मैं हूँ हवा

मैं हूँ हवा

मैं हूँ एक हवा का झोंका
मस्ती से मेरा अनुबंध
इधर चली अब उधर उड़ी
इतने से मेरा संबंध।

मेरा कोई आकार नहीं है
न मेरा है कोई रंग
दामन में निज खुशबू समेटे
मैं तो हूँ औघर अनंग।

मलयानिल बन कभी चलूँ मैं
सबको बाँटूँ विपुल उमंग
हिमगिरि से जब मैं नीचे उतरूँ
लाऊँ शीतलता अपने संग।

कभी पछुआ की बन बहार
बादल बन हो जाऊँ अनंत
कभी पुरवैया का झोंका बन
मादकता फैलाऊँ दिग्दिगंत।

पीपल के गोल पत्तों में डोलना
वैजयंती का फैलाना मकरंद
अमलतास के झूमर संग झूमना
मुझको है बेहद पसंद।

लहर-लहर लहरा कर चलना
मेरी आदत मेरा उत्कंठ
थोड़ी मनमौजी थोड़ी बावली
मस्ती में डूबी रहती आकंठ।

कभी विनाश का तांडव छेड़ूँ
करूँ जो अपनी मौन मैं भंग
देख अपार शक्ति का जलवा
दुनिया रह जाती है दंग।

बड़े वृक्ष धराशायी कर डालूँ
तोड़ूँ ऊँचे-ऊँचे तटबंध
बन काल का दूत विनाशक
नष्ट कर डालूँ सारे प्रबंध।

कभी-कभी मुझको है भाता
बने रहना मौन निष्कंप
कभी बवंडर बनकर नाचना
मचा देना चहुँ ओर हड़कंप।

मेरे दम पर धरती की शोभा
जीवन का मैं ही अंतरंग
मैं न रहूँ तो निपट विरानी
जीवन क्रम हो जाए भंग।


Image : Tempest. Rain.
Image Source : WikiArt
Artist : Isaac Levitan
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