बाबूजी की गुहार
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- 1 February, 2016
बाबूजी की गुहार
रात का वक्त था, वह लौटा नहीं था, और बाबूजी उसकी चिंता में घुले जा रहे थे कि चंद समय में ही गेट पर किंचित् हलचल पसरा तो बाबूजी की असहजता रफ़्ता-रफ़्ता कम हुई।
‘…बेटा, दोस्त की शादी में गए या फिर तुम्हारे बाबूजी की।’ उन्होंने तीर की मानिंद उलाहना रोपा।
‘बाबूजी, आपकी शादी का तोहफा तो मैं आपके सामने हूँ…’ उसने वातावरण को सरल बनाना चाहा।
‘बड़े बदतमीज हो, तुम तो…।’
‘इसमें बदतमीज वाली कौन-सी बात निकल आई, बाबूजी…।
‘छोटे-बड़े का भी तुम्हें ख्याल है जरा…’
‘शादी होगी तो बच्चे भी होंगे बाबूजी, गोया आप…’ और वह कुछ गुनगुनाता-गुनगुनाता अंदर चला गया।
तभी बाबूजी को कहीं भीतर एक खरोंच-सी लगी।
‘…औलादें भी ऐसी बेशर्म-मुँहफट हो जाएगी, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।’ बाबूजी उदास हो चले, ‘यह सब टी.वी. संस्कृति का चमत्कार-देन है…। मगर फिर भी, उनके लड़के को अभी थोड़ी उनकी मान-मार्यादा का भी ख्याल करना-रखना चाहिए था, आखिर वह उसके बाप हैं, कोई गैर तो नहीं।’
Image :Old Man in Sorrow (On the Threshold of Eternity)
Image Source : WikiArt
Artist :Vincent van Gogh
Image in Public Domain