आलोचकों की नज़र में तेजेंद्र शर्मा

आलोचकों की नज़र में तेजेंद्र शर्मा

नामवर सिंह

मुर्दाफरोश लोग हर जमात में होते हैं। पूँजीवाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। अपनी इस (क़ब्र का मुनाफ़ा) लाजवाब कहानी में तेजेंद्र शर्मा ने वैश्विक परिदृश्य में पूँजीवाद की इस प्रवृति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी हैं।

कृष्णा सोबती

तेजेंद्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। उनके पात्र ज़िदगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिए नया रास्ता तलाश करते हैं। उनकी कहानी ‘टेलिफोन लाइन’ का अंत हमें मंटो की कहानियों की तरह झकझोर देता है। वह बाहरी दुनिया की कहानियाँ लिखते हैं जिनमें चरित्र होते हैं और डायलॉग का खूबसूरत प्रयोग किया जाता है।

राजेंद्र यादव

तेजेंद्र को आर्ट नैरेशन की गहरी समझ है। वह बखूबी जानते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अंतर्द्वंद्वों, संबंधों की जटिलताओं को कैसे कहानी में रूपांतरित किया जाता है। तेजेंद्र की कहानियाँ परिपक्व दिमाग की कहानियाँ हैं।

असगर वजाहत

तेजेंद्र शर्मा विसगतियों के शिल्पी हैं। उनकी कहानियाँ समाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक विसंगतियों को जिस तरह सामने लाती हैं और जैसा मार्मिक वातावरण निर्मित करती हैं–वैसा कम ही देखा जाता है। दूसरी बात यह लगी कि तेजेंद्र बहुत सरलता और सहजता से गहराई में उतरते हैं और अपना सार्थक ‘कमेंट’ करने के बाद जितनी सरलता से नीचे उतरे थे, उतनी ही सरलता से ऊपर आ जाते हैं। लगता है एक नटखट और शरारती बच्चे ने माँ-बाप की आँख बचाकर कोई शरारत कर दी है और आप अपने चेहरे पर मासूमियत के सभी भाव ले आया है। वे केवल विमर्श के कहानीकार नहीं हैं। उनमें संवेदना का जो बहाव है वह पाठक को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

ममता कालिया

तेजेंद्र शर्मा की कलम से कहानियाँ फुलझड़ियों की तरह छूटती हैं, जिंदगी से ठसाठस भरी, घटनाओं की धकापेल के साथ भारत परदेश के अनुभवों के ताने-बाने में बँधी और बुनी हुई। इन कहानियों के रचनाकार की बेचैनी, बेबाकी और जिंदादिली तीनों का पता चलता है। संग्रह (कब्र का मुनाफा) की प्रत्येक कहानी में नए अनुभव खंड हैं। अधिकांशतः ये भारत छोड़कर गए उन लोगों की व्यथा कथाएँ हैं जिनके अंदर देस की मिट्टी की महक अभी बची हुई है, लेकिन रोजगार के गम उन्हें वापस आने से रोकते हैं। तेजेंद्र शर्मा शब्दों का इस्तेमाल कहानी को विकसित करने में स्प्रिंगबोर्ड की तरह करते हैं। इससे कहानी में स्मार्टनेस पैदा होती है और पाठक की रुचि बनी रहती है।

परमानंद श्रीवास्तव

तेजेंद्र शर्मा की कहानियाँ जीवनधर्मी हैं। वे जीवन के गहरे अंधकार में धँसती है और जीवन के लिए एक मूल्यवान सच बचा लेती हैं। कहानी तेजेंद्र शर्मा के लिए समय को समय के पार देखने की प्रेरणा देती है।

पुष्पा भारती

तेजेंद्र की कहानियाँ ऐसी कि आपको लगे ही नहीं कि कहानी पढ़ रहे हैं। ऐसा कि आप जिंदगी का ही कोई टुकड़ा इन पात्रों के माध्यम से फिर दोबारा जी रहे हैं। कुछ पात्र तो ऐसे कि आपके दिमाग की नसें खींच-खींच कर तान दें और कहें–उठो जिंदगी यों ही जाया मत करो। भाषा ऐसी सीधी सरल कि आपको पता नहीं चलेगा कि लेखक आपको झिंझोड़ रहा है और कह रहा है–कुछ ठोस करने की बात सोचो। दुनिया तुम्हारे अपने निजी दायरे के आगे भी है। उसे भी समझने की चेष्टा करो और फिर ऐसा कुछ कर गुजरो कि तुम्हारा कृतित्व किसी दूसरे की जिंदगी गुलजार कर दे। यह सब इसलिए हो पाता है कि तेजेंद्र शर्मा की कोई भी कहानी नहीं होती, वरन हमारे साथ एक संवाद होती है। हमारे अंदर के एक बेहतर इनसान को जगाने की कोशिश होती है।

प्रेम जनमेजय

तेजेंद्र शर्मा की कहानियों को पढ़ना आसान नहीं है। ये कहानियाँ आपका रिश्ता एक ऐसे दर्द से जोड़ देती हैं जो आपकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है। ऐसे में तेजेंद्र की कहानी नहीं रह जाती है; वह अपनी रचनात्मकता के साथ आपके रगो-रेशे में बस जाती है। दर्द से रिश्ता आसान नहीं है, पर ये तो ऐसा दर्द है जो करुण रस का सुख देता है, जो जीवन को एक व्यापक सोच देता है और एक विशाल फलक पर मानवीय मूल्यों से साक्षात्कार कराता है।

ज्ञान चतुर्वेदी

तेजेंद्र शर्मा के पास किस्से भी हैं और किस्सागोई भी। भाषा से खेलना भी उन्हें बढ़िया आता है। उर्दू, हिंदी, ठेठ लोकभाषा तथा प्रवासी हिंदी-भाषी की अपनी अँग्रेजी-दाँ हिंदी का सटीक इस्तेमाल करके वे चुटीले संवाद बनाते हैं और कहानी की भाषा में वह रवानगी कायम रखते हैं जो पाठक को कथा से बाँधे रखती है।

हरि भटनागर

तेजेंद्र में राजनीतिक परिदृश्य ठस रूप में नहीं आता और इसके वे हिमायती भी नहीं हैं। कह सकते हैं, तेजेंद्र ने आपातकाल के बाद के यथार्थ के बहुत ही सूक्ष्म रूप में–उसकी स्याह छाया को जिया है। तेजेंद्र जो जैसा दिख रहा है, उसे नहीं, वरन् उस यथार्थ को प्रस्तुत करते हैं जो आदमी के अंदर, उसकी पीड़ा में है। इस तरह तेजेंद्र शोषित-पीड़ित या कहें ऐसे आदमी को प्रस्तुत करते हैं जिसे पूँजी ने अपनी काली छाया से पूरी तरह कायांतरित कर दिया है जो इनसान से एक दर्जा नीचे जीने को अभिशप्त हैं।…तेजेंद्र आदमी की पीड़ा को रो के, बिलख के नहीं, वरन् हँस-हँस के कहने के हिमायती हैं जो एक तरह से भारतीय जातीय परंपरा ही पहचान है, जो जोर-जुल्म-उत्पीड़न के बाद भी हारी तो है लेकिन टूटी नहीं है।

शंभु गुप्त

एक तरह से देखा जाए तो सेक्स तेजेंद्र शर्मा की कहानियों का प्रस्थान बिंदु और गन्तव्य दोनों ही है। इस क्रम में सबसे उल्लेखनीय तथ्य यही है कि तेजेंद्र स्त्री-पुरुष संबंधों के इस आधारभूत फलक को जीवंतता और नवनवोन्मेष का केंद्रीय कारक मानते हैं। सेक्स तेजेंद्र में एक एडवेंचर की तरह आता है, लेकिन वह यहाँ जीवन की एकरसता और ठसता को तोड़ने के एक संसाधन के बतौर भी सामने आता है। और इससे भी बड़ी बात यह कि सेक्स यहाँ सचमुच ही जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि या केंद्रीय अनुभूति के रूप में चित्रित हुआ है। कथित सामाजिक मर्यादाएँ, नैतिकताएँ, वर्जनाएँ आदि या तो इसके आड़े आती नहीं और आती भी हैं तो उनका कोई तात्विक महत्त्व नहीं।

कृष्ण कुमार

तेजेंद्र की कहानियों की एक और विशेषता यह है कि वे अपने पात्र एवं उनसे जुड़े कथानक भारत से ना उठा कर उस परिवेश से लेते हैं जिसमें वे रहते हैं–जीते हैं। तेजेंद्र की कहानियाँ परिवेशपरक होती हैं। नॉसटेलजिया में ही ना रहना प्रवृति का अंग बन गया है और होना भी चाहिए। केवल संचित स्मृतियों के आधार पर तो नहीं जिया जा सकता है। अभिमन्यु अनत के ‘लाल पसीना’ की तरह वे स्थानीय सरोकारों और बातों को अपनी कहानियों का माध्यम बनाते हैं। जटिल-प्रवासी तेजेंद्र का मानना है कि प्रवासी साहित्य वह है जिसमें उस जगह के सरोकार हों जहाँ कि रचनाकार रह रहा हो। इस बात को लेकर तेजेंद्र ने एक मुहिम सी छेड़ रखी है जो अच्छे परिवर्तन नजर आ रही है और प्रवासी साहित्य को भारत के प्रकाशक अब गंभीरता से लेने लगे हैं।


Image : The Open Book
Image Source : WikiArt
Artist : Juan Gris
Image in Public Domain

रामयतन यादव द्वारा भी