जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो

जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो

जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो
मिल गई तुमको मुहब्बत तो ये नेमत समझो

अहले-दुनिया जो परखती है परखने दो तुम
अपनी मंजिल पे नजर रक्खो सियासत समझो

आग में तप के जो चमका है वही सोना है
ऐसे वैसों के चमकने की हकीकत समझो

धूप के कहर से अब के न बचा कोई शजर
वो हरा है तो ये अल्लाह की रहमत समझो

डूबते को वो किनारे से लगा देता है
एक तिनके का सहारा है गनीमत समझो

मैं तुम्हें चाँद-सितारे तो नहीं दे सकता
साथ चल सकता हूँ गर मेरी जरूरत समझो

इससे अनमोल रतन और नहीं कोई किरन
तुम बुजुर्गों की दुआओं ही में बरकत समझो।


Image : Picking Flowers
Image Source : WikiArt
Artist : Pierre Auguste Renoir
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प्रेम किरण द्वारा भी