मुहल्ले की लड़कियाँ
- 1 March, 2015
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- 1 March, 2015
मुहल्ले की लड़कियाँ
आपस मे गूँथी
दोनों हथेलियों को
माथे पर रखकर
जब गुजरते थे
मुहल्ले की गली से
तब निकल आते थे
पंख उल्लास के
और तन-मन
दोनों हो जाते थे–-
प्रफुल्लित।
और घुसते ही
मुहल्ले की गली में
गाने लगते थे
मनपसंद गाना–-
‘बहारों फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है!’
या फिर
‘चंदन सा वंदन
चंचल चितवन।’
दिन तब सचमुच
सुनहले थे
और सुनहली धूप में
खिलने लगती थीं
मन की कलियाँं
और अच्छी लगती थीं–-
मुहल्ले की लड़कियाँ!
अदृश्य आकर्षण की डोर से
बंधे भी थे–-
हमदम की तरह।
बहती थी प्रेम की अंतःसलिला
गुपचुप सरस्वती नदी की तरह
लेकिन जानता था
प्रेमिका नहीं बन सकती
मोहल्ले की लड़कियाँ
फिर भी अच्छी लगती थीं
मोहल्ले की लड़कियाँ
ब्याह कर
चली गईं दूर देश
मुहल्ले की लड़कियाँ
और लड़के भी तो
हो गए जलावतन
करने को नौकरियाँ।
…फिर वर्षों तक
नहीं भेंटाती
मुहल्ले की लड़कियाँ।
और अचानक कभी कोई
मिल भी जाती है तो
भौंचक रह जाता हूँ देखकर
भरी पूरी औरत में
तब्दील हो गई
मुहल्ले की लड़कियाँ।
मैं भी तो हो गया हूँ
किशोर से युवा
युवा से अधवयसु
फिर भी पहचान लेती हैं
मिलने पर मुहल्ले की लड़कियाँ
चाल-ढाल से
न हो तो आवाज से।
एक बार फिर से
गाना चाहता हूँ
मुहल्ले की गली में
प्रवेश करते हुए
वही मनपसंद पुराना गाना
‘बहारों फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है’
और ‘चंदन सा वदन
चंचल चितवन’।
अब शायद
निस्तब्ध रात में ही
यह हो पायेगा संभव
कि गली से गुजरते हुए गाऊँ गाना
और गाते-गाते करूँ याद
मोहल्ले की लड़कियाँ।
Image: Brides Toilet
Image Source: WikiArt
Artist: Amrita Sher-Gil
Image in Public Domain