शब्दों की बारात

शब्दों की बारात

जब-जब कुछ सुनते हैं
कुछ समझते हैं और
कहना चाहते हैं बहुत कुछ
तब-तब क्यों
मौन पसर जाता है मध्य

क्या कोई नई कविता
गढ़ने के लिए
या कही जा चुकी
कोई कविता
मनन करने के लिए

जब ढेरों संवाद
अकुला रहे होते हैं अव्यक्त
मानस में
कर रहे होते हैं संवाद निरंतर
भीतर ही भीतर

जिनकी कानों को भी
नहीं लग पाती भनक
वे दमित शब्द
और उनका मौन
चिंघाड़ता हुआ प्रकट होता है
कविता में

और कविता होती है
उन चिंघाड़ते हुए
शब्दों की बारात…


Image : Mann Und Weib
Image Source : WikiArt
Artist : Albin Egger Lienz
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