नामसुख
- 1 August, 2016
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-namsukh-by-musafir-baitha/
- 1 August, 2016
नामसुख
वर्ण श्रेष्ठतापरक अहं में
पले-पगे दो सज्जन
एक ही दफ्तर में करते थे काम
वे बड़े ही मनुहार से एक दूजे को
पुकारा करते थे
ले जाति श्रेष्ठताबोधक उपनाम
आपस के लिए
उनका संबोधन था–पंडित
जबकि उनके नाम का
कतई हिस्सा नहीं था–पंडित
उनका आपसी स्वनाम पुकार–व्यापार
मुझ वर्णाधम को भी बेतरह भाया
इसमें मैंने नाम-सुख पाया
सो मैंने भी अपने लिए उनसे
गाँधी–प्रिय पुकारू नाम–हरिजन
कहकर बुलाने का अनुरोध फरमाया
इस पर उन दोनों ने
पहले तो ठहाका लगाया
पर न जाने क्यों एकबारगी
उनके चेहरे का रंग उतर आया
कहाँ तो वे मेरा सुझाव पकड़ते
उन्होंने दिया एक-दूसरे को
पंडित कहना ही छोड़।
Image : Two Men Walking in a Landscape with Trees
Image Source : WikiArt
Artist : Vincent van Gogh
Image in Public Domain