विस्तार में सिकुड़न
- 1 October, 2023
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poetry-songs-on-contraction-in-expansion-by-bhagwati-prasad-dwivedi/
- 1 October, 2023
विस्तार में सिकुड़न
अपनों से कट, अनजानों से
जुड़ना भी क्या जुड़ना है!
जहाँ न तो जड़, न जमीन ही
फिर जुड़ाव का नाता क्या
कोलाहल औ’ भीड़ भरे
चौराहों से अपनापा क्या!
मौलिकता तजकर त्रिशंकु-सा
उड़ना भी क्या उड़ना है!
जहाँ न घाटी की प्रतिध्वनियाँ
जहाँ न छवरें धूलभरी
जहाँ न दूबघिसी पगडंडी
जहाँ न पाखी स्वरलहरी
जहाँ न धूप-छाँह मृगछौनी
वहाँ बैठ क्या कुढ़ना है!
चलो जहाँ जन-जन के मन में
लहराती हो एक नदी
बाट जोहते परदेसी की
जहाँ उचरते काग अभी
यह कैसा विस्तार कि जिसमें
रोज-ब-रोज सिकुड़ना है!
अपनो से कट, अनजानों से
जुड़ना भी क्या जुड़ना है!
Image : A Musical Family
Image Source : WikiArt
Artist : Anders Zorn
Image in Public Domain