दादी माँ

दादी माँ

आश्विन की साँझ हो
या जेठ की दुपहरी
पता नहीं क्यों
दादी को नींद नहीं आती?

कभी भिंडी बोती,
कभी कद्दू के लत्तर को मोड़
बाँस के बल्ले पर चढ़ाती,
कभी सूखे अलान पर टूसे को
धीरे से लिपटा देती दादी,
मानो माँ अपने बच्चे को
चलना सीखा रही हो,
उधर नहीं, इधर बेटा

जब भी दब जाता
कोई अँखुआया बीज,
कुचली पत्ती को सीधा करती,
बगल में रखी पाइप से
फुहरा छींटती दादी
दादी है तो सागबाड़ी है,
सागबाड़ी है तो गाजर,
चिचिंधा, टमाटर, करैले हैं

घर में दाल फटकती,
मुन्ना को तेल लगाती,
कभी मुन्नी को पुचकारती है दादी
सुबह में बरतन धोना हो
या साँझ में सब्जी,
जब देखो काम ही काम,
कभी नहीं थकती है दादी

जब भी माँ डपटती
या पीटने को दौड़ती,
अपने आँचल में
बच्चे को छिपा लेती दादी

घर की पुरानी साड़ी,
बचे-खुचे भोजन से काम चलाती,
माँ के झुँझलाने पर
कुछ नहीं बोलती दादी

जब से बिस्तर पर बीमार पड़ी है दादी,
माँ पिता जी से कह रही,
आप ऑफिस में रहते हैं,
मैं रसोई घर में,
इनकी सेवा यहाँ संभव नहीं,
क्यों नहीं वृद्धा-आश्रम में
इन्हें छोड़ आते?
सुन-सुनकर रुआँसा चेहरे
बनाए घूम रहे हैं बच्चे!


Image :First Steps
Image Source : WikiArt
Artist : Georgios Jakobides
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