धान रोपते हाथ

धान रोपते हाथ

धान रोपते हाथ
अन्न के लिए तरसते हैं,
पानी में दिनभर
खट कर भी प्यासे रहते हैं।

मुखिया के घर रोज दिवाली
रातें मतवाली,
क्रूर हवेली की हाकिम भी
करता रखवाली।
पर झुनिया की
लुटी देह की रपट न लिखते हैं।

जो भी शहर गया
धनिया के आँसू भूल गया,
सरपंचों की हमदर्दी का
कुआँ सूख गया।
होरी के सपने
गोबर को खोजा करते हैं।

तेल बिना अब नहीं दिया भी
झुग्गी में जलता,
चुकी मजूरी, पंसारी भी
बात नहीं करता।
सूदखोर मनचले
पड़ोसी ताना कसते हैं।

त्योहारों में भी साड़ी का
सपना रूठ गया,
कर्जे की आँधी से तन का
विरवा सूख गया
सबकी फसल कटी
मुनिया के फाँके चलते हैं!


Image :Peasant Woman Cutting Straw after Millet
Image Source : WikiArt
Artist : Vincent van Gogh
Image in Public Domain