ये माना आईने से सामना अच्छा नहीं लगता
- 1 April, 2022
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- 1 April, 2022
ये माना आईने से सामना अच्छा नहीं लगता
ये माना आईने से सामना अच्छा नहीं लगता
किसे खिड़की से बाहर देखना अच्छा नहीं लगता
कहीं अब भी वो अंदर से हमें आवाज देता है
मगर क्यूँ अपने अंदर लौटना अच्छा नहीं लगता
इन्हीं हाथों से तुम दिन में अँधेरे घेर लाते हो
इन्हीं हाथों से मनके फेरना अच्छा नहीं लगता
बुलंदी भी इसी ने जब अता की है तुम्हें फिर क्यों
इसी जीने को मुड़ कर देखना अच्छा नहीं लगता
हकीकत ही जमीं पर खींच लाती है हमें वरना
किसे ऊँची हवा में तैरना अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे ही चमन का इक परिंदा मैं भी हूँ यारो
तुम्हें क्यों यह मेरा पर तोलना अच्छा नहीं लगता
बहुत मकबूल हैं जम्हूरियत पर उनकी तकरीरें
मगर उनको किसी का बोलना अच्छा नहीं लगता
चलो मिल कर उजालों के लिए दीपक जलाते हैं
अँधेरे में अकेले बैठना अच्छा नहीं लगता
चमकते हैं कड़ी मेहनत से चेहरे धूप में जिनके
उन्हें धुँधला सियासी आइना अच्छा नहीं लगता।
Image : The Ironworkers Noontime
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Pollock Anshutz
Image in Public Domain