कवि
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कवि
कवि कहते थे
और कहते हुए कभी थकते नहीं थे
उनका कथन था कि
यह इतिहास का विशेष कालखंड है
कविता से बाहर आने का वक्त है
कवि की प्रतिष्ठा थी
अपने चहेतों से वे घिरे थे
उन्हें पुरस्कारों से नवाजा जाता था
उनकी बातें सुनी जाती थीं
तालियाँ बजती थीं
फिर हवा में उड़ा दी जाती थीं
प्रशंसकों को कवि का फेसबुक
और लाइव कार्यक्रमों में
इंतजार रहता था
कई बार तो कवि की
कविता के शब्द
पूरी तरह निकल भी नहीं पाते
कि लाइक व कमेंट की
झड़ी लग जाती
उसी तरह बाल से
खाल निकालने वालों की
एक दिन कवि ने अपना
बोरिया-बिस्तर समेटा
झोला उठाया
फेसबुक को ‘टा टा…बॉय बॉय’
कहा और चल दिए
कवि की घोषणा से साफ नहीं था कि
उनका जाना स्थाई है या अस्थाई
वैसे दो नावों की सवारी
करने में उन्हें उस्तादी थी
मतलब वापसी की
पतली गली छोड़ते हुए
कवि का यह जाना था
जो भी हो
बात कविता से बाहर आने की थी
पर कवि फेसबुक से बाहर आ गए थे
मित्र और विरोधी दोनों असमंजस में थे
कि इसका अर्थ क्या निकालें
और जैसा कि यहाँ बहस की
पूँछ का अंत नहीं
वैसे ही वह चलती रही
‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’
की तरह खिंचती रही
लंबी होती गई।
Image : N.A.Nekrasov during The last songs
Image Source : WikiArt
Artist : Ivan Kramskoy
Image in Public Domain