विश्वास तुम्हीं पर कर पाया
- 1 April, 2015
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- 1 April, 2015
विश्वास तुम्हीं पर कर पाया
क्यों मेरे प्यासे प्राणों में आलोक न कोई भर पाया
आकाश कुसुम थे, फिर भी मन विश्वास तुम्हीं पर कर पाया।
जब जब सम्मुख तम गहराया, मन सदा तुम्हारी शरण गया
संघर्षों में, तूफानों में, तुमसे ही मन का मरण गया,
सुख की तन्मयता में भी तो मन की निष्ठा की राह रही
बिन जाने, बिन पहचाने भी, सर्वत्र तुम्हारी छाँह गही,
कोई भी और नहीं मेरे मन की व्याकुलता हर पाया
तुम मृग जल थे, फिर भी तो मन विश्वास तुम्हीं पर कर पाया।
मेरी असफलताओं पर तुम अपनी छाया छोड़ा करते
शंकित-कंपित मन को तुम अपनी ओर सदा मोड़ा करते,
मेरे कर्मों की सरिता का तुम नीर नाचकर रह जाते
मँझधार पड़ी तरिणी को तुम तट का आभास दिखा जाते,
मैं इन भँवरों की छटपट में डूबा मन लेकर उतराया
इन आवर्तों में भी तो, मैं विश्वास तुम्हीं पर कर पाया।
अनुभूति तुम्हारे ही बल की मेरी गति में नाचा करती
तुम बिन अँधियारे मानस की अनुगूँज तुम्हें राँचा करती,
छोड़े न छुड़े तुष्णाओं के कुछ छोर, अभी तक इस मन की
तुम तक न अभी तक आ पाई रेखा मेरे अपनेपन की,
मेरी संतप्त पुकारों ने अब तक न तुम्हारा स्वर पाया
फिर भी मेरे दाता, मैं तो विश्वास तुम्हीं पर कर पाया!
*
(जन्म : 1 मई, 1915 ई. निधन : 13 अक्तूबर, 1995 ई.)
Image : Old Man in Prayer
Image Source : WikiArt
Artist : Rembrandt
Image in Public Domain