अगर मैं खोया बहुत कुछ तो

अगर मैं खोया बहुत कुछ तो

अगर मैं खोया बहुत कुछ तो बहुत पाया भी
कभी-कभी तो मिला मूल का सवाया भी

डुबो गया जो बचाने के बहाने मुझको
बहादुरी का उसी ने ख़िताब पाया भी

ज़मीर बेचकर कश्कोल[1] का सौदा न किया
इसी फ़कीरी ने ख़ुद्दार यूँ बनाया भी

न अश्क आँख से सूखे न दिल की आह गई
ये मुफ़लिसी ही मैं विरसे में माँ पाया भी

जिसको सींचा था वह इतना बढ़ा कि अब उसका
हुआ है अपनी रसाई[2] से दूर साया भी

ये प्यार आदमो-हव्वा की निशानी ठहरा
इसी ने ‘विप्लवी’ दुनिया हसीं बनाया भी


[1]. भिक्षापात्र

[2]. पहुँच


Image : Head of a Poet Wearing a Cap
Image Source : WikiArt
Artist : Luca Signorelli
Image in Public Domain

बी.आर. विप्लवी द्वारा भी