चार दिन की जिदंगी

चार दिन की जिदंगी

चार दिन की
जिंदगी लिख दी
तुम्हारे नाम।
पी गए हमको समझ
तुम चार कश सिगरेट।
आदमी
हम आम
ठहरे बस यही है रेट।

इस तरह
दिन बीत जाता
घेर लेती शाम।

चढ़ गए हमको
समझ
मजबूत सा पाया।

इस कुटिलता
पर मुकुर मन
खूब हर्षाया।

नियति तो
अपनी रही
आना तुम्हारे काम।

हम रहे प्यादे
कभी
समझे गए असबाब।

काँच की
मानिंद टूटे
छन्न से सब ख्वाब।
इस तरह
उपभोग तक
होते रहे नीलाम।
पी गए
हमको समझ
दो इंच की बीड़ी।

बढ़ गए
कुछ लोग कंधों को
बना सीढ़ी।

नामवर होना
हमें था पर
रहे बेनाम।


Image : Two Men Sitting with a Table, or the Smokers
Image Source : WikiArt
Artist : Honore Daumier
Image in Public Domain

मनोज जैन द्वारा भी