गठबंधन
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- 1 February, 2022
गठबंधन
जोरों की झमझम बारिश देख मुक्ता की इच्छा हो रही थी कि वह देर तक बैठकर इस टिप-टिप स्वर को सुनती रहे। इस स्वर के ताल में ताल मिलाकर वह अपने सारे दुःख भूल जाया करती थी। प्रकृति का यह नजारा उसे अपने बचपन में लेकर चला जाता था। वह ग्रीष्म ऋतु के बाद की पहली बरसात थी। सोंधी मिट्टी की खुशबू से भींगी हुई हवा सबके तन मन को अपने साथ बहाकर दूर तक ले जा रही थी। हर बार की तरह वह भी अपने भाइयों के साथ नीचे उतरी। मोहित और मनीष इधर-उधर भागने लगे। उसे माँ की हिदायत याद आई ‘यहाँ वहाँ दौड़ना नहीं बस एक जगह रहना और थोड़ा भींगकर वापस आ जाना।’ उसे माँ पर क्रोध आया, सारे नियम सिर्फ उसी के लिए होते हैं, इन बानरों को तो कोई कुछ नहीं कहता। तभी पवन ने उसे देखा ‘वहाँ क्यों खड़ी हो? आ जाओ? डर रही हो क्या भींगने से? कोई फूल नहीं हो जो मुरझा जाओगी?’ उसने उसे देखभर लिया, कुछ नहीं कहा। पवन उसके सामने आया और हाथ पकड़ कर खींचने लगा। उसे गस्स आया ‘छोड़ो मेरा हाथ’ अब पवन ने उसे गौर से देखा, वह उदास लग रही थी ‘क्या हुआ, ठीक तो हो?’
‘हाँ माँ ने कहा है भाग दौड़ मत करना, बड़ी हो गई हो तुम’ जोर-जोर से हँसने लगा वह ‘अच्छा बड़ी हो गई हो। मुझे तो नहीं दीख रहा है, तुम तो उतनी ही बड़ी हो।’ फिर कुछ सोचकर उसने कहा ‘चलो पीछे की तरफ, वहाँ आंटी नहीं देखेगी।’ वे चले गए, खूब देर तक दोनों भींगते रहे। पूरी तरह गीली होने के बाद मुक्ता को माँ की याद आई और वह जल्दी से दौड़कर अपने घर चली गई, माँ ने पूछा ‘किधर मैंने देखा नहीं?’
‘माँ सीढ़ी के जीने में थी, सिर्फ आते वक्त…’
उसके भींगे कपड़ों की ओर देखते हुए माँ ने कहा ‘अच्छा जाओ, जल्दी से कपड़े बदलो।’ बात छोटी-सी थी पर कुछ वर्ष के बाद उसी बात ने कुछ अलग रूप ले लिया। चार-पाँच वर्ष बीत गए होंगे। सावन का महीना था। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी इंद्र देव अपनी कृपा इस लोक पर बरसाने के लिए प्रस्तुत थे। मुक्ता नौवीं में पहुँच गई थी, अपने बदलते तन-मन से वाकिफ थी। वह स्कूल से घर लौट रही थी। इतनी तेज बारिश थी कि स्कूल बस से उतरकर आने में ही वह आधी भींग गई थी। जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। पवन और दोनों भाई भी साथ थे, पवन ने कहा ‘मुक्ता चलें भींगने पीछे की तरफ?’
‘एक लगाऊँगी न सारे होश ठिकाने आ जाएँगे।’
‘अरे तुम तो ऐसे भड़क रही हो जैसे मैंने कोई?’ सही में उसका इरादा नेक था उसके जेहन में कोई भी ख्याल नहीं था बस एक यादगार के सिवा, किंतु मुक्ता का भड़कना उसे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। बहुत सारी बातें मन को मथने लगी और उसे लगने लगा कि मुक्ता का साथ उसे अच्छा लगता है। उसके बाद से वह हमेशा मुक्ता के नजदीक आने के अवसर ढूँढ़ता रहता, किंतु यह इतना सरल नहीं था। स्कूल में वह सीनियर था, दोनों के ब्लॉक अलग-अलग थे। घर के आस-पास दोनों भाई राहु-केतु की तरह बहन को कभी भी अकेला नहीं छोड़ते, पता नहीं जान बूझकर या अनजाने में? जब देखो साये की तरह उसके साथ ही रहते।
मुक्ता का ध्यान भंग हुआ। वह अपनी छोटी-सी बालकनी में बैठी थी पर देर तक बैठ पाना उसके नसीब में नहीं था। उद्विग्नता उसे चैन से बैठने नहीं दे रही थी। वह उठकर सोनी के कमरे में चली गई ‘क्या हुआ माँ? तुम इतनी बेचैन क्यों हो? चाय बना दूँ?’
‘हाँ बना दे।’
सोनी को मालूम है जब तक पापा आ नहीं जाएँगे। माँ यों ही यहाँ से वहाँ परेशान आत्मा की तरह भटकती रहेगी। सोनी उठकर चली गई। मुक्ता वहीं बैठ गई। टेलीविजन चलाया। कुछ देर देखा फिर मन भटकने लगा। वह बालकनी में चली गई। घनघोर वर्षा के कारण पूरा परिवेश गीला हो चुका था। नीचे सड़कों पर यहाँ-वहाँ पानी जमा हो गया था। जो बच्चे शोरगुल करते हुए नीचे नहा रहे थे, वे खूब भींगकर अपने-अपने घरों में जा चुके थे। कलरव करते तरह-तरह के पक्षी गण भी देर तक अपनी प्रसन्नता, पुलकता प्रकट कर थक कर शांत हो गए थे। नीरवता पूरे वातावरण पर अपना साम्राज्य फैला चुकी थी। वर्षा की टिप-टिप करती संगीतमय ध्वनि भी अपने सारे राग बिखेर कर रसहीन हो गई थी। देर तक एक ही रस में सराबोर होकर चर-अचर सब उबने लगे थे और नूतनता की कामना करने लगे थे। बारिश के बाद के स्वच्छ, साफ अंबर की प्रतीक्षा करते हुए सभी लोग अपने-अपने नित्य कर्मों में लग गए थे, किंतु मुक्ता क्या करे? उसका तो मन कहीं टिक ही नहीं रहा था। मुक्ता को अपना कैशोर्य अवस्था याद आने लगा। उस दिन की साधारण-सी घटना के बाद पवन उससे मिलने के लिए बेचैन रहने लगा। मुक्ता उससे बचने की कोशिश करती क्योंकि वह समझ चुकी थी कि पवन के मन में कोई तो शरारत छुपी बैठी है और अकेली पाने पर पता नहीं क्या कहे? उसने कई-कई बार देखा था कि अब पवन उससे मिलने के बहाने बनाता है, पर मिलने पर उससे सहज तौर पर सामान्य बातें भी नहीं कर पाता। एक अजीब तरह की लज्जा दृष्टि उस पर हावी रहती थी और वह उसे छुपाने की भरसक कोशिश करता, जिसे सबसे तो छिपा लेता पर मुक्ता से न छिपा पाता। मुक्ता इस दृष्टि से बचना चाहती थी क्योंकि इससे वह बहुत बेचैन हो जाती थी। जैसे वह कोई गलत रास्ते की ओर बढ़ रही है और उसे अभी ही न रोका गया तो फिर रोक पाना उसके वश के बाहर की बात हो जाएगी। मानो इस दृष्टि के जरिये पवन चोरी-चोरी, आहिस्ते-आहिस्ते सबकी नजर बचाकर उसके मन-मंदिर की पवित्रता को नष्ट करने में लगा है। सबसे अचंभित करने वाली बात यह है कि वह भी उस कलुषता की ओर जाने के लिए बाबली होती जा रही थी। मन के इस भटकाव को रोकने के लिए उसने भाइयों की मदद ली। किंतु उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। कुछ ही समय के बाद मनीष ने कहा ‘दीदी वे लोग जा रहे हैं।’
‘कहाँ?’
‘अंकल ने घर खरीद लिया है। अपने घर में शिफ्ट हो रहे हैं।’
‘अच्छा है काफी दूर है।’ मोहित ने जोड़ा।
‘बढ़िया है।’ मुक्ता ने भरसक मुस्कुराते हुए कहा। वह बेचैन हो गई कम से कम एक बार मिल लेती अकेले में।
किंतु वह जमाना अलग था। लड़कियों की तरफ से कुछ भी करना या कहना नामुमकिन था। लेकिन उसका मन जानता था कि बिना मिले वह नहीं जा सकता है लेकिन कैसे? कोई न कोई तो रास्ता अवश्य निकालेगा। पवन ने काफी यत्न किया और कोई रास्ता न देख उस दिन सारी हदें पार कर दी। जाने से एक दिन पहले वे सब प्रतिदिन की ही तरह स्कूल से लौट रहे थे। पवन ने बड़ी ही निर्भीकता दिखाई, भाइयों को साफ-साफ कहा ‘मुझे मुक्ता से अकेले में कुछ बात करना है।’ भाइयों ने बहन की ओर देखा और बहन का इंगित पाकर धीमे-धीमे ऊपर बढ़ने लगे। मुक्ता रुक गई, उसके हृदय की गति तेज हो गई। पवन ने मुक्ता का हाथ पकड़ कर कहा ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, तुम्हारे सिवाय किसी के बारे में सोच भी नहीं सकता हूँ, तुम मेरा इंतजार करना। समय आने पर…’ और एक नजर से उसे देख भर लिया। मुक्ता ने डरकर आँखें नीची कर ली और भागकर ऊपर चली गई। भाइयों ने पूछा तो उसने कह दिया कि कह रहा था अब तुम्हें भाइयों के साथ की जरूरत नहीं वह बहुत दूर जा रहा है। दोनों भाई निश्चिंत हो गए किंतु मुक्ता की रातों की नींद उड़ गई। उस कलुषता में उसे पवित्रता दिखने लगी। निर्मल, पावन प्रेम जिसके लिए संसार में व्यक्ति का जन्म होता है। उसकी इच्छा हो रही थी कि किसी भी तरह उसे जाने से रोक ले। उसके जाने के बाद उसके जीवन में चारों तरह अँधेरा बिखर जाएगा। किंतु निदान दोनों में से किसी के पास नहीं था। समय बदलते गए किंतु उसकी यादें नहीं गईं, बारिश होने पर उसका मन बहुत उदास हो जाता। काश वह भी अपनी रजामंदी बता दी होती उस दिन तो शायद? कुछ वर्षों के बाद उस दिन भी झमाझम बारिश हो रही थी। मुक्ता को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। मुक्ता उदास मन से तैयार हो रही थी। दोनों भाई छेड़ने में लगे थे। कोई भी उसके दिल के सावन-भादो को नहीं देख पाया। उसने मन ही मन सोचा ‘अगर बात पक्की हो गई तो आज से उसके बारे में सोचने पर भी पाप लगेगा।’ उनके आने के कुछ ही देर बाद मोहित आया ‘दीदी तुम तो बर्बाद हो गई, तुम्हारी जिंदगी तो।’
‘…लेकिन हुआ क्या?’
मोहित चुप हो गया सोचने लगा किस तरह बताये? तभी मनीष आया ‘दीदी कोई बात नहीं तुम सीधे मना कर देना, पता नहीं पापा ने बताया क्यों नहीं?’
‘लेकिन क्या? इस तरह इशारे में क्या बातें कह रहे हो साफ-साफ कहो।’
‘तुम्हें याद है कुछ वर्ष पहले जो तुम्हें तंग करता था पवन? वही है।’
‘क्या सच?’ मुक्ता ने बड़ी-बड़ी आँखों को और बड़ा करते हुए आश्चर्य और प्रसन्नता मिश्रित वाणी में पूछा।
‘हाँ सच…लेकिन तुम कहो तो मैं ही मना कर दूँ?’
‘नहीं…नहीं, रहने दो, माँ-पापा ने सोचा है तो सही ही होगा।’ दोनों गौर से उसका मुँह देखने लगे थे। कितनी खूबसूरत रही उसकी जिंदगी? किंतु पता नहीं विधाता ने क्या लिखा है उसकी बिटिया की किस्मत में?
मुक्ता शादी के बाद भी अत्यंत खुशहाल रही। तीन बच्चे एक एक कर उसके आँगन में खेलने लगे। बड़ी बिन्नी, छोटी सोनी और सबसे छोटा बंटी। खुशहाल समय सोन चिरैया की भाँति पंख लगाकर उड़ते जाते हैं। देखते-देखते बच्चे बड़े हो गए। बड़ी बिन्नी का सौंदर्य फूल की खुशबू की तरह चहु दिशा में फैलने लगा और घर बैठे-बैठे योग्य वर मिल गया। बैंक में बड़े ओहदे पर था। मुक्ता बेटी को और पढ़ाना चाहती थी किंतु पवन ने कहा कि पढ़ना होगा तो शादी के बाद पढ़ लेगी, इतना सुंदर रिश्ता बार-बार नहीं आएगा। धूमधाम से शादी हो गई।
सोनी घर के कामों में निपुण थी, पढ़ाई में अच्छा करना उसके वश में नहीं था। किसी तरह बी.ए. की डिग्री हासिल कर ली। वह देखने में बिन्नी के टक्कर की तो नहीं थी लेकिन सुंदर थी। बस विधाता ने उसकी लंबाई में कुछ इंच कम कर दिए थे। यही कम इंच पूरे घर की परेशानी का सबब बन कर रह गया था। जब माँ पापा ने देखा कि बी.ए., एम.ए. से ज्यादा यह कुछ नहीं कर पाएगी तो सोचा समय पर शादी कर देते हैं। जब उन्होंने लड़का देखना आरंभ किया तो समस्या इतनी गंभीर नहीं लगी थी। एक दो जगह बात टूटने पर पवन को कुछ आभास हुआ और उसने खोजने की प्रक्रिया तेज कर दी, किंतु आठ-नौ जगह जब सारी बातें होने के बाद बात लंबाई के कारण टूट गई तो सभी प्राणी नैराश्य की ओर बढ़ने लगे। अब छह वर्ष हो चुके हैं समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है। घर की खुशी पर ग्रहण लग गया है। ‘माँ चाय, कहाँ खोई हो?’
‘कुछ नहीं बेटा, वैसे ही।’
‘माँ शादी होना बहुत जरूरी है क्या?’ माँ को समझ नहीं आया क्या कहे? ‘पापा से कहो, जब होनी होगी हो जाएगी। इस तरह पापा का परेशान होना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं नौकरी कर रही हूँ। अच्छे से रह रही हूँ, खुश हूँ, फिर आप और पापा क्यों इस तरह? मुझे नहीं करनी शादी।’ मुक्ता ने कहा ‘ऐसे अशुभ बात नहीं कहते हैं बेटा’ तभी बेल बजी। मुक्ता दौड़कर गई, पवन के चेहरे को देखकर उसे समझ आ गया कि बात नहीं बनी। वह चुपचाप वापस चली गई। किचेन में जाकर चाय का प्याला चढ़ाया। राजेंद्र जी वहीं सोफे पर बैठ गए। पवन अंदर गए इस तरह छुपकर कि बिटिया पर नजर न पड़े। उन नजरों का सामना करने की ताकत वे धीरे-धीरे खोते जा रहे थे। उस दृष्टि में हीन भावना कभी न हो इसके लिए वे कितने सजग हुआ करते थे किंतु अब वे खुद पूरी तरह लाचार हो गए हैं।
सोनी ने अपने को दोषी मान लिया है। वह हमेशा अपनी तुलना दीदी से करती है। उसे लगता है कि बचपन में भी दीदी ने कभी माँ-पापा को तंग नहीं किया, बहुत ही शांत स्वभाव की थी लेकिन उसने हर मोड़ पर माँ-पापा को दुःख ही दुःख दिया है। पापा उसे देखकर और उदास हो जाते। मुक्ता दोनों को उदास देख कर घर के माहौल को यथासंभव खुश रखने का यत्न तरह तरह से करती लेकिन अकेले में आँसू पर काबू नहीं कर पाती। उसके गालों पर सूखे अश्रु की भनक पवन को भी लगती और वे दूने उत्साह से दूसरे अच्छे वर की खोज में लग जाते। राजेंद्र जी को चाय का प्याला पकड़ाती हुई मुक्ता ने कहा ‘भाई साहब चाय।’
‘आ हाँ पवन कहाँ रह गया?’
‘शायद कपड़े बदलने गए हैं। आप बहुत थके लग रहे हैं।’
‘लड़के वालों की दलीलें सुनकर इतना क्रोध आता है कि तन-मन सब थक जाता है, इच्छा तो होती है कि खूब खरी-खोटी सुना दूँ पर उससे क्या फायदा?’
‘क्या करें भाई साहब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे को क्या दोष दें?’
‘नहीं भाभी सोनी तो हीरा है, हीरा। बस परखने वाले नजर की देर है। आप बिल्कुल भी मायूस न हों, देखना हीरा को हीरा ही मिलेगा।’ पवन कपड़े बदल कर आ गए। दोनों दोस्त इधर-उधर की बातें करने लगे। पापा ने सोनी को आवाज लगाई, बिटिया आई ‘बेटा लड़का तुमसे मिलना चाहता है।’
‘पर पापा मैं कोई नुमाइश की चीज थोड़ी ही हूँ।’ फिर उसने कुछ सोचकर कहा ‘ठीक है बैंक में मिल लूँगी, वहाँ तरह-तरह के लोग आते हैं।’ राजेंद्र उठकर जाने लगे, जाते-जाते बोले ‘सोनी हीरा को परखकर ही हाँ कहना, मेरी सोनी-सी बच्ची के लिए हीरा से कम कुछ नहीं चलेगा।’ सभी के चेहरे पर झूठी स्मित रेखा खेल गई। ‘अभी मैं वर्मा के यहाँ जाता हूँ उसने भी बताया है किसी लड़के के बारे में।’ उनके जाते ही घर में सन्नाटा छा गया, हवा साँय-साँय कर बहती हुई भयावहता का संदेश दे रही थी। वर्षा का शोर भी बंद हो चुका था, रात का सन्नाटा अंदर बाहर फैलने लगा था, सभी प्राणी अपने अपने विचारों में खोये थे। बात-चीत करने के लिए उनके पास शब्द समाप्त हो गए थे।
तभी सन्नाटा को चीरते हुए मुक्ता का फोन बजने लगा, सोनी ने दौड़कर उठाया। बात करने के बाद प्रसन्न होते हुए कहा ‘पापा दीदी कल आ रही है।’ खबर से सबके चेहरे खिल गए, नन्हा फरिश्ता आर्य के आने से उदासी की परत ऊपर से हट गई। सभी उसमें व्यस्त हो गए, दो वर्ष के बच्चे घर में हों तो किसी के चेहरे पर निराशा के भाव आने से पहले ही बच्चे की चपलता में लुप्त हो जाती है। शाम को आर्य के सो जाने के बाद बिन्नी ने कहा ‘मैं यहाँ एक मकसद से आई हूँ। मेरी मौसेरी सास का लड़का है। स्कॉटलैंड में रहता है। उसने कहा है लड़की समझदार होनी चाहिए और घर के काम में निपुण होनी चाहिए। मैंने लड़के की माँ से बात की है वे राजी हैं। हाँ मैंने थोड़ा-सा झूठ बोल दिया है।’ सोनी ने कहा ‘नहीं दीदी मैं झूठ की नींव पर शादी नहीं करूँगी। इससे तुम्हारे रिश्ते भी खराब हो जाएँगे।’
‘वह सब मैंने सोच लिया है।’
‘लेकिन दीदी शादी के बाद अगर उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या कर लेंगे हम? वैसे भी वह बाहर रहता है कोई दवाब भी नहीं रहेगा।’ दीदी सोच में पड़ गई। बात गंभीर थी। मुक्ता ने पूछा ‘तुमने क्या कहा है?’
‘मैंने कहा है कि देखने में लगभग मेरी जैसी ही है।’ पापा ने कहा ‘नहीं ऐसा कर तू सोनी को दिखा दे उन्हें।’
‘हाँ, यही ठीक रहेगा, सोनी को साथ ले जाऊँगी।’
‘ठीक है, कल कोई आ रहा है इससे मिलने बैंक में। उसके बाद चली जाना।’ लड़का सूट-बूट पहन कर बैंक आया। सोनी को हँसी आई मगर उसने शालीनता से कहा ‘आप बैठिए मैं आती हूँ।’ वे बाहर निकले कुछ देर में ही सोनी को समझ आ गया कि पैसों की लालच में उसके पापा यह शादी करवाना चाहते हैं और यह देखना-दिखाना एक नाटक है। बेटे की घर में दबंग बाप के आगे कुछ नहीं चलती इसलिए वह आ गया है लेकिन वह शादी नहीं करना चाहता है। सोनी ने कहा ‘मैं घर में मना कर दूँगी, आप निश्चिंत रहिये।’ वह दीदी के साथ गई, दीदी की सास ने उसे कभी बचपन में देखा था और उसके गुण पर रीझ गई थी। उसने ही अपनी बहन से बात चलाई थी। दीदी से पूरी बात जानने पर उसने अपनी बहन को साफ-साफ सारी बातें बता दी, बहन ने कहा ‘मैं आकर मिलती हूँ।’ दोनों बहनें निराश हो गईं किंतु उनकी निराशा लड़के की माँ ने आशा में बदल दी। वे उनकी सच्चाई से अत्यंत प्रसन्न हुई और रिश्ता पक्का कर दिया। दोनों बहनें जब लौट कर आईं तो घर खुशी से महक उठा। अगले महीने का ही दिन तय हुआ। सभी लोग तैयारियों में व्यस्त हो गए। दिनभर इस बाजार से उस बाजार, कभी दर्जी के पास तो कभी चूड़ियों की दुकान पर। रात होते-होते सबके अंग-अंग टूटने लगते। इतने कम समय में सारी तैयारियाँ। लेकिन जब व्यक्ति ठान ले तो कुछ भी करना असंभव नहीं रहता उसके लिए। सामने वाले और नीचे के दो खाली फ्लैटों में मेहमानों को टिका दिया गया। फ्लैट के सामने बड़ा-सा मैदान था उसे ही घेरकर शामियाना लगा दिया गया और उसी के बगल में घेरकर रसोई के लिए जगह बना दी गई, बीच में मंडप बना दिया गया। कल शादी है। पूरा कुनबा आ गया है। सब अपने लोगों से बातचीत करने में लगे हैं। काम करने के इच्छुक कुछ ही लोग हैं बाकी अपने-अपने मनोरंजन में व्यस्त हैं। पवन की बस यही इच्छा है कि सब ठीक-ठाक हो जाए। अपनी गुड़िया को शादी का जोड़ा पहने हुए देखने की उसकी तमन्ना पूरी हो जाए फिर वह भगवान से कभी कुछ नहीं माँगेगा।
इस एक खुशी के लिए उसे कुछ ज्यादा ही इंतजार करना पड़ा। मुक्ता के पास सोचने का वक्त नहीं है, उसकी पुलक देखने लायक है–यहाँ से वहाँ चिड़ियाँ-सी फुदक रही है, काम भी तो कभी समाप्त होने का नाम नहीं लेता। रात बीत गई, मुक्ता ने इस उगते सूरज के लिए अपने अश्रु कोष कई कई बार रिक्त कर दिए थे। काम वाला दिन चिड़िया की तरह कैसे और कहाँ उड़कर चला जाता है पता ही नहीं चलता है? सूर्य अस्ताचल में जाकर अस्तगामी होने लगे और दुल्हन सजने लगी। चाँद ने अपना वर्चस्व जमाया और शहनाइयाँ बजने लगी। दुल्हन शादी का जोड़ा पहन कर इठलाती हुई अपनी सहेलियों से घिरी थी। मुक्ता भी सज-धज कर सुहागिनों के साथ बेटी के इर्द-गिर्द मंडरा रही थी, कुछ देर में बारात आ गई। उनके स्वागत के बाद उन्हें बैठा दिया गया। कुछ देर के बाद जयमाला के लिए सभी स्टेज पर जाने लगे। मुक्ता भी मुड़ी ही थी कि सोनम आया ‘चाची चाचा तुम्हें बुला रहे हैं।’ सोनम उद्विग्न लग रहा था जैसे कोई बड़ी बात हो गई हो। वह असमंजस में उसे देखने लगी तभी सोनम ने कहा ‘चाची जल्दी चलो इट्स अर्जेंट।’ मुक्ता को लगा–किसी चीज की तैयारी में कोई कसर रह गई है या फिर लड़के वाले…? पर वे सब तो यहीं हैं फिर…। ‘चाची सोचने का वक्त नहीं है हमारे पास, जल्दी चलो’ कहकर वह बढ़ने लगा। मुक्ता रोबोट की तरह उसके पीछे गई। सोनम उसे घर ले गया। वहाँ का दृश्य देखकर उसके नीचे से धरती खिसक गई। एक पल में सारी खुशी हवा हो गई।
मुक्ता रातभर चिड़िया बनी उसी तरह फुदकती रही किंतु उस चिड़िया की जान कहीं और बेचैन आत्मा की तरह भटकती रही। लेकिन तन पूरी चौकसी से यहाँ था। लड़के वालों को खबर नहीं लगनी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि किसी को भी खबर नहीं लगे, नहीं तो कानों-कान बात को फैलने में दो पल भी नहीं लगेंगे। बड़ी होशियारी से उसने बात को सँभाला ‘चाची चाचा कहाँ हैं?’
‘शहनाई वाले को पैसा देने गए होंगे।’
‘मौसी प्लेटें गिनने को कह रहा है, मौसा को बुला रहा है।’
‘इंदौर वाले फूफा जी को कह दो, वे तो लड़के के चाचा के साथ हैं।’
‘भाभी भाई साहब कहाँ हैं?’
‘जहाँ लोग खाना खा रहे हैं वहाँ गए हैं।’
‘मम्मा पापा नहीं दिख रहे हैं।’
‘होंगे कहीं, इतने सारे काम हैं।’ लेकिन कन्यादान के समय पापा को बुलाये जाने पर वह राजेंद्र भाई साहब का मुँह देखने लगे। भाई साहब ने कहा ‘पवन ने कहा है, बड़े भाई साहब के होते कन्यादान वह कैसे कर सकता है? बिन्नी का भी तो उन्होंने ही किया था।’ लखनऊ वाले बड़े भाई साहब की बड़ी-बड़ी मूँछों के बीच से हँसी को दबाने के प्रयत्न में निकले हुए दंत पंक्तियों ने मुक्ता की अश्रुपूरित आँखों के आँसू सोख लिए, मानो कुछ देर के लिए बला टल गई हो। उसने चैन की साँस ली। उसने सुना जेठानी कह रही थी ‘कौन कहता है कि आज भाई-भाई का आपसी प्यार समाप्त हो रहा है, मेरे घर आकर देखें, आज तक पवन ने इनकी एक बात भी न टाली होगी’ कन्यादान की रश्में तो निर्विघ्न संपन्न होने लगी किंतु बड़ी देर से पापा को न देख बिन्नी का माथा ठनका। उसने गौर से माँ का चेहरा देखा और समझने की कोशिश की। माँ ने उसे देखते हुए देखा तो भरसक मुस्कुराने का प्रयत्न करने लगी लेकिन पहली बार उसकी इच्छा हुई कि जोर-जोर से रोये तभी उसने सोनी को देखा कितनी प्यारी लग रही है वह शादी के जोड़े में और दूल्हा भी कितना सौम्य है, शांत गंभीर। उसके परिवार वाले भी काफी सभ्य हैं।
कुछ देर में शादी संपन्न हो गई। मैथिल शादी में विदाई उस दिन होती नहीं है, सो मुक्ता एक ओर से निश्चिंत हो गई और खास लोगों को बुलाकर सच्चाई बता दी, फिर कपड़े बदल कर राजेंद्र भाई साहब के साथ अस्पताल चली गई। खबर फैलते-फैलते दुल्हन तक भी पहुँच गई। सोनी पापा को देखने के लिए बेकल हो गई। ‘कैसी रात है आज? कितनी सुंदर और कितनी भयावह? अगर पापा को कुछ हो गया तो…’ उसकी आँखों में अश्रु आ गए और तभी अरमानों की नौका में बैठकर विकास ने कमरे में प्रवेश किया। आँसू देख बौखला गया वह ‘क्या तुम इस शादी से खुश नहीं हो?’ सोनी ने उसे सारी बातें बता दी। उसने कहा ‘तुम माँ के पास चली जाओ।’ सोनी को अपने कानों पर विश्वाश नहीं हुआ। वह भौचक उसे देखने लगी। विकास ने कहा ‘अब हम पति-पत्नी हैं। हमारे सुख दुःख एक हैं। तुम्हारी आँखों में अश्रु के साथ हम अपने जीवन का आरंभ नहीं कर सकते। तुम जाओ और हाँ कपड़े बदल लो ताकि सब लोग न पहचाने।’ सोनी ने कपड़े बदले और माँ के कमरे में गई। वहाँ बहुत सारे लोग थे पर माँ नहीं थी। चाची ने कहा ‘तुम क्यों आई यहाँ? जाओ तुम अपने कमरे में, जाओ।’
‘माँ कहाँ है?’ किसी ने कहा ‘वे अस्पताल गई हैं।’ वह अपने कमरे में वापस चली गई।
‘क्या हुआ?’
‘माँ अस्पताल चली गई।’ सुबह के चार बज रहे थे। विकास अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल चला गया। कुछ लोग बाहर बैठे थे, माँ को देखकर सोनी रोने लगी। माँ ने उसे कहा ‘तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था, वह भी दामाद जी को लेकर।’
विकास ने पूछा ‘अब कैसे हैं?’
‘होश नहीं आया अभी तक।’ माँ रुआँसी हो गई। अपनो को देखकर मन डूबने-सा लगा। सारे धैर्य, साहस जवाब देने लगे। उसे पूरी बातें फिर से याद आई जब सोनम के पीछे-पीछे गई थी तब भी उसने स्थिति की विकटता को नहीं समझा था। किंतु पवन को छाती पकड़ कर दर्द से कराहते देख कर उसे लगा था खुद उसे ही चक्कर आ जाएगा और वह गिर जाएगी। तभी उसे अपने पापा की बात याद आई ‘बेटा जितनी कठिन परिस्थिति हो व्यक्ति को उतने ही अधिक धैर्य से काम लेना चाहिए, विकट परिस्थिति में ही आदमी की सही पहचान होती है, उस समय का लिया हुआ गलत निर्णय आदमी का सर्वनाश कर सकता है।’ उसने अपने मन को मजबूत किया। ‘सोनम भागकर मामा जी को बुला लाओ।’ सोनम चला गया। पवन ने कहा ‘नाव को मझधार में ही छोड़ कर जा रहा हूँ, अब पतवार तुम्हारे हाथों में है, गुड़िया की शादी किसी भी हाल में रुकनी नहीं चाहिए, यही मेरी अंतिम…’
‘चुप रहो और शुभ-शुभ सोचो, शादी भी होगी और तुम्हें भी कुछ नहीं होगा।’
उनके मुँह पर संतोष के भाव आए। डूबते हुए व्यक्ति को तिनके का सहारा भी बहुत उम्मीद देता है। मुक्ता ने कहा ‘हो सकता है गैस वगैरह…?’ छाती पर हाथ रखकर ही उन्होंने कहा ‘नहीं-नहीं इतना दर्द…।’ मामा जी ने ब्लड प्रेशर देखा और स्थिति की गंभीरता बताई ‘तुरंत अस्पताल ले जाना होगा।’
‘ठीक है आप और भाई साहब चले जाएँ, मैं यहाँ सँभालती हूँ।’ पवन ने कहा ‘राजेंद्र यहीं रहेगा, यह सबको पहचानता है, सोनम मेरे साथ जाएगा।’
‘सौरभ को भेज दूँ?’
‘नहीं बिन्नी को पता चलेगा तो वह…नहीं-नहीं किसी को कानों-कान खबर नहीं होनी चाहिए।’ तभी डॉक्टर बाहर आए ‘उन्हें होश आ गया है, आप उनसे मिल सकते हैं।’ इधर होश में आने के बाद से सभी घटनाएँ चलचित्र की तरह उनके दिमाग में घूम रही थी, ‘मुक्ता बहुत कोमल हृदय वाली है, कितनी जल्दी छोटी-से-छोटी बात से परेशान हो जाती है और आँसू तो उसके पलक पर ही रहते हैं। उसने तो रो रोकर सारा कुछ बर्बाद कर दिया होगा।’ उसी समय बिटिया कमरे में आई। जींस और टॉप पहने हुए। उन्होंने आँखें बंद कर ली मानो इसे देखने से अच्छा है कि मौत ही आ जाए। ‘पापा कैसे हैं आप?’ उन्होंने आँखें खोली, बिटिया के पीछे विकास और राजेंद्र भी थे। सोनी ने कहा ‘पापा अंकल सही कहते थे।’
‘क्या?’
‘मुझे हीरा मिलेगा।’ उसी समय उनकी नजर सोनी के बीच माँग पर गाढ़े नारंगी रंग के सिंदूर पर पड़ी। खुशी के अतिरेक से वे उठने ही वाले थे कि विकास ने कहा ‘अभी नहीं, अभी आप लेटे रहिए।’ उनकी आँखें कमजोरी से बंद होने लगीं किंतु बंद आँखों में भी पूरे जागती की खुशी समाई हुई थी।
Image : Rainy Day in Bandera
Image Source : WikiArt
Artist : Robert Julian Onderdonk
Image in Public Domain