी इसमें रोचकता बरकरार है। इसका कारण यह है कि इसकी भाषा सरल और स्वाभाविक है। ऐसी पुस्तकें बहु-उपयोगी, सार्थक व मार्गदर्शक होती हैं।
Image: Still Life French Novels and Rose
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
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