जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-gazal-about-jab-milun-usse-to-ghamgeen-daastaan-koi-na-ho-by-mamta-kiran-nayi-dhara/
- 1 April, 2022
जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो
जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो
सामने मेरे खुदा हो, दरमियाँ कोई न हो
ए खुदा अपनी नवाजिश से मुझे कर सरफराज
अपनी मंजिल आप पाऊँ, मेहरबाँ कोई न हो
साजिशें सब कुछ मिटाने की करे हैं चंद लोग
जिंदगी का दूर तक नामोनिशाँ कोई न हो
ये सियासतदान देते आए हैं अब तक फरेब
सुन के इनके झूठे वादे शादमाँ कोई न हो
मुझको आजादी मिले उड़ने की छू लूँ आसमाँ
अब तमन्ना पर मेरी बंदिश यहाँ कोई न हो
ऐ ‘किरण’ ऐसा हुनर मेरी गजल को हो अता
शे’र बामकसद हों सारे रायगाँ कोई न हो।
Image : View of L`Esperance on the Schoharie River
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Cole
Image in Public Domain