कटे जंगल की मिट्टी रो रही है

कटे जंगल की मिट्टी रो रही है

कटे जंगल की मिट्टी रो रही है
लकड़हारे को फाँसी हो रही है

उसी से लहलहाएगा मुकद्दर
तेरी सुहबत जो मुझमें बो रही है

यही क्या कम है हर पत्थर की मूरत
युगों से आस्थाएँ ढो रही है

बगावत पर उतर आई है धोबिन
जो उजला है उसी को धो रही है

ये कैसा शोर मायावी है जिसमें
हर इक आवाज जादू खो रही है

जलन होने लगी है धूप को भी
पसरकर छाँव ऐसे सो रही है


Image: The Woodcutter after Millet
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
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