हत्या-पर्व

हत्या-पर्व

धी रात को किसी ने दरवाजे पर थाप दी, तो बाबा की बूढ़ी आँखें खुल गईं। अभी यह कौन हो सकता है, यह सोचने की जरूरत नहीं पड़ी। इस थाप को वे पहचान गए। ऐसी थापों पर वे बेधड़क किवाड़ खोलने के लिए उठ जाया करते थे। मगर तब भी किवाड़ खोलने के पहले वे आदतवश पूछ लिया करते थे, ‘कौन?’ और, जवाब मिला करता था, ‘बाहर आइए, बाबा। एक शादी करानी है।’ बाबा समझ जाते थे, किसी लड़के को पकड़कर लाया गया है जबरदस्ती उसका ब्याह कराने। उन्हें हँसी आ जाती थी और फिर गुस्सा भी आता था।

बाबा ने पूछा, ‘कौन?’ तो जवाब मिला, ‘मैं हूँ, कटकी।’

बाबा के माथे पर बल पड़ गए, आधी रात को कटकी? क्यों?

उन्होंने दम साधकर किवाड़ खोला, देखा कि सामने अकेली कटकी खड़ी है। चोर निगाहों से इधर-उधर देखा, कहीं कोई नहीं था।

‘अकेली हो?’

‘हाँ, बाबा।’

लाल बाबा को अचरज हुआ कि अभी के माहौल में वह घर से अकेली कैसे निकली! उन्होंने कटकी से पूछा, ‘आधी रात में अकेली आई हो; खौफ नहीं हुआ?’

‘यही समय मिला मुझे बेखौफ आने का। दिन में नहीं आ सकती थी, बाबा; अभी आ गई।’ बाबा को इस पर कुछ कहते नहीं बना। उन्होंने पूछा, ‘मंदिर के कपाट खोल दूँ?’

‘नहीं, उसकी जरूरत नहीं है।’

‘क्यों, बाबा भोले के दर्शन करने ही आई हो ना?’

‘नहीं, आपसे मिलने।’

बाबा ने प्रकट होने तो नहीं दिया, मगर वे गुस्से में आ गए थे। बार-बार क्या मिलना! हर बार एक ही बात! कह तो दिया कि वे गवाही नहीं देंगे।

‘अब क्या कहने आई हो, कटकी?’

‘बाहर आ जाइए, बाबा’, कटकी बोली, ‘हम चबूतरे पर बैठकर बातें करेंगे।’ चबूतरे पर बैठते ही कटकी ने कहा, ‘मैं आखिरी बार पूछने आई हूँ, बाबा; गवाही देंगे आप?’

‘मैंने भी तो कह दिया था आखिरी बार, मैं गवाही नहीं दे सकूँगा। अब मुझसे कुछ मत कहो, कुछ मत माँगो, कटकी; जो माँगना हो भगवान शिव से माँग लो, जो कहना हो बाबा भोलेनाथ से कहो। कहो तो मंदिर के कपाट खोल दूँ।’

‘जब तक मैं इस गाँव में रही, तब तक लगभग रोज ही आया करती थी शिव के दर्शन करने; कुछ माँगती भी रही थी। मुझे तो कुछ नहीं मिला।’

‘मिला कैसे नहीं?’ बाबा बोले, ‘तुम इस गाँव की अकेली लड़की हो जो अपनी पढ़ाई करने शहर चली गई अपने नाना के पास और पढ़-लिखकर एक शिक्षिका हो गई। ये सब शिव के आशीर्वाद से ही तो हुआ है।’

‘मैं शिव की पूजा अपने माता-पिता के सुख और स्वास्थ्य के लिए कर रही थी। इतना भर ही मैंने माँगा था शिव से। पढ़ाई तो मैं अपने बल पर कर रही थी। मामा ने मुझे अपने पास बुला लिया और पिता ने मुझे जाने दिया। भगवान शिव ने मेरे पिता की रक्षा नहीं की। क्या मैं अब उनसे न्याय की भीख माँगूँ? माँगने से मिलेगी भीख?’

‘ईश्वर न्याय करेंगे, अवश्य करेंगे।’

‘क्या मेरे पिता के हत्यारे को फाँसी होगी?’

‘इसका जवाब मेरे पास तो नहीं।’

‘हत्यारे को फाँसी होनी चाहिए या नहीं?’

‘यह तो कोई भी कहेगा कि होनी चाहिए।’

‘आप यह तो जान रहे हैं कि मेरे पिता जी की हत्या हुई है? दिन दहाड़े राघो सिंह ने पिता जी की हत्या की थी, गाँव के सैकड़ों लोगों के सामने।’

‘जो गाँव के सैकड़ों लोग जानते हैं, उतना मैं भी जान रहा हूँ।’

‘गाँव के लोग जानते हैं, मगर कोई यह बोलने–कहने को तैयार नहीं। आप भी नहीं? आप क्यों नहीं?’

‘क्या होगा मेरी गवाही दे देने से? फाँसी पर लटका दिया जाएगा राघो सिंह?’ झिड़क दिया बाबा ने कटकी को और फिर मुलायम स्वर में बोले, ‘अब भी मेरी सलाह मानो, कटकी–जो हुआ उसे भूल जाओ। भगवान शिव की तुमने पूजा की थी। उन्होंने इसका फल दे दिया है तुम्हें। हमें भी गर्व है कि इस गाँव के एक साधारण परिवार की लड़की आज एक महाविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर बहाल है। तुम्हारे सामने लंबी जिंदगी है, शिव के आशीर्वाद से तुम और भी आगे जाओगी।’

‘शिव के आशीर्वाद से लड़की तो आगे बढ़ेगी, मगर एक शिवभक्त को शिव ने इतनी शक्ति नहीं दी है कि वह आगे बढ़े, इतनी शक्ति भी नहीं कि एक सच की गवाही के लिए वह अदालत तक जाए!’

‘अदालत तक मैं जाता, अगर इसका कोई परिणाम निकलता। मेरे अदालत में बोल देने भर से तुम्हारी जीत नहीं हो जाएगी। अदालत में सच नहीं जीतता, वकील जीतता है। राघो सिंह के पास ताकत है, पैसा है। तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकती। वह अच्छे-से-अच्छे वकील को बहाल कर लेगा। उसके वकील इस मामले को सालों लटकाकर रख सकते हैं, तब तक जब तक राघो सिंह की स्वाभाविक मौत नहीं हो जाती। तुम न्याय के लिए चीख-चिल्लाकर रह जाओगी, न्याय नहीं मिल पाएगा तुम्हें। मुझे तुम्हारे साथ हमदर्दी है और यह दुख है कि तुम्हें न्याय नहीं मिलेगा।’

‘कल क्या होगा, कल पर छोड़ दीजिए, बाबा। मैं आज की बात कर रही हूँ।’

‘यह आज भी अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए। इस राघो सिंह से डरो तुम। यह कभी भी तुम्हारी हत्या करवा सकता है।’

‘मुझे अब किसी का डर नहीं रहा, बाबा। मेरा सारा डर समाप्त हो गया है। अब तो मुझे मरने का डर भी नहीं।’

‘डरती तो हो। पूरे दिन घर में बंद रही और अभी आधी रात को घर से बाहर निकली हो।’

‘मुझे आपके पास अभी आधी रात को ही आना था। आपको डर तो नहीं हो रहा है राघो सिंह का कि मैं आपके पास कोई सहायता लेने आई हूँ, कि आप मेरी सहायता कर रहे हैं।’

‘कटकी, अब तुम जाओ। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। अब और कितने दिन जिंदा रहूँगा मैं! दो-चार-पाँच साल। मैं किसी झमेले में पड़ना नहीं चाहता। मैं शांति से बचे-खुचे दिन काट लेना चाहता हूँ।’

‘बाबा, अब मैं इस गाँव की नन्ही बिटिया कटकी नहीं रही। अब मैं उषा कुमारी हूँ। नाना ने मेरा उषा नाम लिखवाया था विद्यालय में। गलती उनसे भी हुई। मेरा नाम दुर्गा या काली होना चाहिए था।’

‘नाम तुम्हारा दुर्गा या काली होता, दुर्गा या काली बन तो नहीं सकती थी राघो सिंह के गाँव में।’

‘मैं तो काली और दुर्गा बन चुकी हूँ बाबा, मगर इतने सालों से शिव की पूजा करते रहने के बाद भी आप कुछ बन पाए? गाँव के लोग आपको बाबा तो कहते हैं, मगर दिल से कोई मानता है कि आप महात्मा हैं? राघो सिंह के गाँव में मैं दुर्गा या काली नहीं बन सकती, मगर राघो सिंह के गाँव में आपने राघो सिंह को ही शिव मान लिया। गाँव के इस क्रूर अन्यायी के विरुद्ध कभी आपने आवाज उठायी?’

‘किसने उठायी आवाज? किसी ने नहीं। सब तो भगवान शिव के दरबार में ही आते थे अपना दुखड़ा सुनाने। मैं आवाज उठाकर भी क्या कर लेता? यहाँ कानून का राज है। बहुत सोच-विचारकर किसी ने भी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया। तुम चाहती हो कानून की लड़ाई लड़ना, तो लड़ो, अपने बल पर लड़ो।’

‘आप तो कहते हैं कि कानून की लड़ाई मैं नहीं जीत सकती।’

‘हाँ, वह तो मैं अभी भी कहता हूँ।’

‘आप अकेले में मुझसे यह तो कह सकते हैं कि हत्यारे को फाँसी की सजा होनी चाहिए?’

‘यह तो मैं कह ही चुका हूँ।’

‘यह आप कह रहे हैं कि राघो सिंह को मरना चाहिए?’

‘जितना मैंने कहा है उतने से तुम्हारा मन नहीं भरा? अब क्या मैं लिखकर दूँ कि राघो सिंह को फाँसी होनी चाहिए?’

‘लिखकर दे सकते हैं कि राघो सिंह को फाँसी होनी चाहिए?’

‘नहीं, लिखकर नहीं दे सकता; लिखकर कुछ भी नहीं, दो दूना चार भी नहीं।’

‘बोल तो सकते हैं?’

‘बोल तो दिया।’

‘अदालत में बोलना है।’

‘तुमसे बोलना था, बोल दिया। अब अदालत तो क्या, किसी और के सामने भी नहीं बोलूँगा।’

‘राघो सिंह का डर है?’ कटकी हँस पड़ी और फिर बोली, ‘आप शिव के भक्त हैं, शिव की कृपा होगी आप पर, आपको तो डरना नहीं चाहिए।’

‘सुनो, कटकी, मैंने अपनी पूरी उम्र इस गाँव में गुजार दी बिना किसी के झगड़ा-फसाद में पड़े। बाकी समय भी मैं इसी तरह काटूँगा। मैं शांति से मरना चाहता हूँ।’

‘जुल्म होते रहे और आप चुपचाप देखते रहे?’

‘मैं कुछ कर भी नहीं सकता था।’

‘आपने पूरी उम्र आराम से काट ली गाँव में हो रहे जुल्म को चुपचाप देखते हुए और अपने ऊपर पाप पर पाप चढ़ाते हुए, और अब चला-चली की बेला में भी और दो-चार-पाँच साल जिंदा रहकर आराम से मरने का मोह त्यागने को तैयार नहीं हैं। और दो-चार-पाँच सालों में क्या करेंगे आप? अपने ऊपर कुछ और पाप ही चढ़ाएँगे। अभी मौका है, बाबा, पाप धोने का।’

‘मैं तो अब अपने पाप धोने से रहा, मगर मेरी एक नेक सलाह मेरे लिए कुछ पुण्य अर्जित कर सकती है।’

‘कैसी सलाह, बाबा?’

‘तुम पिता की हत्या को भूल जाओ। राघो सिंह को मारने से पहले ही तुम मारी जाओगी। ऐसे भी राघो सिंह को मारने से क्या मिलेगा तुम्हें? पिता की हत्या का बदला! उनकी आत्मा को शांति! हुँह, बेकार की बातें। तुम्हारी अपनी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, कटकी।’

‘मुझे मिलेगा, बाबा, बहुत कुछ मिलेगा।’

‘बहुत-कुछ?’

‘हाँ, बाबा, बहुत कुछ।’

‘बहुत-कुछ क्या?’

‘गेदन चाचा की बेटी फुलिया कुएँ में डूब मरी, उसकी आत्मा को शांति मिलेगी; रामू चाचा की बेटी कलेसरी की लाश पोखर में मिली थी, उसकी आत्मा को शांति मिलेगी; जयना और भगतू चाचा की बेटियाँ गाँव से गायब हुईं और आज तक पता नहीं कि वे कहाँ हैं, जीवित हैं भी या नहीं, उनकी आत्माओं को भी शांति मिलेगी। आपको तो कुछ अधिक की ही जानकारी होगी, बाबा। मेरे पिता खुश हो जाएँगे कि उनकी बेटी ने उनकी हत्या का बदला लिया है। मैं अपने हाथ से मारूँगी इस पापी को।’

‘यह तो गलत होगा कि राघो सिंह ने तुम्हारे पिता की हत्या की तो तुम राघो सिंह की हत्या करो।’

‘यह गलत नहीं है बाबा, कि राघो सिंह जो चाहता है वह करता है, कराता है?’

‘सुनो कटकी, अगर तुम राघो सिंह की हत्या करने या करवाने में सफल भी हो जाओ, तो तुम अपने को बचा नहीं पाओगी। कानून के लंबे हाथ हैं। राघो सिंह की हत्या के साथ तुम्हारे सुनहले भविष्य की भी हत्या हो जाएगी।’

‘इससे अधिक सुनहला मेरा भविष्य और क्या होगा कि मैं एक पापी के ढेर सारे अत्याचारों और हत्याओं का बदला अपनी एक हत्या से ले लूँगी! मैं हत्या-पर्व मनाऊँगी, बाबा हत्या करूँगी राघो सिंह की।’

‘तुम कानून को अपने हाथ में मत लो कटकी। मैं फिर कह रहा हूँ, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं, तुम अपने को बचा नहीं पाओगी।’

‘कानून के हाथ सिर्फ मेरे लिए लंबे हैं, राघो सिंह के लिए नहीं? सोचकर देखिए, बाबा, कानून के हाथ बहुत छोटे हैं, वे राघो सिंह को नहीं पकड़ सकते। क्या आपको नहीं लगता कि मैं कानून की, न्याय की मदद कर रही हूँ राघो सिंह की हत्या करके?’

‘यह तो अराजक स्थिति होगी।’

‘आपके शिव कुछ कर रहे हैं कि यह अराजक स्थिति पैदा न हो, सबको न्याय मिल जाए, किसी का शोषण-दमन न हो?’

‘जरूर कुछ कर रहे होंगे।’

‘दिखता तो नहीं है।’

‘दिखेगा नहीं; ईश्वर का न्याय है; किसी को कुछ नहीं दिखेगा।’

‘मुझे तो कुछ दिख रहा है।’

‘क्या?’

‘आपके शिव अत्याचारियों के साथ हो गए हैं।’

‘ऐसा नहीं हो सकता।’

‘हो रहा है ऐसा ही, और तब स्थिति अराजक होकर रहेगी। मैं राघो सिंह को छोड़ूँगी नहीं।’

इसी समय किसी सीटी की आवाज आई। बाबा का ध्यान उधर गया और वे बोल गए, ‘किसी चिड़िया की आवाज है।’

‘इस समय भी चिड़िया बोलती है।’ बुदबुदाकर कटकी उठ खड़ी हुई और बोली, ‘अब मैं चलती हूँ।’

‘यहाँ कब आई थी?’

‘आज ही।’

‘बहुत जल्दी जा रही हो?’

‘हाँ, काम हो गया।’

बाबा को यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि वह किस काम से आई थी। उन्होंने इतना भर पूछा, ‘यहाँ से कहाँ जाओगी?’

कटकी ने जाते-जाते कहा, ‘खबर आपको मिल जाएगी।’

कटकी को अँधेरे की ओर जाते टकटकी लगाए देखते रहे बाबा। अँधेरे में कटकी को लुप्त होते देर नहीं लगी।

चबूतरे से उठकर बाबा अपनी कुटी में आ गए। रात अभी बाकी थी, पर उन्होंने सोने का कोई प्रयास नहीं किया। कटकी उनकी आँखों में नाच रही थी।

कब तो और कैसे तो उन्हें नींद लग गई।

रतनपुर का यह शिव मंदिर गाँव के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। शिव मंदिर के पुजारी को लोग लाल बाबा बोलते हैं। ये इस बस्ती के नहीं हैं, कहीं बाहर से आए थे, करीब पचास साल पहले। उस समय के पुजारी ने इन्हें अपना चेला बना लिया था। अब उम्र सत्तर के आस-पास हो रही होगी। ये गाँव के सबसे आदरणीय व्यक्ति माने जाते हैं, महाज्ञानी और ग्रामीणों के अंतिम सलाहकार। गाँव वालों ने उनके खाने-पहनने का प्रबंध कर दिया है। मंदिर की साफ-सफाई का जिम्मा कुछ भक्तों ने उठा लिया है।

रात में पुजारी जी मंदिर से सटे एक कुटिया में अकेले ही सोते हैं। पास के ही एक मचान पर जब-तब गाँव के दो-तीन बूढ़े रात में सोने आ जाते हैं। भोर होने से कुछ पहले ही भगिया दाय आती है और झाड़-बुहार कर अपने घर चली जाती है। भोर होते ही मंदिर का कपाट खुलता है और भक्तों का आना-जाना शुरू हो जाता है।

भगिया दाय आज अपने समय से कुछ पहले ही मंदिर आ गई थी और बाबा को कहीं घूमते-टहलते नहीं देखकर उनकी कुटिया की ओर दौड़ी। उसने बाबा को सोये से जगाया, ‘बाबा, उठिए, उठिए, गाँव में क्या-क्या हो गया और आप अभी तक सोये हुए हैं!’

क्या-क्या हो गया, यह पूछने का अवसर नहीं दिया भगिया ने बाबा को और सुनाने लगी, ‘बाबू राघो सिंह का रात में खून हो गया।’

‘क्या…!’

‘हाँ, खून हो गया बाबूसाहब का, बालेसर मंडल के घर में।’

‘कटकी के घर में?’

‘हाँ। किसी ने छूरा से उनका पेट फाड़ दिया।’

‘कटकी थी घर में?’

‘नहीं थी। घर तो बंद था। किसी को पता नहीं कि किसने मारा और लाश बालेसर मंडल के घर में कैसे पहुँच गई। लोगों को शक है कि बालेसर मंडल का भूत आया था, उसी ने मारा है छूरा। पुलिस आने वाली है। आप जाएँगे वहाँ?’

बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी कुटिया में जा घुसे।

बाबा को कुटिया में घुसे अभी दो-चार पल भी नहीं बीते होंगे कि बाबा के कानों में भगिया दाय की तेज आवाज घुसी, ‘बाबा, बाबा, जल्दी आइए।’

बाबा बाहर आए तो भगिया को चबूतरे के पास खड़ी देखा जो अब हाथ के इशारे से उन्हें बुला रही थी।

भगिया थर-थर काँप रही थी। ‘यह देखिए, देखिए क्या है?’ बाबा के पास आते ही भगिया लड़खड़ाती आवाज में बोली।

बाबा ने देखा, चबूतरे के नीचे एक खून सना छूरा।

‘बालेसर मंडल का भूत’, भगिया बोल गई, ‘यह छूरा यहाँ रखकर गया है।’

बाबा कुछ देर छूरे को निहारते रहे और फिर छूरे को उठाते हुए भगिया से कहा, ‘किसी को बताना नहीं कि बालेसर मंडल का भूत यहाँ कोई छूरा रख गया है।’

झाड़-बुहार कर भगिया दाय अपने घर गई। बाबा मंदिर के कपाट खोलकर खून सना छूरा लिए अपनी कुटिया की शरण में चले गए।

अथाह में पड़ गए बाबा।

हत्या करके आई थी कटकी उससे मिलने।

वह अकेली नहीं थी। रात में जो सीटी सुनी गई थी वह किसी चिड़िया की नहीं, किसी आदमी की आवाज थी। जरूर कोई और था कटकी के साथ। इशारा था कि अब निकलो।

कटकी ने उसे ललकारा था…आपने बहुत पाप किए हैं, बाबा; एक पुण्य का अवसर मैं दे रही हूँ। अदालत में सच बोलना, गवाही दे देना कि कटकी ने ही राघो सिंह की हत्या की है। एक सबूत छोड़कर जा रही हूँ। सच बोल देना कि हत्या करने के बाद कटकी यह छूरा लेकर आपके पास आई थी।

ये सब सोचते हुए बाबा की देह में झुरझुरी पैदा हुई। कानून के लंबे हाथ राघो सिंह को भले न पकड़ पाते, मगर कटकी को पकड़ सकते हैं।

उन्हें कटकी की चिंता सताने लगी।

एक पाप और करेगा वह, बाबा ने अपने मन में सोचा, यह पाप उसके सौ पापों को धो देगा।

रात में मचान पर दोनों बूढ़े, रसिकलाल और गेना, सोये हुए थे। भगिया दाय के आने के पहले दोनों जा चुके थे। उन्होंने रात में कटकी को देखा होगा क्या? कोई परवाह नहीं। उसने तो नहीं देखा कटकी को। कटकी नहीं आई थी मंदिर, नहीं मिली थी उससे।

जब मंदिर के कपाट बंद करने का समय हुआ, तो बाबा छूरा छिपाए कुटिया से बाहर आए और भगवान शिव की प्रतिमा के आगे नतमस्तक होकर विनती की, ‘भोलेनाथ! कटकी की रक्षा करना।’

और फिर वे छूरा को दफनाने मंदिर से बाहर निकल आए।


Image: India, Baghal Devangandhari Ragini of Hindola Cleveland Museum of Art
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain