नीम का तेल

नीम का तेल

जिस दिन मैंने
इस दुनिया में आकर
प्रदूषण भरी स्वांस लिया
उसी दिन मेरे बप्पा ने
दरवाजे पर इस नीम के
पेड़ को लगाया था
मेरी अम्मा ने बताया था।
बेटा होने पर नीम का एक पेड़
और बेटी होने पर
पाँच पेड़ नीम के
रोपने की प्रथा है
मेरे घर-गाँव में।

नीम का पेड़
अब बड़ा हो गया है
उसकी टहनियाँ
हरी पत्तियों से सजी हैं
डालियों पर झूले डालकर
बच्चे झूलते हैं
मैं भी झूलता हूँ
नीम की टहनियों के साथ।

सुबह-सुबह लाठी से
नीम की दुबली टहनियाँ
दातून के लिए
तोड़ते देख दुख होता है।
टहनी को दुख होता है
या नहीं, पता नहीं
परंतु लोग उसकी
दातून बनाकर
मुख शुद्ध करते हैं
दातों की सफाई करते हैं
जीभ की गंदगी हटाते हैं
और दिनभर प्रसन्न रहते हैं।
ऐसे अनुभव से शायद
नीम कहती होगी,
‘परोपकाराय सतां विभूतया।’

नीम जब गदराने लगती है
सफेद फूल खिलने लगते हैं
मन प्रसन्न हो जाता है
उसकी सुगंध से
और आशा बंध जाती है
कि नीम में फल लगेगा।

फलों से तेल निकलेगा
और दिया में भरकर
दीपावली मनाएँगें
घर में बच्चों को पढ़ने के लिए
रसोई में भाई को खाना बनाने के लिए
और ओसारे में बैठकर हम लोगों को
बप्पा के साथ खाने के लिए
अँधेरा दूर कर देता
दिया में भरा नीम का तेल
बाती के साथ जल जलकर!


Original Image: Oil bottle
Image Source: WikiArt
Artist: Jan Mankes
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork

जियालाल आर्य द्वारा भी