थोड़ा जोर से बोलो यार

थोड़ा जोर से बोलो यार

थोड़ा जोर से बोलो यार
बहरी हो गई है सरकार

सच के भी हैं कई प्रकार
जनवादी, सरमायेदार

या तो घर या तो बाजार
पीठ ढकी तो पेट उघार

पसरी हुई हथेली थी
अब माँगें हैं मुट्ठीदार

जनता हुई लुगाई सी
और सरकारें हुईं भतार

इधर शरीअत आधे पर
और उधर है मनु की मार

उस ने गारे थे नींबू
तू अब काजू-पिस्ता गार

सोच की सारी सीमाएँ
जा मिलती हैं सीमापार

केवल दरिया ही क्यों हो
आँखें भी हों पानीदार

नाक सुड़क और आँखें पोछ
बहुत हो चुकी चीख-पुकार।


Image : Tea drinking in a Tavern
Image Source : WikiArt
Artist : Viktor Vasnetsov
Image in Public Domain

देवेंद्र आर्य द्वारा भी