लाईलाज

लाईलाज

‘नज्जू खाला, आपकी बेटी की दसों उँगलियाँ दस चिराग हैं। जहाँ जाएँगी झम-झम रौशनी भर देगी।’ कसीदा ने नजमा से उसकी बेटी की तारीफ करते हुए कहा जो कसीदा को मेंहदी लगा रही थी।

‘बस-बस कसीदा बाजी, ज्यादा मक्खन की जरूरत नहीं है। मैं वैसे भी तुम्हारे हाथों को मेंहदी से ऐसा सजा दूँगी कि सभी लोग तुम्हारे हाथों को चूमने लगेंगे।’ शमा ने कहा।

‘मगर इसमें मेरी कौन सी बड़ाई, बड़ाई तो फिर भी तुम्हारी मेंहदी की ही होगी या तुम्हारी।’ कसीदा ने बुरा सा मुँह बना कर कहा तो पास बैठी नजमा और शमा हँस पड़ीं। उन्होंने हँसते हुए कहा–‘कोई बात नहीं कस्सू तुम इसको शादी में मेंहदी लगा देना फिर तुम्हारी भी तारीफ यहाँ वे वहाँ तक होगी।’

‘हाय खाला, कहीं बात ठहराई है क्या?’ वह हाथ छुड़ा कर खाला के पहलू से आ लगी। ‘अरे नहीं रे बावली, मैंने बस एक बात कही है। मगर शादी कभी-न-कभी होनी है कि नहीं।’ उन्होंने आसमान की तरफ आँखें गाड़ दी और शमा वहाँ से उठकर किचेन की तरफ चली गई।

‘अम्मा आपका दिमाग खराब हो गया है क्या? मैं शादी-ब्याह के झमेले में पड़ना नहीं चाहता हूँ। न तो अभी न कभी भी।’ आदिल ने अम्मा की बात का बड़ी ही रूखाई से जवाब दिया और फोटो उनके हाथों में वापस कर दी।

‘हाँ-हाँ मत कर शादी। बूढ़ी माँ से रोटियाँ सेकवाना जो अच्छा लगता है।’ आदिल की अम्मा बिगड़ गई।

‘हाँ-हाँ, आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे वह घर में कदम रखते ही आपको और बावा को तख्त पर बिठा देगी।’ आदिल ने भी कहाँ कच्ची गोलियाँ खेली थीं।

‘नहीं बिठाएगी हमें तख्त पर, मुझे कौन सा अरमान है इसका, मगर तुझे तो देख लेगी ना।’ अम्मा ने कहा।

‘कौन जाने क्या होगा।’ कह कर आदिल वहाँ से हट गया और अम्मा लड़की की फोटो हाथ में पकड़े जोर-जोर से पंखा हिलाने लगी।

‘क्या हुआ क्या कहा आदिल ने?’ आदिल के अब्बा ने घर में कदम रखते ही पूछा। अम्मा ने पंखे का रूख अब्बा की तरफ करते हुए चिढ़ कर कहा–‘कहता क्या। आप ही का बेटा है ना?’

‘ठीक है, ठीक है, सब कुछ घूम फिर कर मेरे ही ऊपर तो आना था। मेरा कहना है कि क्यों न हम शकीला को बुला लें। बहन के आ जाने और समझाने का कुछ असर तो होगा ही।’ इतना कर नमाज पढ़ने को उठ गए। उनकी बात में अम्मा को दम लगा और उन्होंने शकीला को बुलाने का तय कर लिया, और जब शकीला आई तब दोनों माँ-बेटी ने मिल कर आदिल को कुछ इस तरह घेरा कि उसे हथियार डालने ही पड़े।

और फिर…दोनों घरों में जोर शोर से शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। कसीदा तो पहले भी चैन से एक जगह बैठने वाली लड़की नहीं थी और शादी की बात से जैसे उसके पैरों में पहिये फिट हो गए। जुबान उसकी पहले भी कैंची जैसी चलती थी मगर अब तो एक वजह भी उसके हाथ लग गई थी, वह दौड़-दौड़ कर न सिर्फ घर के काम करती बल्कि रह-रह कर शमा को भी छेड़ती रहती।

खुदा-खुदा करके वह दिन भी आया जब शमा अपने घर से रूखसत होकर आदिल के घर आ गई।

‘दुल्हन आ गई’ के शोर ने एक हलचल पैदा कर दी और घर की सारी औरतें और लड़कियाँ दुल्हन के कमरे पर टूट पड़ीं।

‘ऐ जी हटो भी हमें भी देख लेने दो।’ एक बुजुर्ग औरत ने लड़कियों को परे ढकेलते हुए कहा।

‘हाँ-हाँ, बुबु देख लीजिएगा, ऐसी भी क्या जल्दी पड़ी है, दम भर को आराम भी कर लेने दें। अभी-अभी आई है, मुँह हाथ धो ले, जरा थकान दूर कर ले, फिर जी भर कर देखती रहिएगा, कहीं भागी नहीं जा रही।’ अम्मा ने सभी को दुल्हन के पास से हटाया ताकि दुल्हन को तैयार कर मुँह दिखाई की रस्म की जा सके।

और…

‘वाह बाजी, आप तो चाँद का टुकड़ा उठा लाई है दुल्हन की शक्ल में।’ पड़ोस की गौरी चाची ने दुल्हन का घूँघट उठाते ही मुँह भर कर दुआएँ दी। जब सभी औरतें दुल्हन को देख कर रूखसत हो गईं तब नन्द ने उसे आदिल के कमरे में पहुँचा दिया। जिसे खुद उसने ही खूब मेहनत से सजाया था। आदिल भी अपने भाइयों और दोस्तों से फुर्सत पा चुका था और इधर उधर बैठ कर वक्त गुजार रहा था। उसे ऐसा करते देख शकीला ने कहा–‘यूँ वक्त काटने से कुछ हासिल नहीं होने का। आपके दिल में जो है वही सब कुछ हमारे दिल में भी है। इसलिए अपनी चहलकदमी बंद कर वही करें जो आप चाह रहे हैं। हम आँखें बंद कर लेते हैं और वादा करते हैं किसी से कुछ कहेंगे भी नहीं।’

तब आदिल आहिस्ता से उठा और धीरे-धीरे चलते हुए अपने कमरे में पहुँच गया, शमा ने आदिल की आहट सुनते ही घूँघट कुछ और खींच लिया। उसके दिल की धड़कनें दिल की दीवारों को तोड़ कर बाहर आने को बेचैन हो रही थीं। आदिल ने पलंग पर बैठते हुए कहा–‘आपको बहुत इंतजार तो नहीं करना पड़ा ना। थक गई होंगी आप।’ शमा ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया तब कहीं जा कर आदिल ने उसका घूँघट उठाया।

‘या अल्लाह। यह तो चाँद जैसी है’ वह सकते में आ गया, जब वह काफी देर कुछ नहीं बोला तब शमा ने ही खामोशी तोड़ी।

‘आप भी थक गए होंगे। लेट जाएँ मैं सिर की मालिश कर दूँ। मेरे यहाँ सभी का मानना है कि मैं बहुत अच्छी मालिश करती हूँ।’

‘नहीं-नहीं।’ आदिल ने उसका हाथ पकड़ लिया। ‘इसकी न कोई जरूरत है न मुझे इन चीजों की आदत हैं।’ कुछ देर चुप रहने के बाद वह फिर बोले–‘आप बहुत खूबसूरत हैं। मैंने अम्मी से आपकी बहुत तारीफें सुनी हैं। मैं शादी के लिए तैयार ही नहीं था लेकिन उन्हें घर में एक बहू हर हाल में चाहिए थी। फिर भी मैं आपसे वादा करता हूँ कि आपको यहाँ किसी भी तरह की, किसी कमी का कभी एहसास नहीं होने दूँगा। न कभी किसी शिकायत का मौका ही दूँगा।

‘तकलीफ कैसी! यह अब मेरा भी घर है। लड़कियाँ धान का पौधा होती हैं, जहाँ पैदा होती है वहाँ से हटा कर दूसरी जगह रोप दी जाती है, यही उनका मुक्कदर होता है।’

फिर उसने ठहर-ठहर कर कहा–‘मैं कोशिश करूँगी कि मुझसे यहाँ किसी को कोई शिकायत न हो।’ शमा ने इन बातों को सिर्फ मुँह से कहा ही नहीं बल्कि अपनी कही हुई बातों पर पूरी तरह अमल भी किया, जिस तरह मायके में वह घर और मुहल्ले की दुलारी थी यहाँ आकर भी उसने सभी का दिल जीत लिया। आदिल के भीतर पल रही हीन भावना को उसने अपने प्रेम और अपनेपन से दूर करने की कोशिश की, और यहाँ के लोगों के अपनत्व और स्नेह ने उसे इतनी भी फुर्सत नहीं दी कि वह गुजरने वाले दिनों, महीनों का हिसाब रख सकती। जो गुजरते हुए सालों में बदलते रहे। वह अपने नाम की तरह हर जगह रौशनी बिखेरती रही। घर से हो या मुहल्ले में कोई भी फंक्शन उसके बगैर पूरा नहीं होता था, मुहल्ले के तो बहुत सारे फैसले उसकी राय के बगैर आगे नहीं बढ़ते थे, इस भाग दौड़ की जिंदगी में उसे पता हीं नहीं चला कि कब उसकी शादी-शुदा जिंदगी ने दस वर्ष पूरे कर लिए और कब उसके सास-ससुर पोता, पोती खिलाने का अरमान ले कर कब्र की आगोश में चले गए, मगर जिंदगी की गाड़ी हमेशा जैसा आप चाहते हैं वैसे नहीं चलती, कभी-कभी उसमें झटके भी लगते हैं, इसी बीच उसकी जिंदगी में एक ऐसी घटना घटी जिसने उसे जड़ से हिला दिया। हुआ यों कि मुहल्ले में एक लड़की को डोली से उतारते वक्त उसे जोर का चक्कर आया कि बहुत कोशिश करने के बावजूद वह अपने को सँभाल नहीं सकी और गिर पड़ी, फिर क्या था, घर में तहलका मच गया। कोई पंखा ले कर दौड़ा तो कोई पानी का गिलास, अर्थात सभी लोग बदहवास हो गए, क्योंकि शमा सभी  की दुलारी थी। होश में आने पर शमा को बहुत ही शर्मिदगी का एहसास हुआ और जब वह जल्दी से उठने लगी तो एक बुजुर्ग महिला ने उसे रोक दिया।

‘नहीं-नहीं दुल्हन लेटी रहो जरा देर। ऐसी हालत में ज्यादा दौड़-धूप अच्छी नहीं होती है।’ उसकी चचिया सास ने कहा और उसे जबर्दस्ती लिटा दिया तब शामा ने उनकी तरफ गौर से देखा और उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि वह क्या सोच रही हैं, वह हड़बड़ा कर उठ बैठी–‘नहीं-नहीं चाची मैं बिल्कुल ठीक हूँ बस जरा थक गई हूँ।’

‘हाँ बेटा ऐसा होता है कभी-कभी। तुम्हारी सास अगर जिंदा होती तो तुम्हें हथेलियों पर रखती। लेकिन वह नहीं हैं पर हम हैं ना।’ चाची ने बड़े पते की बात कही और दूसरी औरतों को आड़े हाथों लिया।

‘हटो सब यहाँ से, देखती नहीं इसकी हालत, फूल सी बच्ची को दौड़ा-दौड़ा कर क्या हालत बना दी है तुमलोग ने।’

तब शमा को आँखें बंद कर पड़े रहने में ही अपनी खैरियत नजर आई और जब लोग इधर-उधर हटीं, वह तेजी से घर की राह चल पड़ी।

रात बिस्तर पर जाते ही आदिल ने पूछा ‘क्या हो गया था तुम्हें शमा?’

‘पता नहीं बस जरा चक्कर सा आ गया था बस।’

‘लगता है तुम खाने-पीने में लापरवाही कर रही हो आज कल।’ आदिल ने कहा, मगर साथ ही शमा की उदासी को भी समझ रहा था। ‘शमा मैं ही तुम्हारी सारी परेशानियों का जिम्मेदार हूँ। तुम कब तक शमा की तरह मेरे अँधेरे जीवन में उजाला बिखेरती रहोगी, कभी अपने बारे में भी सोचो।’ इतना कहते-कहते आदिल बहुत ही भावुक हो उठा और दोनों देर रात अपने दर्द में डूबे जागते रहे।

और उस दिन के बाद से शमा को ऐसे दौरे बराबर ही आने लगे, इन सब के बीच जो परेशानी की सबसे बड़ी बात थी वह यह कि इस तरह के दौरे उसे सिर्फ शादी के मौकों पर ही आते थे। इसलिए उसने अब शादियों में जाना बहुत कम कर दिया था, वह बारात के पहले सारे काम कर देती, मगर बारात आने के समय कोई न कोई बहाना बनाकर वहाँ से हट जाती थी, लेकिन आखिर कब तक।

आज उसकी अपनी नन्द की बेटी की शादी थी जिससे वह अलग हट नहीं सकती थी, वह बहुत ही सँभल-सँभल कर सारे काम कर रही थी, और अंदर से बहुत डरी हुई भी थी, मगर होनी को कौन टाल सकता है, बारात आने के कुछ पहले ही उस पर फिर वही दौरा पड़ा, सारे लोग उसके आस-पास जमा हो गए और आदिल के ना-ना करने पर भी लोग एक लेडी डॉक्टर को ले आए। डॉक्टर ने अच्छी तरह जाँच करने के बाद जो कुछ कहा उसके लिए वहाँ पर मौजूद कोई भी इनसान दिमागी तौर पर तैयार नहीं था।

‘घबराने की कोई बात नहीं है, कभी इस तरह के दौरे बड़ी उम्र की कुँवारी लड़कियों को आने लगते हैं। इसका बस एक ही इलाज है और वह है शादी’ इसकी शादी जल्द करा दें फिर ये दौरे आने अपने आप ही बंद हो जाएँगे।’

डॉक्टर शायद और भी कुछ कहती रही थी मगर वहाँ पर उपस्थित शायद हर इनसान हिप्नोटाइज हो कर बोलने-सुनने की सलाहियत खो चुका था और लेडी डॉक्टर सभी को वैसी ही हालत में छोड़ कर जा चुकी थी।


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Artist : Amrita Sher
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