‘साहित्य रचने की प्रेरणा मुझे गाँव से मिलती है’–मैत्रेयी पुष्पा

‘साहित्य रचने की प्रेरणा मुझे गाँव से मिलती है’–मैत्रेयी पुष्पा

गाँव की संस्कृति, भाषा, बोली-बानी, आपसी संबंधों में प्रेम की ताजगी सबकी सब मुझे बचपन से ही मोहित करती रही है। सच तो यह है कि साहित्य रचने की प्रेरणा एवं शक्ति ही गाँव से मिलती है, इसलिए मैं गाँव पर ही लिखती हूँ।

ये कहना है प्रसिद्ध लेखिका एवं दिल्ली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा का। वे बीते 2 दिसंबर को चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ द्वारा केंद्री य साहित्य अकादेमी, दिल्ली के सभागार में आयोजित द्वादश ‘उदय राज सिंह स्मारक व्याख्यान’ में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थी। व्याख्यान का विषय था–‘मैं गाँव पर ही क्यों लिखती हूँ।’ समारोह की अध्यक्षता चर्चित कवि एवं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने की, जबकि संचालन ‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।

लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि भारत के गाँव बदल रहे हैं। फोर लेन सड़कें और डिजीटल क्रांति ने विकास की चकाचौंध संस्कृति के जरिये गाँवों की पारंपरिकता को तहस-नहस कर दिया है, फिर भी वहाँ के रिश्तों में शेष रहे अपनेपन की भावना मुझे अपनी ओर खिंचती है। उन्होंने कहा कि कथित विकास के तमाम कोलाहल के बीच गाँव के इस अपनेपन को बचाने और उसे विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ‘नई धारा’ की साहित्यिक पत्रकारिता में अब भी अच्छी रचना के चयन और उसे सम्मानित करने की उदात्त दृष्टि है, जो इस पत्रिका के पूर्वजों की चाह रही।

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की ओर से प्रसिद्ध कवि लीलाधर मंडलोई ने मैत्रेयी पुष्पा को दसवें ‘उदय राज सिंह स्मृति सम्मान’ से विभूषित करते हुए उन्हें 1 लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किया। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने लेखक-पत्रकार विश्वनाथ सचदेव (मुंबई), चर्चित गजलगो अनिरुद्ध सिन्हा (मुंगेर) तथा कथा लेखिका रीता सिन्हा (वर्द्धमान) को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। विश्वनाथ सचदेव की अनुपस्थिति में उनकी ओर से चर्चित कथाकार सुरेश उनियाल ने उनका सम्मान ग्रहण किया।

आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ हमारे लिए केवल एक साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।

हिंदी के चर्चित कवि और ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ‘नई धारा’ का सतत प्रकाशन हिंदी में साहित्यिक पत्रकारिता का स्वर्णिम विरासत है, जिस पर गर्व किया जा सकता है। अपने समय के अच्छे साहित्य और रचनाकार को सम्मानित करना भी एक संस्कृतिकर्म है, जिससे समाज में रचनात्मक संदेश जाता है। उन्होंने ‘नई धारा’ की पुरस्कार योजना की प्रशंसा करते हुए सम्मानित लेखकों को बधाई दी।

सम्मानित लेखकों में चर्चित गजलगो अनिरुद्ध सिन्हा (मुंगेर) ने इस अवसर पर कहा कि ‘नई धारा’ ने मेरा नहीं, गजल विधा का सम्मान किया है, जिसके लिए मैं सभी गलजकारों की ओर से ‘नई धारा’ का शुक्रिया अदा करता हूँ। इस अवसर पर उन्होंने तरन्नुम में एक गजल भी सुनाई। सुप्रतिष्ठ कथा लेखिका डॉ. रीता सिन्हा ने कहा कि आचार्य शिवपूजन सहाय, राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, उदय राज सिंह जैसे साहित्यकारों के तेज से सिंचित ‘नई धारा’ पत्रिका का सम्मान पूरे विश्व के हिंदी समाज में है, जिसका एक हिस्सा मैं भी हूँ, इसलिए ‘नई धारा’ का सम्मान पाकर मैं गौरवान्वित हुई। उन्होंने इस अवसर पर अपने कथा लेखन के प्रेरक तत्त्वों की भी चर्चा की।

‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने इस अवसर पर कहा कि किसी लेखक के जीवन की सार्थकता उसकी निजी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उसके समाज सापेक्ष संघर्ष में है, इसलिए उसे अपने सामाजिक सरोकारों को अधिक से अधिक सार्थक बनाने की दिशा में सक्रिय रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीते 67 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रही ‘नई धारा’ बिहार के सूर्यपुरा राज परिवार की पाँच पीढ़ियों की हिंदी सेवा का व्रत है, जिसे राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे तपोनिष्ठ लेखकों ने पल्लवित-पुष्पित किया। ये मेरा सौभाग्य है कि मैं बीते 25 वर्षों से इसका संपादन कर रहा हूँ।

समारोह में अनेक शहरों से आए लेखकों समेत दिल्ली के सैकड़ों साहित्यकार उपस्थित थे। समारोह के अंत में कथाकार बलराम ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


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समाचार डेस्क द्वारा भी

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की संचालिका शीला सिन्हा द्वारा कवि केदारनाथ सिंह को नौंवें उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने उपन्यासकार पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कथाकार शंभु पी. सिंह को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि हमारे लिए एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।