सामाजिक विद्रूपताओं का कच्चा चिट्ठा
- 1 December, 2016
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- 1 December, 2016
सामाजिक विद्रूपताओं का कच्चा चिट्ठा
वैश्वीकरण के इस गलाकाट दौर में एक तरफ जहाँ समूचा संसार सिमटकर ग्लोबल विलेज (विश्वग्राम) के रूप में परिणत हो चुका है, वहीं, दूसरी ओर एक-दूसरे के दिलों की दूरियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और अमीर-गरीब के बीच की खाई चौड़ी व गहरी होती चली गई है। आजाद देश की इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कमोवेश राजशाही आज भी कायम है तथा किसी-न-किसी रूप में हर तरफ सामंत-दबंगों का ही वर्चस्व बरकरार है। हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है एवं मेहनतकश-ईमानदार जनता ‘अबरा की जोरू, सबकी भौजाई’ बनी कदम-कदम पर साँसत झेलने को अभिशप्त है। समकालीन जीवन-जगत के इन्हीं मुद्दों को अपनी कहानियों का विषय बनाया है कथाकार हृषीकेश पाठक ने सघः प्रकाशित कथा-संग्रह ‘प्लेटफॉर्म की एक रात’ में। ये कहानियाँ सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं का कच्चा चिट्ठा प्रतीत होती हैं।
समीक्ष्य संग्रह में लेखक की कुल ग्यारह कहानियाँ संग्रहीत हैं। रचनाकार के संवेदनशील अंतर्मन में सामाजिक बदलाव की बेचैन छटपटाहट है और उसकी प्रतिबद्धता सामाजिक सरोकार एवं मनुष्यता के प्रति है। यही वजह है कि संग्रह की कहानियाँ कहीं करुणा जगाती हैं, तो कहीं नए सिरे से आत्ममंथन के लिए मजबूत करती हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘प्लेटफॉर्म की एक रात’ भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबे रेल महकमें की काली करतूतों को प्याज की नाईं परत-दर-परत उधेड़ती है और साबित करती है कि रेलवे स्टेशन रात्रि में भले आदमी के ठहरने की जगह कतई नहीं है, जहाँ सरकारी संरक्षण में सरेआम लूट-खसोट, व्यभिचार व जिस्मफरोशी के धंधे चलते हैं। कई आँखों देखी हृदयविदारक घटनाओं के कोलाज पेश करने के बाद कथाकार की टिप्पणी गौरतलब है–‘मूक होती संवेदनाओं के बीच आदमी इतना स्वार्थी हो गया है कि अब घटनाओं में अपने साथ घटित घटना ही घटना लगने लगी है। अपने तक सीमित होती दुनिया में मानवता कराहने लगी है। धर्मग्रंथों अथवा महापुरुषों द्वारा मानवधर्म के बारे में लिखी अथवा कही गई बातें आज के युग में उँगली से आकाश के सीने पर लिखे हुए शब्दों की तरह ही तिरोहित होती जा रही है। इसीलिए शब्दों के भी अर्थ बदलने लगे हैं और लोग व्यष्टि में ही समष्टि को समाहित करने लगे हैं।’ मगर ऐसी वारदातें सिर्फ रात में ही रेलवे प्लेटफॉर्म पर होती हों, ऐसी बात नहीं है। लेखक ने पटना से वाराणसी तक की यात्रा में ट्रेन में जो सात घंटे गुजारे, उसका आँखों देखा हाल चित्रित किया कहानी में। ट्रेन में टी.टी.ई. की दबंगई, जेब गरम करनेवाले तथाकथित संभ्रांतों को संरक्षण, आरक्षित टिकट वाले गरीब-गुरबा के हक की हकमारी और सुरक्षा कर्मियों के द्वारा धौंस जमा यौन-शोषण व अवैध वसूली के किस्से इस यात्रा-वृत्तांत में वर्णित हैं। यानी रेल के खेल की समग्र दास्तान।
‘गोधरा के आगे’ संग्रह की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कहानी है, जो हिंदू-मुस्लिम के नाम पर गुंडे-मवालियों द्वारा मानवता के कत्लेआम की कथा है। रुखसाना का मंगेतर समीर सौ मुस्लिमों का कत्ल कर विधायकी का टिकट पाना चाहता है। सौवाँ शिकार नजर आती है रुखसाना, मगर नाटकीय घटनाक्रम में गोली रुखसाना को बचानेवाली समीर की माँ के सीने में जा लगती है और अंततः समीर का भी वही हश्र होता है। जिस रुखसाना की हत्या करने पर समीर आमादा था, वही उसका और उसकी माँ का अंतिम संस्कार मुखाग्नि देकर करती है। कहानी का अंत गहरी संवेदना जगाता है।
संग्रह में दो रेखाचित्र संग्रहीत हैं–‘सलोनी’ और ‘रेखा’। सलोनी अपनी बालसुलभ हँसी से सबको सम्मोहित करनेवाली नन्हीं परी-सी बालिका है, जो घर-परिवार, परिचित-अपरिचितों, नाते-रिश्तेदारों को मंत्रमुग्ध कर जिजीविषा से भर देती है। तभी तो लेखक सोचता है–‘इस छोटी-सी जान में कितनी जान है कि अनजान भी पहचान वाला हो जाता है और बेजान में भी जान डाल देती है।’ मानवेतर रेखाचित्र है ‘रेखा’, जो दरअसल एक कुतिया है और लेखक के हर्ष-विषाद, सुख-दुःख में एक सहधर्मिणी की-सी भूमिका अदा करती है और लेखक जब वह एक लाइलाज बीमारी का शिकार हो जाती है, तो लेखक के उलाहना के स्वर सुन हमेशा-हमेशा के लिए कहीं गायब हो जाती है। यह रचना महीयसी महादेवी वर्मा के जीवंत रेखाचित्रों की याद दिलाती है।
दलित-विमर्श और स्त्री-विमर्श की कथाएँ भी संग्रह में शामिल की गई हैं। श्राद्धकर्म में ‘यज्ञ पूरा’ का आह्वान कर भोजन करने के एवज में जब डोम मज़ाक-मज़ाक में खेत की फरमाइश करता है तो माँ का श्राद्ध करनेवाले चौधरी साहब के मुख से गाली फूट पड़ती है। पर सरला का बेटा प्रतिरोध करता है और चौधरी-पुत्र उसका माथा फोड़ देता है। कहानी का अंत इन पंक्तियों से होता है–‘जीवन में पहली बार सरला ने अपने अधिकार का प्रयोग किया और थाने में दारोगा के सामने कुर्सी पर बैठकर, चौधरी साहब के बेटे के खिलाफ उसने प्राथमिकी दर्ज कराई और गवाह में अपने छोटे बेटे, पत्नी सहित लेखक हरकिशन पटनायक का भी नाम डाल दिया।’ इसी प्रकार, नारी सशक्तीकरण की कहानी है ‘विजयिनी’, जिसकी नायिका सुंदरी अपने दम-खम और आत्मविश्वास की बदौलत अविवाहित जीवन जीते हुए महिला कल्याण के क्षेत्र में यादगार उपलब्धियों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करती है। ब्रिटिश शासनकाल की एक ऐतिहासिक कथा ‘चंद्रकालो’ जिसकी नायिका चंद्रकली बालविवाह का शिकार हो, आजीवन कँवारी विधवा के रूप में मायके में ही रहकर गोरी सरकार की तानाशाही की खिलाफत करती है और अँग्रेज सिपाहियों की गोलियों से छलनी होकर ‘अमर शहीद’ का दर्ज़ा पाती है।
निराश-हताश युवापीढ़ी को आत्मबल-जिजीविषा से भरनेवाली कथा है ‘जिजीविषा’, जिसमें दिन-रात लगातार संघर्ष करते हुए मेहनती, लगनशील, जीवटवाले युवक की अंततः लक्ष्य-प्राप्ति की लोभहर्षक कहानी वर्णित की गई है। मगर ‘मंच’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ दो ऐसी मर्मस्पर्शी कहानियाँ हैं, जो समाज का तीखा सच उद्घाटित करती हैं। ‘मंच’ का मेहनतकश मजदूर-मिस्त्री जोरन नेताजी के लिए दिन-रात खून-पसीना बहाते हुए मंच तो निर्मित कर देता है, पर उसका नवजात शिशु भी उसी के नीचे दफन हो जाता है और उसकी आवाज नक्कार खाने में तूती-सी साबित होती है। ऐसे ही, ‘हैप्पी न्यू ईयर’ मनाने शहर से गाँव गए वहशी दरिंदे ‘दीदी’ का संबोधन दे, कमली से न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म करते हैं, बल्कि उस ममतामयी माँ से उसके नवजात बेटे को भी सदा-सदा के लिए जुदा कर देते हैं।
संग्रह की कहानियाँ प्रायः घटना-प्रधान हैं और रचनाकार कथानुरूप परिवेश निर्मिति में पारंगत है। किस्सागोई इनकी खासियत है। कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनमें एक-दो पात्र नहीं, बल्कि पात्रों के समूह हैं और उस सामूहिकता में ही रचना अपने मकसद तक पहुँचने में कामयाब होती है।
कहानी की भाषा सरल है और भोजपुरी अंचल के शब्द (खाँटी), मुहावरे, लोकोक्तियों व पात्रानुकूल संवाद से उसमें और भी जीवंतता आ गई है। रचनाकार ने विधा की बनी बनाई लीक को भी तोड़ा है और संग्रह की रचनाओं में कहानी के साथ संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, रिपोर्ताज, रेखाचित्र का भी आस्वाद लिया जा सकता है। इनमें एक पत्रकार की सजगता के भी दर्शन होते हैं। आमतौर पर समालोचकों का मानना है कि रचना स्वतःस्फूर्त आनी चाहिए और उसके बीच रचनाकार का हस्तक्षेप न हो तो बेहतर। लेखक इस संग्रह की कहानियों में स्वयं सूत्रधार की भूमिका निभाता है और किस्सा सुनाने के अंदाज में प्रस्तुति देता है। अधिकांश कहानियाँ फ्लैशबैक की मार्फत ही अभियुक्त हुई हैं।
Image : The woman reading in the garden
Image Source : WikiArt
Artist : Yeghishe Tadevosyan
Image in Public Domain