जिस्म से बिछड़ी हवा यानी हवा में मिल गए

जिस्म से बिछड़ी हवा यानी हवा में मिल गए

जिस्म से बिछड़ी हवा यानी हवा में मिल गए
टूट पुर्जो में जो बेग़ाने हवा में मिल गए

हसरतों के पाँव को दरकार क्या होगी ज़मीं
जब चढ़े परवान बेमानी हवा में मिल गए

पास थे क़ातिल और मैं भी जान पर खेला किया
दाँव सब उलटे पड़े यानी हवा में मिल गए

उम्र भर मझधार का खटका सताता ही रहा
आखिरत में हम भी तूफ़ानी हवा में मिल गए

खिड़कियों दरवाज़ों पर तो थी नज़र पर क्या करें
घर के बामो-दर ही बेमानी हवा में मिल गए

पैराहन1 तो ले उड़ी पागल ज़माने की हवा
बे-लिबासी और उर्यानी2 हवा में मिल गए

मंदिरों-मस्जिद से यूँ उम्मीद टूटी ‘विप्लवी’
जो हुए मज़्हब भी बे-पानी हवा में मिल गए


1. पहनावा, 2. नंगापन


Original Image: Mountain Peak with Drifting Clouds
Image Source: WikiArt
Artist: Caspar David Friedrich
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork

बी.आर. विप्लवी द्वारा भी