ठहराव के विरुद्ध का सृजन-संसार

ठहराव के विरुद्ध का सृजन-संसार

अनिरुद्ध सिन्हा उस्ताद शायर हैं। उन्होंने शानदार ग़ज़लें कही हैं और नए कहने वालों को दीक्षित भी किया है। अक्सर देखा गया है कि ग़ज़लों के रूप विधान पर जिन लोगों की पकड़ अधिक होती है उनसे विषय-वस्तु की डोर छूट जाती है लेकिन अनिरुद्ध सिन्हा के साथ ऐसा नहीं है। उनकी ग़ज़लें हर दृष्टि से श्रेष्ठ और हिंदी ग़ज़ल को अग्रगामी बनाने वाली हैं। इन दिनों जो थोड़े से ग़ज़लकार सबके ज़ेहन में रहते हैं, वे उन्हीं में एक हैं। चालीस वर्ष से अधिक के कालखंड में उन्होंने निरंतर इस विधा को संपन्न बनाया है। इस संग्रह में भी उनकी 120 ग़ज़लें शामिल हैं। सामान्यतः ग़ज़लों में प्रत्येक शेर स्वतंत्र होता है। इस दृष्टि से ग़ज़लों में विषय विविधता अनिवार्य रूप से होती है। इस संग्रह की ग़ज़लों में प्रेम, परिवार, समाज, संस्कृति, राजनीति–सब हैं। यही कारण है कि अनिरुद्ध जी की ग़ज़लें एकांगी नहीं होती हैं। वे प्रथमतः और अंततः एक मुकम्मल शायर हैं।

इस संग्रह की पहली ही ग़ज़ल शायर की अंतरदृष्टि और कलात्मकता का पता दे देती है। इसके कुछ अशआर देखिए–

‘उलझनों से तो कभी प्यार से कट जाती है
ज़िंदगी वक्त की रफ्तार से कट जाती है

मैं तो क्या चीज़ हूँ परछाई भी मेरी अक्सर
रोज़ उठी हुई दीवार से कट जाती है

इतना आसान नहीं प्यारे मुहब्बत करना
ये वो गुड़िया है जो बाज़ार से कट जाती है।’

अनिरुद्ध सिन्हा की ग़ज़लें आत्मालोचन के लिए भी प्रेरित करती हैं। कभी-कभी विवश भी। यह कवि सिर्फ ‘अन्य’ की आलोचना तक अपनी कविता का दायरा सीमित नहीं करता है। अपने चेहरे के अदृश्य और दृश्य–दोनों तरह के दाग देखने का तीव्र आग्रह इस संग्रह की ग़ज़लों में है। एक नई दयनीय का स्वप्न कवि की पुतलियों में अटका हुआ है। इन ग़ज़लों में जरूरी आग को जलाने और अनावश्यक आग को बुझाने का विवेक इन्हें चेतना संपन्नता प्रदान करता है। एक ज़बान पर चढ़ने लायक शेर देखिए–

‘अपनी आग जलाकर चलो अँधेरे में
जो बुझ गए तो उजाला कोई नहीं देगा।’
एक अन्य ग़ज़ल का यह शेर भी देखिए–
‘सत्य पराजित रोज़ हुआ करता है जिनसे
साथ उन्हीं के सब हो लेंगे क्या कर लोगे।’

इस शेर को पढ़ते हुए महाकवि निराला याद आए। उनकी महानतम कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ में राम कहते हैं–‘अन्याय जिधर हैं शक्ति उधर।’ विडंबनाएँ हर कालखंड को घेरे रहती हैं। यह युग सत्य को रेखांकित करने वाला शेर है। अनिरुद्ध सिन्हा उस दौर के शायर हैं जिस दौर में हर सामान्य व्यक्ति का जीवन इतना दुष्कर हो गया है कि उन्हें लगता है जैसे उनका अपना साया भी उनका नहीं है। इस समय महानगरों में चौतरफा प्रदूषण का ही बोलबाला है। प्रकृति परेशान है। मनुष्यों की लालच ने उसे विकल और विवश बना दिया है। ऐसा लगता है जैसे यह शेर इसी मंज़र के लिए लिखा गया है–

‘हवा कैसे बिखेरे ख़ुशबुओं को
धुआँ है धुंध है रोती ज़मीं है।’

ऐसे शेर कवियों की स्वीकृति को बड़ा फलक देते हैं। अनिरुद्ध सिन्हा यह रेखांकित करने से नहीं चूकते कि इस दौर में अँधेरे का क़द इतना बड़ा हो गया है कि रौशनी की रक्षा के लिए उसे कुछ समय तक छिपाने की जरूरत भी पड़ सकती है। हालाँकि अंततः रौशनी ही अँधेरे के साम्राज्य का अंत करेगी। और अपने प्रखर रूप में यह शायर रौशनी का ही गायक है। यह धूप को सर पर लेकर चलने का हिमायती है। अनिरुद्ध जी इस बात को कहने में संकोच नहीं करते कि वे लोग कहीं और से नहीं आते जो घर की खुशबू का बँटवारा कर देते हैं।

यह शायर जानता है कि कहना आसान है लेकिन फूलों के बीच फूल बनना आसान नहीं है। झूठी बातों के बीच जीवन का एक सच यह भी है कि माँ-बाप पर हुए खर्च का भी सरेआम ज़िक्र होता है और वो ज़िक्र बेटे करते हैं। अनिरुद्ध जी इस साधारण दिखने वाले सत्य को कविता में लाकर इस सामाजिक विडंबना को प्रश्नांकित करते हैं। एक अच्छा शायर यही करता है। एक शेर में वे उस सत्य को सामने रखते हैं जिसे रखने से कई लोग बचना चाहते हैं–

‘जो बहारों का शौक रखते हैं
उनको फूलों से ही शिकायत है।’

इसी के साथ यह भी सच है कि ऐसे ही सत्यों के बीच अपने सत्य के लिए मार्ग बनाना होता है। जनता का कवि यही कार्य जनता के लिए करता है। जब अपने सत्य को मार्ग मिल जाता है तो स्थिति कुछ इस प्रकार की हो जाती है–

‘इक नूर-सा फैला है अभी तक यहाँ वहाँ
आँगन में आज जैसे कोई चाँदनी हँसी।’

निश्चित तौर पर अनिरुद्ध सिन्हा एक विचार सजग शायर हैं। शिल्प सजग तो हैं ही। वैसे भी ग़ज़लों में कोई छूट नहीं मिलती। यह ‘तलवार की धार पे धावनो है’ जैसा ही होता है। अनिरुद्ध जी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ते। उनके अनेक शेर लोगों की ज़बान पर हैं। अनिरुद्ध सिन्हा के अशआर सहजता से लोगों की ज़ुबान पर चढ़ेंगे, इसमें कोई दो मत नहीं है। फिलहाल उनके इस शेर से अपनी बातों को विराम देता हूँ–

‘वहीं से फिर नया रस्ता बनाना
जहाँ पर ज़िंदगी ठहरी हुई है।’


Image : Seascape
Image Source : WikiArt
Artist : Efim Volkov
Image in Public Domain