एकाकी परदेसी
- 1 October, 2023
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- 1 October, 2023
एकाकी परदेसी
उमड़े जन-सैलाब मगर
है एकाकी परदेसी।
शिखरों में भी कूट-कूटकर
भरा हुआ बौनापन
रिश्ते काँचों की किरचें
करता आहत अपनापन
निरख रहा चिलमन के
पीछे की झाँकी परदेसी।
इस कपटी कोलाहल से कट
आती किसकी आहट?
नीम गाछ की शीतलता
संबंधों की गरमाहट
उस माटी में गुड़-सा
सोंधापन बाकी, परदेसी!
चोंच काग की सोने से
मढ़वाने के वे वादे
फुदकें-चहकें गौरैया-से
मन के चोर इरादे
जा बैठा घर की मुँडेर पर
बन पाखी परदेसी।
साँझ-सवेरे अम्मा का
गीली लकड़ी-सा जलना
भरी चिलम की मरी आग-सा
बाबूजी का गलना
पता नहीं, विधना ने क्या
किस्मत टाँकी, परदेसी!
छोटू के पाँवों की पाँखें
अधरों की तुतलाहट
तूफानी हिमपातों में भी
मीठी-सी गरमाहट
बना पपीहा जोह रहा
बूँदें ‘स्वाती’ परदेसी।
आँखमिचौनी-सा लुक-छिप
घर की बातों में आना
धनिया की सुध पर छाना
गोइँठे-सा कुछ सुलगाना
स्मृति में पी रहा उमग
चितवन बाँकी परदेसी।
Image : Portrait of an old man
Image Source : WikiArt
Artist : Vladimir Makovsky
Image in Public Domain