तमंचे को सटाकर कनपटी से
- 1 April, 2022
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-gazal-about-tamanche-ko-sataakar-kanapatee-se-by-kamlesh-bhatt-kamal-nayi-dhara/
- 1 April, 2022
तमंचे को सटाकर कनपटी से
तमंचे को सटाकर कनपटी से
बदल जाएगा सच क्या हेकड़ी से?
हमारी दोस्ती है प्यास से लेकिन
हमारी दुश्मनी है क्यों नदी से?
अँधेरों से लड़ेंगी कल को ये ही
लिखी हैं हमने गजलें रोशनी से
करो खुद का भी तो दिल साफ पहले
मिटी है गंदगी क्या गंदगी से?
हराने को भले जिद पर अड़ा हो
जमाना जीत कब पाया है स्त्री से?
नदीपन तो झलकता ही नहीं है
न गंगा से न यमुना-गोमती से।
उसी ने तोड़कर रख दी उम्मीदें
उम्मीदें थीं, बहुत थीं आदमी से।
इसी में स्वर्ग है, सौ रंग हैं इसमें
न कोई शै है सुंदर जिंदगी से।
बड़ा धन से नहीं होना है मुझको
बड़ा होना है मुझको शायरी से।
बड़े संकट में आ जाता है जीवन
वो साँसों की जरा-सी गड़बड़ी से।
Image : Street in Arras
Image Source : WikiArt
Artist : John Singer Sargent
Image in Public Domain