बदलाव

बदलाव

के.पी. सिंह से दस वर्षों के बाद मेरी भेंट हुई थी। उस दिन वह मेरे नई दिल्ली स्थित सरकारी निवास पर अपने बेटे की शादी का कार्ड देने आए थे। शादी का निमंत्रण-पत्र देते हुए उन्होंने कहा था–‘विजय जी, आपको विवाह समारोह में जरूर आना होगा, कोई बहाना न चलेगा…, मैंने कुछ खास लोगों को ही बारात में चलने के लिए आमंत्रित किया है, जिनमें से एक आप भी हैं।’ मैंने बारात में चलने के लिए हामी भर दी थी।

के.पी. सिंह थोड़ी देर की चुप्पी के बाद फिर बोले–‘विजय, मेरा बेटा एम.बी.ए. करते हुए अपने साथ पढ़ने वाली भारद्वाज लड़की के प्रेम में पड़ गया, दोनों परिवारों की सहमति से विवाह हो रहा है।’

‘सिंह साहब, आपने अपने और अपने परिवार के विषय में लड़की के परिवार के लोगों को तो स्पष्ट बता दिया होगा।’ मैंने पूछा था।

‘हाँ, हमने उन्हें अपने बारे में सभी बातें बता दी हैं…, जाति भी बता दी है और साफ-साफ कह दिया है कि हम चमार हैं।’ के.पी सिंह ने कहा था।

के.पी. सिंह की बातें सुनकर मुझे अच्छा लगा था। मैंने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा–‘यार, यह तो अच्छी बात है, आपस में इंटरकास्ट मैरिजिस होनी भी चाहिए…, तभी तो इस देश में आपस में वैर-भाव, ऊँच-नीच व छुआछूत की भावना समाप्त हो सकेगी।’

मैं और के.पी. सिंह चर्चा करने में लीन थे कि इतने में पत्नी चाय के दो कप लाकर मेज पर रखकर चली गई।

‘हाँ विजय, मेरा बेटा एक सरकारी बैंक में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत है और उसकी होने वाली पत्नी वंदना भारद्वाज ‘जर्मन दूतावास’ में कार्य करती है।’ के.पी. सिंह ने चाय का घूँट गले में सरकते हुए मेरे बिना पूछे पूरी जानकारी दे दी थी।

मैं यह सोचकर मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो अब गैर-दलितों में विशेषकर ब्राह्मणों में भी जाति-पाति, ऊँच-नीच को लेकर बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है। अपनी बेटियों तक की अब शादियाँ दलित-समाज के पढ़े-लिखे लड़कों के साथ करने लगे हैं।

शादी वाले दिन मैं ऑफिस से सीधे बारात में पहुँच गया था। बारात नोएडा के सेक्टर-19 से नोएडा के अरुण विहार के सैनिक क्लब तक जानी थी। जैसा कि अक्सर होता ही है, बड़ी धूमधाम व गाजे-बाजे के साथ बारात वहाँ पहुँची। लड़की वालों की ओर से बारात के स्वागत का भव्य आयोजन किया हुआ था। चारों ओर तरह-तरह के पकवानों की महक उठ रही थी। बारात के वहाँ पहुँचते ही दूल्हे को लड़की के घर वालों ने चारों ओर से घेर लिया था और पंडाल के एक कोने में जहाँ चार-पाँच तिलकधारी पुजारी बैठे हवन करने की तैयारी कर रहे थे, उसे उनके समीप लेकर चले गए। दूल्हे से पहले स्नान करने को कहा गया। दूल्हा चुपचाप वही करता रहा जो लड़की के घर वाले व पुरोहित कहते रहे। दूल्हे को पहले स्नान कराया गया फिर उसके शरीर पर गंगा-जल का छिड़काव किया गया। उसके बाद ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार करते हुए उसे जनेऊ धारण कराया था। लड़की वालों की ओर से वस्त्र पहना कर उसका शुद्धिकरण करके ही सात फेरे डलवाए थे।

के.पी. सिंह और उसके परिवार के सभी सदस्य दूर खड़े टुकुर-टुकुर देखते रहे। उन्हें अब दूल्हे के समीप तक जाने की मनाही थी। उनसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था। मैं यह सब देखकर हैरान और परेशान हो उठा था। एक बार को ऐसा लगा कि मेरा वहाँ अब दम घुटा जा रहा है। मैं के.पी. सिंह को बिना बताए ही विवाह समारेाह से चला आया था।

कुछ दिनों के बाद पता चला कि विवाह की रस्में पूरी होने के बाद लड़की वालों ने डोली के.पी. सिंह के घर भेजने से साफ मना करते हुए कहा था–‘हमारी बेटी चमारों के घर नहीं जाएगी, हमने अपनी बेटी और दमाद के लिए अलग से मकान किराये पर लेकर दिया है…, डोली वहीं जाएगी।’ यह बात भी के.पी. सिंह ने मुझे दुःख प्रकट करते हुए भर्राये गले से बताई थी।

के.पी. सिंह की दुःख भरी कहानी सुनकर तुरंत ही मुझे बैरिस्टर बी.एल. गौतम के साथ घटी घटना याद हो आई। मेरे इस दलित साहित्यिक मित्र और उनकी मुख्य चिकित्सा अधिकारी पत्नी ने अपने इकलौते बेटे को लाड़-प्यार से पढ़ाया-लिखाया। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्होंने उसे विदेश भी भेजा। विदेश में शिक्षा प्राप्त करते हुए वहाँ उसकी एक कंपनी में नौकरी भी लग गई। नौकरी करते हुए उनके बेटे की एक सिक्ख परिवार (जट्ट) युवती से मित्रता हो गई थी। मित्रता के साथ-साथ बात शादी तक पहुँच गई। लड़के ने लड़की और उसके परिवार वालों से सरासर झूठ बोला था। लड़के ने अपने आपको जाटव न बताकर उत्तर प्रदेश का जाट बताया था। विदेश में रहते हुए ही लड़के ने उस जट्ट युवती से विवाह कर लिया था। उसने इस बात की सूचना अपने माता-पिता को फोन पर ही दी थी। शायद, यह सोचकर कि माँ-बाप के वहाँ पहुँचने पर कहीं उसकी जाति की पोल न खुल जाए।

इधर, भारत में लड़के के माता-पिता ने गुड़गाँव में दो सौ गज का प्लॉट लेकर बेटा और बहू के साथ रहने के लिए कोठी का निर्माण कराया था। लगभग साल भर बाद बेटा और बहू भारत आ गए। दोनों उच्च-शिक्षा प्राप्त थे, नौकरी प्राप्त करने में उन दोनों को कोई दिक्कत नहीं हुई।

साथ में रहने के कारण बहू को अब धीरे-धीरे सास-ससुर की असलियत ज्ञात होने लगी। बहू के माता-पिता भी पंजाब (पटियाला) से आते-जाते रहते थे। उन्हें भी गौतम साहब के लेखन को देखकर व चर्चा करने पर शक हो गया कि यह जाट नहीं उत्तर प्रदेश के जाटव हैं। धीरे-धीरे अब पूरी बात किताब के खुले पन्ने की तरह सामने आ चुकी थी। बस, फिर क्या था? वही हुआ जो होना था, बहू ने लड़के से साफ-साफ कह दिया–‘मैं चमारों के साथ नहीं रह सकती, यदि मुझे रखना है तो अपने माँ-बाप को छोड़ना होगा…, यदि ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें पूरे परिवार के साथ झूठ बोलने व चार सौ बीसी के आरोप में पुलिस में बंद करवा दूँगी।’ अब लड़का क्या करता? वह तो पहले से ही डरपोक और नालायक था। उसने पहले ही अपने आपको जाटव न कहकर जाट बताया था। एक दिन उसने अपने बुजुर्ग माँ-बाप से कह ही दिया–‘आप दोनों कहीं भी जाकर रहो…, मैं अपनी पत्नी को नहीं छोड़ सकता।’

यह तो उन बुजुर्ग माता-पिता का हाल है जो माँ मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद से रिटायर हुई है और पिता बैरिस्टर है। बैरिस्टर बी.एल. गौतम ने आह भरते हुए मुझसे कहा था–‘विजय जी, हमारे जीवन की सारी पूँजी और तपस्या ही व्यर्थ में चली गई…, अब हम दोनों पति-पत्नी को अपने गोरखपुर शहर के पास के गाँव में पुश्तैनी मकान में रहकर ही शेष जीवन काटना होगा।’ इस बात को बताते हुए बैरिस्टर की आँखों में आँसू भर आए थे।

के.पी. सिंह और बैरिस्टर बी.एल. गौतम के साथ घटी इन घटनाओं को याद कर मैं आज भी संज्ञा-शून्य होकर रह जाता हूँ।


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Artist : Felix Vallotton
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सूरजपाल चौहान द्वारा भी