मुहब्बत सबके बस का फन नहीं है

मुहब्बत सबके बस का फन नहीं है

मुहब्बत सबके बस का फन नहीं है
इबादत है, ये पागलपन नहीं है

बहुत मुमकिन है वो घर टूट जाए
जहाँ रिश्तों में अपनापन नहीं है

जहाँ नीलाम होती हों बहारें
वो मेरे ख्वाब का गुलशन नहीं है

अगर हो भक्ति मीरा-सी तो देखो
जहाँ में किस जगह मोहन नहीं है

अकेला रह गया हूँ रास्ते पर
सफर में अब कोई अड़चन नहीं है

किसी बच्चे के जैसा हो गया हूँ
मेरे मन में कोई उलझन नहीं है।


Image : Man Sitting on a Log
Image Source : WikiArt
Artist : Karoly Ferenczy
Image in Public Domain